संपादक की बात
28 महीने में मनोहर पर्रिकर ने तीनों सेनाओं के शीर्ष अधिकारियों के साथ इतने सहज संबंध बना लिए थे, जितने बहुत कम दिखे हैं। उन्होंने निडर होकर काम किया और सेना को परिचालनगत क्षमताओं में लगातार आ रही गिरावट से उबारने में सफल रहे। अचरज की बात है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से रक्षा मंत्रालय 2,09751 करोड़ रुपये के 124 नए ठेके दे चुका है, लेकिन घोटाले का एक भी मामला सुर्खियों में नहीं आया। किंतु वर्षों की सुस्ती के बाद अधूरा रह गया एजेंडा अब भी बड़ी चुनौती बना हुआ है। मंत्री की उपलब्धियों और उनके उत्तराधिकारी के सामने मौजूद चुनौतियों का जायजा ले रहे हैं BharatShakti.in के संस्थापक नितिन गोखले।
मुश्किल होगा पर्रिकर का अनुसरण करना
अब जबकि मनोहर पर्रिकर की गोवा वापसी हो चुकी है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की फौरी प्राथमिकता भारत के लिए उतना ही मेहनती, पारदर्शी और सुलभ रक्षा मंत्री ढूंढना होगी। हालांकि हमेशा काम आने वाले अरुण जेटली को रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया गया है, लेकिन निश्चित रूप से उनसे एक साथ दो बड़े तथा महत्वपूर्ण मंत्रालय संभालने की अपेक्षा नहीं की जा सकती।
बहरहाल आने वाले महीनों में साउथ ब्लॉक में जो भी नया व्यक्ति कमान संभालेगा, उसके लिए बराबरी करना मुश्किल होगा क्योंकि पर्रिकर ने 28 महीनों में मोटे तौर पर मरणासन्न रक्षा मंत्रालय में नई जान और नए उद्देश्य की भावना फूंक दी थी।
रक्षा मंत्री बनने से पहले मुझे अक्सर यही बताया गया था कि पर्रिकर उदासीन किस्म के राजनेता हैं, केंद्र में और भी उदासीन मंत्री हैं और दिल्ली की सत्ता के गलियारों में बाहरी व्यक्ति हैं। लेकिन पिछले करीब ढाई वर्ष में उनसे पहचान होने के बाद मेरे लिए पर्रिकर एकदम सरल व्यक्ति थे, लेकिन अनाड़ी कतई नहीं थे; बहुत कम तामझाम वाले व्यक्ति, जो सत्ता सुख के बंधनों से कम रहे और जटिल मसलों को फौरन समझने की क्षमता रखते थे।
इन गुणों के कारण वह इस महत्वपूर्ण मंत्रालय की पेचीदगियां और बारीकियां समझने में ही कामयाब नहीं रहे बल्कि रक्षा मंत्रालय के रोजमर्रा के कामकाज पर अपनी छाप छोड़ने में भी सफल रहे। कुछ भूल भी हुईं, शर्मिंदगी भी उठानी पड़ीं क्योंकि भीतर तक पैठ बनाए निहित स्वार्थ युक्त तत्वों ने उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश की।
मुझे फरवरी, 2015 में पहली बार उनसे अपनी मुलाकात याद है (उससे पहले मैंने यही सुना था कि पर्रिकर अनूठे राजनेता हैं)। उन्होंने मुझसे पूछा था, “आपकी नजर में यहां सबसे बड़ी चुनौती क्या है?”
सबसे पहले उनसे परिचय नहीं होने के कारण मैंने सोचा कि जोखिम नहीं लिया जाए और सपाट लहजे में कहा जाए, “यह बड़ा, संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण मंत्रालय है, इसीलिए इसे जल्द समझना आसान नहीं है।”
लेकिन उनसे सरल लहजे ने मेरी हिम्मत बढ़ाई और मैंने कहा, “आपके लिए सबसे बड़ी चुनौती असैन्य एवं सैन्य अफसरशाही के भीतर घर कर चुकी यथास्थितिवादी मानसिकता है। हर कोई आपको बताएगा कि यह काम नहीं किया जा सकता क्योंकि पहले इसका कोई उदारहण ही नहीं है। अगर आपने इस फितरत से पार पा लिया तो शायद आप बहुत बड़ा काम कर पाएंगे।”
मैं नहीं कह सकता कि पर्रिकर ने उस बात (सलाह नहीं) को गंभीरता से लिया या नहीं लेकिन उसके बाद से जिससे – सेना में या रक्षा मंत्रालय में – भी मेरा सामना हुआ, उसने बताया कि पर्रिकर किस तरह रक्षा मंत्रालय में नई जान फूंकने और अधिक जवाबदेही लाने की कोशिश कर रहे हैं।
यह स्वयं में बड़ा बदलाव है क्योंकि रक्षा मंत्रालय अधिकतर भारी भरकम दैत्य सरीखा रहा है, जो हिलने-डुलने और काम करने में सुस्त है। इसे भारत की रक्षा का ही जिम्मा नहीं मिला है बल्कि भारत के लगभग 15 लाख सैन्यकर्मियों (थल सेना, नौसेना, वायु सेना एवं तटरक्षक बल) का प्रशासनिक मंत्रालय भी यही है। भारत सरकार में सबसे बड़े बजट वाले मंत्रालयों में भी यह शुमार है। उदाहरण के लिए 2017-18 में उसे 3,59,854 करोड़ रुपये (53.5 अरब डॉलर) आवंटित किए गए हैं। आलोचकों ने इस वर्ष रक्षा बजट में अपेक्षाकृत कम वृद्धि की बात कहते हुए खिंचाई की है। लेकिन यह बहुत छोटी चुनौती है।
उसके बजाय खरीद का समय घटाने, उपलब्ध संसाधनों का बेहतर तथा यथेष्ट उपयोग करने, रक्षा मंत्रालय के कामकाज में अधिक जवाबदेही तथा पारदर्शिता लाने और भारत की रक्षा संबंधी तैयारी में अहम खामियों को जल्द से जल्द दूर करने पर साउथ ब्लॉक का ध्यान केंद्रित रहा है। किंतु पर्रिकर के नेतृत्व में रक्षा मंत्रालय ने सबसे पहले यह देखा कि रक्षा उत्पादन में प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया कार्यक्रम को जरूरी बल मिले।
रक्षा खरीद नीति (डीपीपी)- 2016 की घोषणा भारत में शस्त्र प्लेटफॉर्मों में बुनियादी बदलाव की दिशा में पहला कदम था। डीपीपी-2016 में लाई गई बाई आईडीडीएम (स्वदेश में डिजाइन की गई,
विकसित की गई तथा विनिर्मित) श्रेणी को अब उन छह श्रेणियों में सर्वाधिक प्राथमिकता मिल रही है, जिनसे मिलकर नई डीपीपी बनी है। नई डीपीपी ही भारत में सभी रक्षा खरीदों की दिशानिर्देशक दस्तावेज है। वास्तव में इसका अर्थ है कि अपने उत्पादों की डिजाइन स्वदेश में ही तैयार करने तथा उनका विनिर्माण यहीं करने में सक्षम सभी भारतीय कंपनियों को तीनों सशस्त्र बलों द्वारा की जाने वाली अधिकतर खरीदों में पहली प्राथमिकता हासिल होगी।
स्वदेश में डिजाइन किए गए, विकसित तथा विनिर्मित (आईडीडीएम) उपकरण की नई श्रेणी के अंतर्गत 40 प्रतिशत सामग्री स्थानीय स्तर पर ही खरीदना अनिवार्य होगा।
नई डीपीपी में ऐसे कई नए विचार हैं, जो मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत स्वदेशी कंपनियों को प्रोत्साहन देते हुए रक्षा खरीद को तेज करने के लिए हैं। उदाहरण के लिए विलंब कम करने के लिए डीपीपी में कहा गया है कि किसी विशेष प्लेटफॉर्म के लिए सभी एओएन (एक्सेप्टेंस ऑफ नेसेसिटी) वर्तमान के 12 महीनों के बजाय केवल छह महीने के लिए वैध रहेंगे। इतना ही नहीं, जब तक अंतिम आरएफपी (प्रस्ताव अनुरोध अथवा विस्तृत निविदा) साथ नहीं होगा, तब तक किसी भी एओएन को अधिसूचित नहीं किया जाएगा। इस तरह बीच का एक चरण समाप्त हो जाता है क्योंकि एओएन के बाद आरएफपी की अधिसूचना लंबे अरसे के लिए लटक जाती थी।
परियोजनाओं की प्राथमिकता तय करना पहला कदम था। रक्षा खरीद महंगी होती है और चूंकि पिछले पांच वर्ष में बहुत कम खरीद की गई है, इसलिए पिछली बाकी खरीद का ढेर भी समस्या है। पिछले पांच वर्ष में प्रस्तावित परियोजनाओं का जायजा लेने से पता चला कि मंत्रालय में अधिकारी – असैन्य एवं सैन्य दोनों – तीनों सशस्त्र बलों के लिए जरूरी लगभग 400 छोटी-बड़ी परियोजनाओं को दबाए बैठे थे। व्यापक समीक्षा बताती है कि 400 के करीब परियोजनाओं में से लगभग एक-तिहाई अब अप्रासंगिक हो गई थीं। इसीलिए उन्हें खारिज कर दिया गया। लगभग 50 परियोजनाओं को गति दी गई क्योंकि वे बेहद आवश्यक थीं।
इसके बाद तीनों सेनाओं में उन महत्वपूर्ण योजनाओं को पहचाना गया, जिन्हें फौरन धन आवंटन तथा क्रियान्वयन की आवश्यकता थी। आंकड़े अपनी कहानी खुद कहते हैं: मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से रक्षा मंत्रालय ने 2,09751 करोड़ रुपये के कुल 124 नए ठेकों को मंजूरी दी। इनमें सेना के लिए तोप (आर्टिलरी गन), अटैक हेलिकॉप्टर तथा मीडियम लिफ्ट हेलिकॉप्टर (अमेरिका से चिनूक तथा अपाचे हेलिकॉप्टर), नौसेना के लिए युद्धपोत एवं सुरंग रोधी नौकाएं और वायु सेना के लिए आकाश मिसाइल शामिल हैं।
सितंबर 2016 में जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक किए थे और कुछ समय के लिए ऐसा लगा था कि पाकिस्तान बड़े युद्ध की तैयारी कर सकता है, उसके बाद भारत की सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने तीनोंसेनाओं को लगभग 20,000 करोड़ रुपये की खरीद तेजी से करने का अधिकार दे दिया था और वह रक्षा मंत्रालय के लिए सबसे उत्पादक वर्षों में एक साबित हुआ था।
यह काम प्राथमिकता के साथ करना पड़ा क्योंकि पिछली सरकारों ने बुनियादी जरूरतों को भी नजरअंदाज कर दिया था। संसद में प्रस्तुत की गई नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की पिछली रिपेार्ट ने निराशाजनक तस्वीर दिखाई थी। “न्यूनतम स्वीकार्य जोखिम स्तर पर भी गोलाबारूदों का एकत्रीकरण सुनिश्चित नहीं किया गया क्योंकि 170 में से 125 प्रकार के गोलाबारूद की उपलब्धता मार्च 2013 में इस स्तर से भी कम थी।” इसके साथ ही रिपोर्ट ने बताया कि गोलाबारूद की लगभग 50 प्रतिशत श्रेणियों में भंडार बहुत कम था – 10 दिन के युद्ध के लिए भी पर्याप्त नहीं था।
अब कम से कम 10 दिन के भीषण युद्ध के लिए गोलाबारूद की हर समय उपलबधता सुनिश्चित कर स्थिति ठीक कर ली गई है। एक बार उद्देश्य पूरा हो गया तो मंत्रालय भंडार को और भी भरने की व्यवस्था करेगा। तीनों सेनाओं के उप प्रमुखों एवं सैन्य कमांडरों को दिए गए वित्तीय अधिकारों में वृद्धि की गई है ताकि खरीद तेज हो सके। सदैव से बेहद सुस्त एवं अपारदर्शी कामकाज के लिए कुख्यात रक्षा मंत्रालय में यह बड़ा बदलाव है।
एक अन्य प्रमुख निर्णय में सरकार ने रक्षा मंत्रालय में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), स्वतः मार्ग से 49 प्रतिशत एफडीआई की और विशेष मामलों में 100 प्रतिशत तक एफडीआई की अनुमति दे दी। साथ ही, ‘अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी’ से संबंधित प्रतिबंधों को घटाकर ‘आधुनिक प्रौद्योगिकी’ पर ला दिया। इससे भारत में निवेश करने वाली रक्षा कंपनियों की संख्या बढ़ जाएगी।
तीनों सेनाओं की खरीद, आधुनिकीकरण के अलावा मोदी सरकार का सबसे बड़ा निर्णय था वरिष्ठ सैन्यकर्मियों की 40 वर्ष पुरानी ‘वन रैंक वन पेंशन’ की मांग पूरी कर देना। यद्यपि इस मसले पर असंतोष के कुछ स्वर भी उठे, लेकिन वास्तव में सरकार ने पूर्व सैन्यकर्मियों को उनका गौरव प्रदान करने के लिए आवश्यक राजनीतिक इच्छाशक्ति एवं प्रतिबद्धता दिखाई।
महत्वपूर्ण बात है कि रक्षा मंत्रालय ने अब अधिकृत, पंजीकृत एजेंटों को कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी है ताकि विलंब से बचा जाए और अनाम शिकायतों के कारण ठेके निरस्त नहीं होने दिए जाएं। अनाम चिट्ठियां अब कल की बात हैं। मंत्रालय किसी कंपनी पर प्रतिबंध लगाने के अधिकार का प्रयोग दुर्लभतम मामलों में ही करना चाहता है। पिछली सरकार ने दर्जन भर से ज्यादा फर्मों पर अंधाधुंध तरीके से प्रतिबंध लगाया और उपकरण खरीदने के लिए सरकार के विकल्प बहुत कम कर दिए।
पर्रिकर की योग्यता तथा सद्भावनाओं के बावजूद दशक भर लंबी भद्दी विरासत और एके एंटनी के कार्यकाल में पनपी सुस्ती तथा डर को खत्म करने के लिए पर्रिकर के उत्तराधिकारी को लगातार प्रयास करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि रक्षा मंत्रालय राष्ट्र को सुरक्षित करने का अपना कर्तव्य प्रभावी रूप से पूरा किया जाए।
पर्रिकर के उत्तराधिकारी को भारत में रक्षा प्लेटफॉर्म बनाने के लिए रणनीतिक साझेदारों का चुनाव, उच्चतर रक्षा प्रबंधन में सुधार (4 सितारा होने पर भी सीडीएस की नियुक्ति करना), अंतरिक्ष, साइबर तथा विशेष अभियानों के लिए संयुक्त कमानों की स्थापना पर काम करना होगा। यह काम करने, तेजी से करने के लिए सही पुरुष – अथवा महिला – को चुनना प्रधानमंत्री मोदी का काम है।
नितिन ए गोखले
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