संपादक की टिप्पणी
भारत में सी-295 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट बनाने का प्रोजेक्ट आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की दिशा में उठाया गया बेहद अहम कदम है। इस प्रोजेक्ट को एक प्राइवेट कंपनी ने ओईएम (ऑरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर्स) के साथ मिलकर लॉन्च किया है, अपने आप में यही तथ्य एरोस्पेस सेक्टर में हमारी डिजाइन और मैन्युफैक्चरिंग क्षमता को बढ़ाने वाला है। बहुत संभव है कि टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (टीएएसएल) और एयरबस डिफेंस एंड स्पेस, एसए, स्पेन का यह वेंचर जल्दी ही अपने मौजूदा दायरे को पार कर जाए और बाजार की जरूरतों के अनुरूप समय के साथ अपनी प्रस्तावित निर्माण क्षमता को बढ़ाता चले।
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भारतीय सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण भारत सरकार का केंद्रीय फोकस एरिया है। सरकार ने मिलिट्री एविएशन (सैन्य उड्डयन) सेक्टर सहित समस्त सशस्त्र बलों के जहाजों के आधुनिकीकरण पर 130 अरब डॉलर खर्च करने का रोडमैप तैयार कर लिया है। ‘मेक इन इंडिया’ पहल को जबर्दस्त मजबूती देते हुए और भारतीय सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (टीएएसएल) और एयरबस डिफेंस एंड स्पेस, एसए, स्पेन ने 30 अक्टूबर को वड़ोदरा, गुजरात में सी-295 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट बनाने की फैक्ट्री लॉन्च की। आत्मनिर्भरता की दिशा में यह कदम खास अहमियत इसलिए रखता है क्योंकि यह भारत में प्राइवेट सेक्टर का पहला प्लांट होगा जो मिलिट्री एयरक्राफ्ट बनाएगा।
भारत में मिलिट्री एविएशन इंडस्ट्री
हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) 1942 में अपनी शुरुआत के बाद से ही भारतीय वायुसेना के लिए और पिछले कुछ समय से थल सेना तथा नौसेना के लिए फाइटर जेट्स, हेलिकॉप्टर्स, जेट इंजिन और एवियॉनिक्स के प्रोडक्शन, डिजाइनिंग और मैन्युफैक्चरिंग के साथ ही भारतीय सैन्य विमानों की ओवरहॉलिंग, अपग्रेडिंग और उनके लिए सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट तथा स्पेयर सप्लाई के काम करती रही है। वास्तव में एचएएल मिग-21, मिग-27, बाइसन, जगुआर, हॉक और सु-30 के साथ ही किरण और एचपीटी-32 जैसे ट्रेनिंग एयरक्राफ्ट्स के जरिए भारतीय वायुसेना की फाइटर स्ट्रीम को मजबूती देने के काम में लगी रही है।
हेलिकॉप्टर मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में एचएएल ने बहुत तेजी से अपना दायरा बढ़ाते हुए तीनों सशस्त्र बलों के साथ ही तटरक्षक दलों की भी जरूरतों का ख्याल रखना शुरू कर दिया। यह शुरू में चेतक, चीता, लांसर, चीतल औऱ चेतन हेलिकॉप्टर्स बनाती तथा सप्लाई करती थी, लेकिन बाद में एडवास्ड वर्जन्स भी बनाने लगी। इस लिहाज से एक बड़ा कदम था देसी एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर ‘ध्रुव’ का निर्माण जो तीनों सेनाओं में बड़ी संख्या में शामिल किया गया। इसके हथियारबद्ध रूप ‘रुद्रा’ और हाल में आए लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर (एलसीएच) ‘प्रचंड’ ने मिलिट्री एविएशन मैन्युफैक्चरिंग फील्ड में आत्मनिर्भरता की राह पर भारत को काफी मजबूत स्थिति में ला दिया।
फाइटर जहाजों में हुई प्रगति भी सराहनीय है। भारत की एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए) के विकसित किए और एचएएल के बनाए लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस की मांग इतनी है कि इसका उत्पादन कम पड़ रहा है। यह 4.5 जेनरेशन का विमान है जिसके लिए भारतीय वायुसेना ने 300 से ज्यादा की संख्या तय की है। एलसीए के अन्य रूपों में ट्विन इंजिन डेक बेस्ड फाइटर (टीईडीबीएफ) शामिल है जो नौसेना के लिए है। पांचवें जेनरेशन के स्टेल्थ फाइटर एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) को विकसित करने का कार्य तय समय सीमा के अंदर हो जाए, इसके लिए जिस तरह की कोशिशें हो रही हैं, वह आत्मनिर्भर भारत में सैन्य उड्डयन के नए चेहरे का सबूत है।
स्वदेशी ट्रांसपोर्ट विमान का उत्पादन
मुख्यतया अपना ध्यान फाइटर्स और हेलिकॉप्टर्स पर केंद्रित रखते हुए भी एचएएल ने भारतीय वायुसेना और नौसेना की जरूरतों के मद्देनजर ट्रांसपोर्ट विमानों के विकास की ठीकठाक गति बनाए रखी। एचएएल ने पहले भारतीय वायुसेना और इंडियन एयरलाइंस के लिए हॉकर सिडली एचएस 748 विमान ‘एवरो’ बनाया और बाद में ट्विन टर्बोप्रॉप शॉर्ट टेक-ऑफ एंड लैंडिंग (एसटीओएल) युटिलिटी एयरक्राफ्ट डॉर्नियर 228 को भी अपनी लिस्ट में जोड़ लिया। इन दोनों विमानों का भारतीय वायुसेना ने कम्युनिकेशन रोल में खूब इस्तेमाल किया। डॉर्नियर का भारतीय नौसेना ने टोही और कम्युनिकेशन दोनों भूमिकाओं में उपयोग किया। ट्रेनिंग रोल में तो ये विमान दोनों सेनाओं में इस्तेमाल किए गए। दोनों लाइट ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट लाइट युटिलिटी रोल्स के लिए आज भी भारतीय वायुसेना का मुख्य सहारा बने हुए हैं। दो दशक पहले ही नैशनल एरोस्पेस लेबोरेट्रीज (एनएएल) लाइट ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट कैटिगरी में देश का पहला मल्टी-परपस सिविलियन एयरक्राफ्ट ‘सारस’ डिजाइन किया। इसी क्षेत्र में अगला कदम एनएएल का डिजाइन किया हुआ रीजनल ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट (आरटीए) या इंडियन रीजनल जेट (आईआरजे) है जिसका निर्माण एचएएल द्वारा 2026 तक होना है।
भारत में सी-295 का निर्माणः आत्मनिर्भरता की ओर एक और कदम
लंबे समय से महसूस की जा रही एचएल के बनाए एवरो विमानों को हटाने की जरूरत अब सी-295 ट्रांसपोर्ट विमानों की वड़ोदरा फैक्ट्री के लिए एयरबस डिफेंस एसए स्पेन और टीएएसएल के बीच ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत समझौता संपन्न होने के बाद पूरी होती जान पड़ रही है। समझौते के मुताबिक पहले 16 विमान उड़ान के लिए तैयार स्थिति में सितंबर 2023 से अगस्त 2025 के बीच मिलेंगे, जबकि भारत में बना पहला विमान सितंबर 2026 में फैक्ट्री से निकलेगा औऱ बाकी के 39 विमान अगस्त 2031 तक मिलेंगे। जो 40 सी-295 विमान टाटा एरोस्पेस एंड डिफेंस (टाटा ए एंड डी) बनाएगी, उनमें 8 सेमी नॉक्ड डाउन (एसकेडी) किट्स से आएंगे और 8 एंटायरली नॉक्ड डाउन (सीकेडी) किट्स से। बाकी 24 विमानों की असेंबलिंग और सब-असेंबलिंग यहीं होगी। इसका मतलब यह है कि मोटे तौर पर हर साल 8 विमानों का उत्पादन होगा।
समकालीन तकनीक से लैस सी-295 पांच से दस टन क्षमता वाला ऐसा ट्रांसपोर्ट विमान है जो सैन्य परिस्थितियों में सैनिकों और कार्गो लाने ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है और टैक्टिकल ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट के रूप में तैनात किया जा सकता है। इसे कठिन हवाई पट्टियों पर और ग्राउंड सपोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर पर कम से कम निर्भरता के साथ संचालित किया जा सकता है। कहते हैं कि यह पूरी तरह लोडेड स्थिति में भी बिना किसी खास दिक्कत के सॉफ्ट ग्राउंड पर इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें ऑटो-रिवर्स की भी क्षमता है। महज 12 मीटर की चौड़ाई में यह रनवे पर 180 डिग्री तक घूम सकता है। यह 71 सैनिक या 50 पैराट्रुपर्स लेकर उन लोकेशन में भी जा सकता है जो मौजूदा भारी विमानों की पहुंच में नहीं हैं।
टैक्टिकल ट्रांसपोर्टर की अपनी भूमिका के अलावा भी सी-295 कई तरह के मिशंस कारगर ढंग से अंजाम दे सकता है। इनमें पैराशूट और कर्गो ड्रॉपिंग, इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस, मेडिकल इवैक्युएशन और मैरीटाइम पेट्रोल शामिल हैं। इन अलग-अलग भूमिकाओं के लिए आवश्यक कई उपकरण पैलेट पर लगे हुए हैं जिससे जरूरत के मुताबिक इन्हें तुरंत लगाया या हटाया जा सकता है। चूंकि ये विमान छोटी या अधबनी हवाई पट्टियों पर भी ऑपरेट कर सकते हैं इसलिए ये घाटियों में या हिमालय की ऊंचाइयों पर चलाए जाने वाले ऑपरेशंस के लिए भी उपयुक्त होंगे। भविष्य में जरूरत पड़ने पर हवाई बमबारी का काम भी इन विमानों से लिया जा सकता है।
यह अपनी तरह का पहला औऱ डिफेंस सेक्टर में सबसे बड़ा निवेश है जिससे देशी डिफेंस और एविएशन मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम को बढ़त मिलने वाली है। टाटा-एयरबस सी-295 मैन्युफैक्चरिंग प्लांट ने भारत में प्राइवेट सेक्टर को टेक्नॉलजी-इंटेंसिव और बेहद कॉम्पिटिव एविएशन इंडस्ट्री में प्रवेश करने का शानदार अवसर मुहैया कराया है। यह देशी निर्माण क्षमता में इजाफा करेगा जिससे आयात पर निर्भरता कम होगी और रक्षा निर्यात बढ़ेगा।
सी-295 प्रोजेक्ट का भारत में सैन्य उड्डयन के भविष्य पर प्रभाव
भारत में सैन्य उड्डयन (मिलिट्री एविएशन) तेजी से प्रगति कर रहा है और हाल में आत्मनिर्भरता पर दिए गए जोर की बदौलत यह सेक्टर असाधारण रफ्तार पकड़ने जा रहा है। घरेलू मैन्युफैक्चरिंग क्षमता बढ़ाने के लिए समकालीन टेक्नॉलजी का सहारा लेने और प्राइवेट सेक्टर को साथ लेकर चलने से स्वदेशी मैन्युफैक्चरिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को निश्चित रूप से बढ़त मिलेगी।
भारत में सी-295 की मैन्युफैक्चरिंग जैसे प्रोजेक्ट का लॉन्च होना बताता है कि ‘मेक इन इंडिया, मेक फॉर दि वर्ल्ड’ पहल के तहत देश कितना आगे बढ़ गया है। यह डिफेंस सेक्टर में सबसे बड़ा और अपनी तरह का पहला निवेश है जो देश में घरेलू डिफेंस और एविएशन मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम को मजबूती देने वाला है। भारत सबसे तेजी से बढ़ा हुआ एयरलाइन मार्केट है और यहां सिविल एयरक्राफ्ट और इंजिन की भारी मांग है। यहां मेनटेनेंस, रिपेयर एंड ओवरहॉल (एमआरओ) का भी ठीकठाक मार्केट है जिसे भुनाने की जरूरत है। मिलिट्री एविएशन सेक्टर में प्रगति के तौर पर भारत पहले ही देश में बने एलसीए, एलसीएच जैसे विमानों और ब्रह्मोस जैसे हथियारों का निर्यात शुरू कर चुका है। ट्रांसपोर्ट सेक्टर और यूएवीज में भी इस तरह के प्रयास जारी रखने होंगे।
आज हम आत्मनिर्भर भारत मिशन के तहत वैल्यू चेन में हुई प्रगति की बदौलत भारत को एक ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब में रूपांतरित होते देख रहे हैं। एक भरोसेमंद रक्षा उत्पादक राष्ट्र के तौर पर भारत की साख बनाने के लिए यह रफ्तार बनाए रखनी होगी।
एयर कमोडोर एसपी सिंह, वीएमएस (रिटायर्ड)