संपादक की टिप्पणी
इजरायल फिलिस्तीन विवाद ऐसा ज्वालामुखी बना हुआ है जिसमें समय-समय पर विस्फोट होता रहता है, हालांकि उससे दोनों में से किसी भी पक्ष को कुछ हासिल नहीं होता सिवाय हताहतों की संख्या बढ़ने के। आसपास के पड़ोसी देश ही नहीं, दूर दराज के देश भी इसमें दिलचस्पी खोने लगे हैं। गाजापट्टी का पूरा इलाका और इजरायल के कुछ इलाके इसकी कीमत चुका रहे हैं, लेकिन मकसद किसी का भी पूरा नहीं हो रहा।
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पांच अगस्त 2022 को इजरायल ने ‘ऑपरेशन ब्रेकिंग डॉन’ कोडनेम के साथ गाजापट्टी में एक अभियान शुरू किया जिसके निशाने पर फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (पीआईजे) था। तीन दिन चले इस अभियान का कारण, इजरायल के दावों के मुताबिक, ‘पीआईजे की ओर से इजरायली नागरिकों पर हमले का खतरा’ था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक गाजा पट्टी में 44 लोग मारे गए जिनमें 16 बच्चे थे। कुल 360 लोग घायल हुए जिनमें तीन इजरायली नागरिक थे। इस झड़प का कारण बनीं वे इजरायली खुफिया सूचनाएं जिनके मुताबिक पिछले कुछ महीनों में पीआईजे ने इजरायली इलाकों पर हमला करने के इरादे से गाजापट्टी में सैन्य हथियार इकट्ठा कर लिए थे।
इजरायली बलों ने एहतियातन 1 अगस्त को जेनिन में पीआईजे के पश्चिमी तट प्रमुख बसम अल सादी और उनके करीबी सहायक अशरफ अल-जदा को गिरफ्तार कर लिया। इजरायली सुरक्षा एजेंसी शबक की ओर से जारी बयान के मुताबिक पीआईजे पश्चिमी तट में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाता जा रहा था और उसके पीछे मास्टरमाइंड अल-सादी ही था। बताया जाता है कि पीआईजे ने काफी हथियार इकट्ठा कर लिए थे और ऐंटी टैंक मिसाइलों के जरिए इजरायल के सीमावर्ती क्षेत्रों पर हमले करने की योजना बना रहा था। इसीलिए इजरायल ने अपनी पहल पर इस खतरे को समाप्त करने का फैसला किया। प्रमुख निशानों में पीआईजे के उत्तरी कमांडर तायसिर अल-जबारी थे जिनका अपार्टमेंट पांच अगस्त को मिसाइल हमले से उड़ा दिया गया। इसके बाद छह अगस्त को दक्षिणी क्षेत्र के कमांडर तथा गाजापट्टी में अल-कुद्स ब्रिगेड ग्रुप के संस्थापकों में रहे खालिद मंसूर भी मारे गए। अल-जबारी का मारा जाना काफी अहमियत रखता है क्योंकि बहा अबू अल-अता के मारे जाने के बाद से वह आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे। अबू अल-अता भी एक इजरायली हमले में ही नवंबर 2019 में मारे गए थे।
तीन दिनों की गोलीबारी के बाद सात अगस्त 2022 को मिस्र (इजिप्ट) की मध्यस्थ्ता में इजरायल और पीआईजे युद्धविराम के लिए सहमत हुए। गाजापट्टी पर शासन कर रहा हमास युद्ध में पीआईजे के साथ सीधे तौर पर शामिल नहीं था, लेकिन उसने नैतिक समर्थन दिया था। अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया मिलीजुली और अपेक्षित ही रही। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने इजरायल के ‘हमलों से आत्मरक्षा के अधिकार’ के प्रति समर्थन दोहराया, जबकि मध्यपूर्व शांति प्रक्रिया के संयुक्त राष्ट्र विशेष संयोजक (स्पेशल को-ऑर्डिनेटर) टोर वेनेसलैंड ने नागरिकों के हताहत होने पर चिंता जताई और बाद में युद्धविराम का स्वागत किया। ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश मंत्री लिज ट्रस ने इजरायल और उसके आत्मरक्षा के अधिकार के प्रति अपने देश का समर्थन जताया।
ईरान ने उम्मीद के अनुरूप ही आक्रामक प्रतिक्रिया जताई। ईरानियन रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के कमांडर मेजर जनरल सलामी ने कहा कि ‘इजरायलियों को एक बार फिर अपने हालिया अपराधों के लिए भारी कीमत चुकानी होगी।’ रूस ने इन झड़पों की जिम्मेदारी इजरायल पर डालते हुए कहा कि लड़ाई इजरायली वायु सेना के गाजापट्टी पर हमले करने के बाद शुरू हुई, फिलिस्तीनी आतंकी समूहों ने सिर्फ इसका जवाब दिया।
हालांकि लड़ाई, अस्थायी तौर पर ही सही, अभी थम गई है, लेकिन यह कोई पहला मौका नहीं है जब इजरायल और फिलिस्तीनी ग्रुपों के बीच तीखा संघर्ष हुआ हो। पीछे मुड़कर एक नजर डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि यह लड़ाई न सिर्फ किश्त-दर-किश्त चल रही है बल्कि इसका चरित्र काफी कुछ सुनियोजित है। हालांकि हर बार दोनों पक्ष एक दूसरे पर उकसाने का आरोप लगाते हैं, लेकिन गहराई से देखा जाए तो तनाव बढ़ाने के पीछे घरेलू कारणों की भूमिका स्पष्ट हो जाती है। आइए 2007 से अब तक इस क्षेत्र में हुए टकरावों पर एक नजर डालते हैं, इसी साल हमास ने गाजापट्टी के चुनावों में जीत हासिल की और तब से वहां सत्ता में है।
2007 में हमास के सत्ता में आने के कुछ ही समय बाद इजरायल ने गाजा को दुश्मन क्षेत्र घोषित करते हुए न केवल इसकी नौसैनिक नाकाबंदी कर दी बल्कि और भी कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए। लेकिन पहला बड़ा संघर्ष 2008 में ‘ऑपरेशन कास्ट लीड’ के रूप में तब सामने आया जब 4 नवंबर को इजरायल ने सीमा पर बनाई गई एक सुरंग को नष्ट करने के लिए गाजापट्टी में छापामारी शुरू कर दी। गाजा-इजरायल सीमा पर यह सुरंग उग्रवादियों ने इजरायल में घुसपैठ के मकसद से खोदी थी। इस क्रम में हमास के छह लोग मारे गए। इस वजह से दोनों तरफ तनाव काफी बढ़ गया और सात दिसंबर को इजरायल ने ऑपरेशन कास्ट लीड शुरू कर दिया। कास्ट लीड गाजापट्टी पर किया गया सैन्य हमला था जिसमें 3 जनवरी 2009 को शुरू किया गया जमीनी आक्रमण भी शामिल था। गाजापट्टी में हुए जानमाल के भारी नुकसान और जबर्दस्त अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच 18 जनवरी को यानी अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के शपथ ग्रहण से एक दिन पहले, दोनों पक्षों ने युद्धविराम घोषित किया।
चार साल बाद हुआ अगला टकराव, ‘ऑपरेशन पिलर ऑफ डिफेंस’। इजरायल ने गाजा से कथित तौर पर होने वाले रॉकेट हमलों को रोकने और दक्षिण इजरायल के नागरिकों को बचाने के लिए उस पर हमला कर दिया। यह हमास के मिलिटरी विंग के प्रमुख अहमद जाबरी की टारगेटेड हत्या के साथ शुरू हुआ। 16 नवंबर को हमास के सेंट्रल कमांड चीफ अहमद अबू जलाल भी मारे गए। ऑपरेशन आठ दिनों तक चला जिससे जान माल का भारी नुकसान तो हुआ ही, राजनीतिक समाधान निकाले जाने की संभावना भी दूर हो गई।
दो साल भी नहीं हुए कि 18 जुलाई 2014 को इजरायल ने ‘ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज’ के रूप में फिर हमला बोल दिया। इसकी वजह बनी फिलिस्तीनियों द्वारा 11 जून को पश्चिमी तट से तीन इजरायली युवाओं की अपहरण के बाद हत्या। इस घटना के जवाब में फिलिस्तीनी गांवों और शहरों पर इजरायली सैन्य छापमारी शुरू हो गई। इजरायल ने गाजापट्टी पर बम भी बरसाए। बदले में फिलिस्तीनी ग्रुपों ने इजरायल पर रॉकेट छोड़े। नतीजा यह कि इजरायल ने ‘ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज’ शुरू कर दिया। युद्ध विराम 26 अगस्त को हुआ, तब तक क्षेत्र का एक और खूनी अध्याय लिखा जा चुका था। प्रसंगवश, इजरायल ने इस दौरान पहली बार अपना ऐंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम ‘आयरन डोम’ का इस्तेमाल किया जो रॉकेट और मिसाइल हमलों से इजरायली क्षेत्र की रक्षा करने में काफी कामयाब साबित हुआ।
2014 के बाद देखें तो सीमा के आरपार छोटी-मोटी झड़पें और रॉकेट/ मिसाइल हमले होते रहे लेकिन बड़ा टकराव हुआ छह साल के बाद, मई 2021 में- ‘ऑपरेशन गार्डियन ऑफ वॉल्स’। इस संघर्ष की तात्कालिक वजह बनी 13 अप्रैल को पुराने यरूशलम शहर के दमिश्क गेट इलाके में इजरायली पुलिस द्वारा बेरिकेडिंग (नाकाबंदी) के जरिए पवित्र रमजान महीने के पहले दिन फिलिस्तीनी अरबों को अल-अक्सा-मस्जिद में नमाज पढ़े जाने से रोका जाना। यह मस्जिद मुसलमानों की तीसरी सबसे पवित्र जगह मानी जाती है और बेरिकेडिंग से बड़े पैमाने पर नाराजगी फैली। इसका व्यापक विरोध शुरू हो गया। सात मई को रमजान के आखिरी शुक्रवार भी फिलिस्तीनियों और इजरायली पुलिस में झड़पें हुई जिसके बाद पुलिस मस्जिद में घुस गई और सैकड़ों फिलिस्तीनी घायल हुए।
10 मई को हमास ने इजरायल को चेतावनी दी कि वह अल अक्सा मस्जिद से अपने सुरक्षा बलों को वापस बुला ले। इसके बाद 10-11 मई की दरमियानी रात हमास के रॉकेट हमलों ने युद्ध भड़का दिया। इजिप्ट (मिस्र) की मध्यस्थता से 21 मई को युद्धविराम तो हुआ, लेकिन बड़े पैमाने पर हुए जान माल के नुकसान के कारण किसी तरह का हल निकलने की संभावना और दूर हो गई। और एक साल से कुछ ही ऊपर हुआ कि हम पिछले महीने एक बार फिर ऐसे ही संघर्ष का गवाह बने।
साफ है कि इन टकरावों का स्वरूप तात्कालिक नहीं है। यह एक तरह की निरंतरता लिए हुए है। 2014 से 2021 के बीच की अपेक्षाकृत शांत अवधि में भी कई सारी झड़पें हुईं जो खुशकिस्मती से पूर्ण युद्ध में तब्दील नहीं हुईं। इन झड़पों ने दोनों राज्यों की ओर से कोई हल सामने लाए जाने की संभावनाओं को तो कोई मजबूती नहीं ही दी, एक और नुकसान यह किया कि आसपास के देश और आम तौर पर पूरी दुनिया ही इन विवादों को लेकर उदासीन हो गई। 2018 में इजरायल और अरब देशों – यूएई, बहरीन, सूडान और मोरक्को- के बीच औपचारिक कूटनीतिक संबंध स्थापित करने वाला अब्राहम समझौता बताता है कि इस क्षेत्र के देश अब इजरायल को दुश्मन या समस्या नंबर वन माने रहने की मानसिकता से उबर रहे हैं।
इजरायल और सऊदी लीडरशिप के बीच बातचीत आगे बढ़ने की भी खबरें हैं जिसके बारे में पहले सोचा भी नहीं जा सकता था। तुर्की इजरायल से अपने संबंध बेहतर कर रहा है जबकि इजिप्ट जरूरत पड़ने पर इजरायल और फिलिस्तीन के बीच मध्यस्थता की अपनी भूमिका जारी रखे हुए है। बस्तियां बढ़ती जा रही हैं जिससे भविष्य में फिलिस्तीन राज्य को दी जाने वाली संभावित जमीन का हिस्सा कम होता जा रहा है। इसके अलावा इजरायल-फिलिस्तीन के बीच जब तब होती ये झड़पें दो राज्यों के संभावित हल की व्यावहारिकता को लेकर भी आश्वस्त नहीं होने देतीं।
हालांकि हो सकता है अपनी तकनीकी और सैन्य श्रेष्ठता की बदौलत इजरायल इन झड़पों की ज्यादा परवाह न करता हो, लेकिन फिर भी उसे सोचने की जरूरत है कि आखिर ऐसी स्थिति कब तक चल सकती है, खासकर तब जब अगले साल यह अपने गठन के 75वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहा है। फिलिस्तीनी ग्रुपों को भी गहराई से सोचना होगा, पहले तो अपने आंतरिक मतभेदों के बारे में, फिर अपने संघर्ष में एकजुटता लाने के सवाल पर और फिर यह भी कि भविष्य में स्वतंत्र देश की अपनी लडाई को वे कैसे जारी रखेंगे और कैसे अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करेंगे। इस बीच कम से कम ये दोनों देश इतना तो कर ही सकते हैं कि लगातार होने वाली झड़पों पर रोक लगाकर शांति को एक मौका दें।
कर्नल राजीव अग्रवाल (रिटायर्ड)