आखिर यांग्त्से ही क्यों?

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यांग्त्से ही होना था। यांग्त्से जिसे गुरु रिम्पोचे, जिन्हें पद्मसंभव के नाम से भी जाना जाता है, का आशीर्वाद हासिल था। पद्मसंभव यानी 8वीं शताब्दी में हुए नालंदा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जिन्होंने तिब्बत का तांत्रिक बौद्ध धर्म से परिचय कराया। यांग्त्से, जहां प्रसिद्ध चुमी ग्यात्से जलप्रपात है, जिसे पवित्र जलप्रपात कहा जाता है, जो तवांग सेक्टर में एलएसी के दोनों तरफ बौद्धों के लिए श्रद्धेय है और जिसमें गुरु रिम्पोचे द्वारा फेंके गए 108 मनकों के स्थान से निकले 108 जलस्रोत हैं। यांग्त्से ही होना था, जिस पर भारतीय सेना ने 1987 में सुमदुरुंग चू में चीनी अतिक्रमण के जवाब में कब्जा किया था। प्रतिकूल मौसम के चलते यांग्त्से में लंबे समय तक कोई आबादी नहीं रही। यांग्त्से ही होना था जहां मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने जुलाई 2020 में चुमी ग्यात्से जलप्रपात के पास एलएसी से बमुश्किल कुछ सौ यार्ड की दूरी पर एक मठ (विहार) का उद्घाटन किया था। यांग्त्से इतिहास, धर्म, राजनीति और सैन्य रणनीति – हर लिहाज से अहम है और पूर्वी एलएसी के आठ बड़े विवादित स्थानों में सबसे प्रमुख है। पीपल्स लिबरेशन आर्मी के लिए यांग्त्से पूर्वी सेक्टर में संभवतः सबसे वांछित स्थान है।

Chumi Gyatse waterfalls

 

तवांग से 25 से 30 किलोमीटर पूर्वोत्तर की ओर यांग्त्से एक बड़ा पठार है। एक तरफ इसकी 14000 से 17000 फीट तक की ऊंचाई पर स्थित चोटियां हैं तो दूसरी तरफ 11000 फीट पर पवित्र जलप्रपात। यांग्त्से के सुदूर कोनों में प्रसिद्ध ब्रह्मकमल खिलते हैं और दुर्लभ किस्म के बुरुंश मिलते हैं। यह अरुणाचल प्रदेश के सबसे दर्शनीय स्थलों में आता है। यांग्त्से पठार पर पांव टिकाने की जगह चीनी सेना की स्थिति को सामरिक लिहाज से काफी मजबूत बना सकती है। चीन एलएसी के अपनी तरफ घाटी वाले हिस्से में साल भर चलने वाली पक्की सड़क पहले ही बनवा चुका है जिसका इस्तेमाल पीएलए ही नहीं, तिब्बत और चीन के मुख्य हिस्से से आने वाले पर्यटक भी करते हैं। यह भारतीय सैनिकों का दृढ़ संकल्प ही है जिससे वे न केवल प्रतिकूल मौसम के बीच यांग्त्से पठार में टिके हुए है बल्कि कामेंग सेक्टर के इस संवेदनशील और सामरिक लिहाज से अहम क्षेत्र में घुस आने की पीएलए की कोशिशों को बार-बार नाकाम कर रहे हैं।

पीएलए के मन में शायद 1987-88 में यांग्त्से गंवाने की टीस अब भी बनी हुई है। सुमदुरुंग चू और नमका चू में भारतीय सेना के दबदबे वाली स्थिति को देखें तो तवांग सेक्टर में 1962 के समीकरण पलटे जा चुके हैं। भारत की तरफ क्षमता विकास और इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण के मोर्चे पर पिछले कुछ वर्षों में जबर्दस्त काम हुआ है जिससे चीन पहले जिस लाभदायक स्थिति में हुआ करता था, वह अब काफी हद तक समाप्त हो चुका है। तवांग सेक्टर में पीएलए को स्पष्ट रूप से शह और मात के खेल में घुटने टेकने को मजबूर कर दिया गया। पीएलए भारतीय सेना के बढते आधिपत्य के बीच खुद को अपेक्षाकृत कमजोर और नाकाफी महसूस करती है। पीएलए की ओर से अपना आधिपत्य स्थापित करने की बार-बार की कोशिश संभवतः

उभरते सुरक्षा हालात की यही सचाई बयान करती है। दूसरी ओर भारतीय सेना इन तमाम साजिशों को हर बार नाकाम करने का पूरा विश्वास रखती है। एलएसी पर आज यह सचाई स्वयंसिद्ध है।

 

लेफ्टिनेंट जनरल शांतनु, यूवायएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम (रिटायर्ड) पूर्व सेना उपप्रमुख हैं जो 3 अक्टूबर 2022 को रिटायर्ड हुए। उन्होंने 2020 में गजराज कोर का नेतृत्व किया जहां उनकी जिम्मेदारी अन्य क्षेत्रों के अलावा तवांग- यांग्त्से सेक्टर संभालने की भी थी।


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Lt Gen Shantanu Dayal (Retd)
लेफ्टिनेंट जनरल शांतनु, दयाल, यूवायएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम (रिटायर्ड) पूर्व सेना उपप्रमुख हैं जो 3 अक्टूबर 2022 को रिटायर्ड हुए। उन्होंने 2020 में गजराज कोर का नेतृत्व किया जहां उनकी जिम्मेदारी अन्य क्षेत्रों के अलावा तवांग- यांग्त्से सेक्टर संभालने की भी थी।.

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