संपादक की टिप्पणी
भारत और मिस्र दोनों प्राचीन सभ्यताएं हैं और उनके रिश्तों की जड़ें सदियों पुराने इतिहास तक जाती हैं। दोनों देश गुटनिरपेक्ष आंदोलन का स्तंभ रहे हैं। आज मिस्र पश्चिम एशिया में हमारे हितों की धुरी तो बना ही हुआ है, हमारी डिफेंस इंडस्ट्री को खाद पानी भी दे रहा है। द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूती देने के हालिया प्रयास फलित हो रहे हैं। शक्ति समीकरणों के पूर्व की ओर झुकाव को देखते हुए ये कोशिशें जारी रखी जानी चाहिए।
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भारत और मिस्र अपने कूटनीतिक रिश्तों का 75वां साल मना रहे हैं। दोनों के बीच पीपल-टु-पीपल रिश्ता 18 अगस्त 1947 में शुरू हुआ था। ये दोनों विश्व की प्राचीन सभ्यताएं हैं और व्यापारिक तथा लोगों के बीच रिश्तों का समृद्ध इतिहास साझा करते हैं। द्वितीय विश्वयुद्धोत्तर दौर में ब्रिटेन से स्वतंत्र होने के बाद इन दोनों देशों ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का झंडा उठाया और विभिन्न देशों को अमेरिकी या रूसी गुटों को छोड़कर अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए तैयार करने में लग गए।
दोनों देशों के जो रिश्ते इसके बाद स्थिर हो गए थे, अब एक बार फिर तेजी से प्रगाढ़ होते जा रहे हैं। साल 2023 के गणतंत्र दिवस समारोह का मुख्य अतिथि बनने का भारतीय निमंत्रण स्वीकार करने की राष्ट्रपति सीसी की ओर से हाल में की गई घोषणा के पीछे दरअसल एक साल का गहन संपर्क है और यह दोनों देशों के बीच बढ़ते विश्वास तथा सहयोग का स्पष्ट और निश्चित संकेत है।
तीन महादेशों- एशिया, अफ्रीका और यूरोप- के जोड़ पर बसा मिस्र अरब जगत का अगुआ तो है ही, अफ्रीकी महादेश का भी स्थापित नेता है। भूमध्यसागर और लाल सागर को जोड़ने वाला स्वेज नहर पश्चिम और पूर्व के बीच सबसे छोटा समुद्री रास्ता है और वैश्विक व्यापार के लिहाज से बेहद अहम है। इस इलाके में मिस्र की अहमियत की यह भी एक बड़ी वजह है।
दस करोड़ की आबादी वाला मिस्र सबसे बड़ा अरब देश है और पारंपरिक तौर पर क्षेत्रीय राजनीति में निर्णायक भूमिका दशकों से निभाता आ रहा है। मिस्र के साथ भारत के संपर्क और हित उसके ऐतिहासिक रिश्तों से कहीं आगे जाते हैं। पश्चिम एशिया में मिस्र की अहमियत और उसकी हैसियत का भारत को अच्छी तरह अहसास है। भारत अपनी ‘लुक वेस्ट’ पॉलिसी के तहत पश्चिम एशिया और अफ्रीका में अपने हितों का विस्तार करना चाहता है। इस लिहाज से मिस्र में शांति, और स्थिरता कायम रहना तथा उसके साथ करीबी द्विपक्षीय सहयोग बने रहना बेहद अहम हैं।
भारत और मिस्र, पिछले कुछ वर्षों से, खासकर 2014 से जब संयोगवश प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति सीसी दोनों सत्ता में आए, द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मसलों पर आपसी समझ बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
अगस्त 2015 में तत्कालीन विदेश मंत्री दिवंगत सुषमा स्वराज मिस्र गई थीं और दोनों पक्षों ने सुरक्षा तथा आतंकवाद के मसले पर सहयोग बढ़ाने का फैसला किया था। उसके बाद सितंबर 2016 में राष्ट्रपति सीसी भारत की राजकीय यात्रा पर आए। दोनों देशों के बीच करीबी सहयोग का महौल बनाने के लिहाज से वह यात्रा बड़ी अहम साबित हुई। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति सीसी कई बार मिले हैं औऱ क्षेत्रीय मसलों पर नोट्स का आदान प्रदान करते हुए करीबी सहयोग की जरूरत बताई है। कोविड 19 के दौरान भारत मिस्र की मदद के लिए आगे आया और उसे वैक्सीन की सप्लाई की।
2022 दोनों देशों के बीच अभूतपूर्व और गहन संपर्क का साल साबित हुआ है। रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने मिस्र के बचाव में आगे आते हुए उसे गेहूं सप्लाई करने की पेशकश की ताकि उसकी खाद्य सुरक्षा जरूरतें पूरी की जा सकें। जैसे ही मिस्र ने इस पेशकश को स्वीकार किया, भारत ने तत्परता से 61500 मीट्रिक टन गेहूं के शिपमेंट को मंजूरी दे दी। मिस्र की अपनी पहली ही यात्रा के दौरान सितंबर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रक्षा सहयोग पर एमओयू साइन किया। यह एमओयू एक ऐतिहासिक समझौता है जिसका मकसद द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को औपचारिक रूप देना, रक्षा उत्पादन में साझेदारी की संभावनाएं तलाशना और रक्षा इंडस्ट्री स्थापित करना है।
इस यात्रा के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर भी 13-15 अक्टूबर के बीच मिस्र गए, जो विदेश मंत्री के तौर पर उनकी मिस्र की पहली आधिकारिक यात्रा थी। उन्होंने मिस्र के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को नई ऊंचाई देने की भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। उन्होंने यह भी दर्शाया कि कैसे द्विपक्षीय व्यापार में उल्लेखनीय बढोतरी हुई है और 2021-22 में अब तक का सबसे ऊंचा बिंदु छूते हुए यह 7.2 अरब डॉलर को भी पार कर गया है। जब भारत ने जी-20 की अध्यक्षता संभाली तो मिस्र उन चुनिंदा देशों में शामिल रहा जिन्हें ‘अतिथि देश’ के रूप में नामित किया गया, जो एक साझेदार के रूप में भारत द्वारा मिस्र को दी जा रही अहमियत का एक और संकेत है। मिस्र उन छह देशों में शामिल है जो भारत से एलसीए तेजस विमान खरीदना चाहते हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक मिस्र भारत से ब्रह्मोस मिसाइल भी खरीदना चाहता है।
मिस्र और भारत संभवतः अपने द्विपक्षीय रिश्तों के सबसे अच्छे चरण में हैं। सितंबर 2020 में भारत-अफ्रीका प्रोजेक्ट पार्टनरशिप पर सीआईआई-एग्जिम बैंक डिजिटल कॉन्क्लेव के 15वें सत्र को संबोधित करते हुए मिस्र के अंतरराष्ट्रीय सहयोग मंत्री रानिया अल मसहत ने वहां निवेश और व्यापार की आकर्षक संभावनाओं का वर्णन इन शब्दों में किया, ‘भारतीय कंपनियों के लिए मिस्र अफ्रीका का प्रवेश द्वार है।‘
मिस्र ‘मेक इन इंडिया’ पहल के एक संभावित साझेदार के रूप में भी महत्वपूर्ण है। यह भारतीय इंडस्ट्री, को-प्रोडक्शन युनिट्स, डिफेंस प्रोडक्ट्स और जॉइंट डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग के लिए लाभप्रद बाजार हो सकता है। भारत ने जी-20 की अध्यक्षता शुरू की है, वह ‘ग्लोबल साउथ’ की आकांक्षाओं और उम्मीदों को स्वर देने की कोशिश कर रहा है। मिस्र उस विमर्श का एक अहम हिस्सा है। पश्चिम एशिया के अंदर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से भारत पहले ही व्यापक सामरिक साझेदारी के समझौते कर चुका है। इस्राइल के साथ भी उसकी सामरिक साझेदारी है। उस क्षेत्र में मिस्र की अहमियत और दोनों के बीच संपर्कों की मौजूदा तीव्रता को ध्यान में रखें तो आश्चर्य नहीं कि जल्दी ही भारत उसके साथ भी ‘व्यापक सामरिक साझेदारी समझौता’ साइन करे। भारत और मिस्र के संबंध निश्चित रूप से प्रगाढ़ हो रहे हैं और गणतंत्र दिवस समारोह के लिए वहां के राष्ट्रपति की भारत यात्रा के बाद इसमें और तेजी आना लगभग तय है।
कर्नल राजीव अग्रवाल (रिटायर्ड)