आठ सितंबर को जब पाकिस्तानी नौसेना अपनी वर्षगांठ मना रही होगी, इस्लामाबाद स्थित उसका राजनीतिक नेतृत्व देश भर में चलाए जा रहे राहत कार्यों में फंसा होगा। एक तिहाई पाकिस्तान पानी में डूबा है और इकॉनमिस्ट के अनुमान के मुताबिक मॉनसून की भारी बारिश के चलते आई बाढ़ से कम से कम 5 लाख लोग बेघर हो गए हैं। इतना ही नहीं, देश जिस आर्थिक संकट से गुजर रहा है उस कारण आईएमएफ से हुए 1.1 अरब डॉलर के तात्कालिक भुगतान के बीच ही खाद्य पदार्थों और ईंधन के दाम बेतहाशा बढ़ गए हैं। सचमुच कठिन समय है पाकिस्तान के लिए!
इस तमाम उथलपुथल और राजनीतिक अस्थिरता के बीच भी इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तानी नौसेना के पास सितंबर (8) का उत्साहपूर्ण स्वागत करने की ठोस वजहें हैं, खासकर पिछले कुछ वर्षों में हुए इसके विकास और आधुनिकीकरण को देखते हुए। भारत से लगती 3,300 किलोमीटर लंबी सीमा को लेकर बनी सनक ही कहिए कि पाकिस्तानी नैसेना को शुरू से पाकिस्तान आर्मी के मुकाबले संसाधन कम मिले। नतीजतन यह एक ऐसे रक्षात्मक बल के रूप में उभरी जिसे अल्पविकसित सिस्टम वाले कुछ दर्जन जहाजों के बल पर समुद्री हमलों से राष्ट्रीय हितों की हिफाजत करनी थी।
लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों की आधुनिकीकरण योजनाओं के तहत इसे 50 से अधिक युद्धपोत, 10 परिवर्तित जेट्स (समुद्र निगरानी भूमिका में लगे पी3सी विमानों की जगह), 20 स्वदेश निर्मित गनबोट, मीडियम ऑल्टिट्यूड लॉन्ग-एंड्युरेंस (मेल) यूएवी का बेड़ा और समुद्री तथा जमीनी दोनों ठिकानों से छोड़े जा सकने लायक विस्तृत दूरी तक मार करने वाली तोपें ले जाने में सक्षम एंटी सरफेस बैलिस्टिक मिसाइल विकसित करने का प्रॉजेक्ट मिल गए हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो पाकिस्तानी नौसेना बहुत आगे बढ़ी है।
इसके बावजूद, आज की तारीख में औऱ निकट भविष्य में भी पाकिस्तानी नौसेना की जो सबसे बड़ी कमजोरी साबित होने वाली है वह है सिस्टम में पूर्ण आपसी तालमेल की कमी (सिस्टम्स इंटेरोपरेबिलिटी)। सिस्टम्स के तालमेल की यह कमी सेंसरों के डिटेक्ट करने, निर्णयकर्ताओं के निर्णय लेने और नौसेना कमांडरों के ऑपरेशन शुरू करने की रफ्तार को प्रभावित करती है। इसका सीधा मतलब है कि वायु, समुद्र और अंतर्जलीय (अंडरवाटर) क्षेत्रों में पाकिस्तानी नौसेना की आधुनिकीकरण योजनाओं के मार्ग में तीन कठिन चुनौतियां आने वाली हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एडमिरल विलियम एफ हालसे ने कहा था, ‘कोई बेड़ा पोकर या ब्रिज खेलते समय हाथ में मौजूद कार्डों की तरह होता है। आप इसे इक्के, दुक्के या बादशाह की तरह नहीं देखते। आप इसे एक इकाई के रूप में देखते हैं। फ्लीट भी आपके लिए एक युनिट होता है, कोई कैरियर, जंगी जहाज या डिस्ट्रॉयर नहीं। आप कोई खास कार्ड नहीं खेलते, आप अपना हैंड खेलते हैं।’ जाहिर है, ये एक-एक कार्ड पाकिस्तानी नौसेना को ‘गेम’ नहीं जिता सकते।
समुद्री परिवेश पूरी तरह असीमित होता है। यहां खतरा किसी भी तरफ से आ सकता है। यहां टोह लेते रहना जितना जरूरी है, उतना ही महत्वपूर्ण है ऐसा करते हुए नजर में आने से बचे रहना। पिछले 40 वर्षों में पाकिस्तानी नौसेना के सेंसिंग और शूटिंग सिस्टम्स में जबर्दस्त बदलाव हुए हैं।
सत्तर के दशक के आखिरी और अस्सी के शुरुआती सालों में पाकिस्तानी नौसेना को अमेरिका से पी-3सी ओरियन मैरिटाइम पेट्रोल प्लैटफॉर्म्स मिले और फिर अमेरिका से ही हशमत क्लास (अगस्ता 70) पनडुब्बियों के लिए एंटीशिप मिसाइल हारपून मिलीं। लेकिन नई सदी में आने के बाद से पाकिस्तान नेवी को नए जंगी जहाज सिर्फ चीन और तुर्की से मिल रहे हैं। हालांकि कुछ के स्वदेश निर्मित होने का दावा किया जाता है। इनमें चीन से आए चार तुगरिल (टाइप 054ए)- क्लास युद्धपोत औऱ तुर्की के इस्तांबुल स्थित शिपयार्ड से मिले चार बाबर (संशोधित एमआईएलजीईएम)- क्लास लड़ाकू जलपोत शामिल हैं। अंडरवाटर डोमेन में पाकिस्तान को 2023 तक चीन से आठ युआन क्लास पनडुब्बियां मिलना भी तय है।
जो बात तय नहीं है वह यह कि विभिन्न देशों से मिले उपकरणों के इन अलग-अलग अंगों (अमेरिका से मिले आलमगीर को भी भूलना नहीं चाहिए) को एक साथ मिलाकर इनका कुशलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा सकता है या इनका विलगाव पाकिस्तानी नौसेना की कुशलता को और कम ही कर देगा। मिसाल के तौर पर तुगरिल को ही लें तो यह चाहे जितना भी ताकतवर हो, अगर इसे अकेले इस्तेमाल किया गया या तुर्की में बने कई सारे लो-क्वॉलिटी लड़ाकू जलपोतों की सुरक्षा में लगा दिया गया तो यह सीमित प्रतिरोध ही दे सकेगा।
राजनीतिक या नौकरशाही क्षेत्रों में पाकिस्तानी सेना के दखल औऱ दबदबे के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा जाता रहा है। जाहिर है, पाकिस्तान में ज्यादा लोग स्टेट्समैन और मिलिटरी कमांडर के बीच के उस मजबूत संबंध के बारे में नहीं जानते जो 19वीं सदी के स्ट्रैटेजिस्ट कार्ल वॉन क्लॉजविट्ज ने स्थापित किया था। युद्ध को स्पष्ट तौर पर ‘नीति का औजार’ और ‘राजनीतिक गतिविधि का हिस्सा’ बताते हुए उसने कहा था, ‘युद्ध का अपने आप में कोई तर्क या मकसद नहीं होता। सैनिक को हमेशा स्टेट्समैन के अधीन होना चाहिए। युद्ध का संचालन उसी की जिम्मेदारी है…।’ पाकिस्तान में पूंछ (आर्मी) कुत्ते यानी राजनीतिक नेतृत्व को हिलाती है। नतीजा यह होता है कि जब युद्ध से जुड़े तमाम प्रयासों को एक साथ मिलाकर आगे बढ़ने की बात आती है तो तालमेल का अभाव दिखने लगता है। टकराव की स्थितियों में निश्चय ही यह एक बड़ी मुश्किल साबित होती है।
पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति 14 जनवरी 2022 को जारी की गई। इस पॉलिसी ने आर्थिक सुरक्षा को केंद्र में रखा और बंदूक बनाम लोक कल्याण की पारंपरिक बहस से हटकर चीजों को ऐसे व्यावहारिक नजरिए से देखने की जरूरत बताई जिसमें भावनात्मक नीति निर्माण के बजाय राष्ट्रीय हितों को तरजीह दी जाए। अगर राजनीतिक नेतृत्व इस पर सचमुच अमल करता है तो आर्थिक संकट और प्राकृतिक आपदा वाले इस दौर में इन्फ्रास्ट्रक्चर, अर्ली वॉर्निंग सिस्टम और पीड़ितों को जल्द से जल्द आर्थिक राहत देने जैसे मदों को प्राथमिकता मिलेगी। नौसेना की आधुनिकीकरण योजनाओं को इंतजार करना होगा। और इसका सीधा प्रभाव नेवी की तैयारियों पर पड़ेगा।
हालांकि पाकिस्तानी नौसेना ने हाल के दिनों में लंबी छलांगें लगाई हैं, खासकर विदेशी और स्वदेश निर्मित प्लैटफॉर्म्स को मिलाने के लिहाज से। लेकिन फिर भी, टकराव के दौरान आज की पाकिस्तान नेवी चीनी और तुर्की जहाजों की बेमेल क्षमता के कारण पंगु महसूस कर सकती है। नौसेना के लिए सबसे अच्छा यही होगा कि मौजूदा एनएसपी (राष्ट्रीय सुरक्षा नीति) के अनुरूप अपनी एंटी ऐक्सेस और एरिया डिनायल क्षमता बनाए रखने और बढ़ाने पर ध्यान दे।
तो पाकिस्तान नौसेना को वर्षगांठ मुबारक! लेकिन क्या यह युद्ध के लिए भी तैयार है? सच पूछिए तो नहीं।
कैप्टन डी के शर्मा (रिटायर्ड)