चीन में क्या और कितना बदल रहे हैंशाह शी ताना

0

ज्यादातर तानाशाह अपनी जनता के शब्दों और कार्यों पर नियंत्रण रखते हैं। सही मायनों में महत्वाकांक्षी नेता अपने लोगों के सपनों को निर्देशित करना चाहते हैं।’- द इकॉनमिस्ट, 10 नवंबर 2022 में प्रकाशित चीनी सपनों को संशोधित करते शी चिनफिंग से।

 

शुरुआती जिंदगी

शी चिन फिंग का जन्म शी झोंगशुन के घर हुआ था जो एक समय चीन के उप प्रधानमंत्री थे और चेयरमैन माओ के शुरुआती साथियों में शामिल रहे। पिता शी की छवि एक तरह के बागी या सुधारक की थी।। वह अक्सर पार्टी और सरकार की आंखों में खटकते ही रहे, खासकर सांस्कृतिक क्रांति (1966-76) के दौरान और उससे पहले। वह उन कुछेक लोगों में थे जिन्होंने 1989 में थ्यान-आनमेन स्क्वेयर की घटना के दौरान सरकारी कार्रवाई की खुलकर आलोचना की थी।

शुरुआती जिंदगी सुध-सुविधाओं के बीच गुजारने के बाद 1969 में शी चिनफिंग को देहात (शांची प्रांत) जाना पड़ा, जहां उन्होंने शारीरिक श्रम करते हुए छह साल बिताए। एक स्वाभाविक नेता के तौर पर उन्होंने किसान वर्ग के साथ स्थायी रिश्ता बना लिया जो ताजिंदगी उनकी छवि को मजबूती औऱ विश्वसनीयता देता रहा।

कामयाबी की सीढियां

सुधारक पिता के विपरीत शी की छवि समझदारी और ईमानदारी के साथ पार्टी लाइन का अनुसरण करने वाले नेता की रही। 1974 में चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी (सीसीपी) जॉइन करने के तुरंत बाद शी ने पेइचिंग के प्रतिष्ठित त्सिंगहुआ यूनिवर्सिटी से मजदूर-किसान-सैनिक छात्र के रूप में केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। परिवार की ऊंची हैसियत की बदौलत  उनकी प्रगति काफी आसान रही। यह कुछ वैसा ही था जैसे भारत में फिल्म क्षेत्र में स्टार किड्स के साथ होता है।

पहला असाइनमेंट ही शानदार था- उपराष्ट्रपति तथा राष्ट्रीय रक्षा मंत्री गेंग बियाओ के सचिव के तौर पर तीन साल का कार्यकाल। अन्य अहम मुकाम धीरे-धीरे मिलते रहेः हेबेई प्रांत में उप सचिव बने, उसके बाद फूजियान प्रांत के शियामेन (अमोय) में पार्टी कमिटी मेंबर और वाइस मेयर बने। जानी मानी सिंगर पेंग लिय्यान से 1987 में शादी की। 1999 में फूजियान प्रांत के एक्टिंग गवर्नर और 2000 में गवर्नर बने। 2002 में झेजियांग प्रांत के गवर्नर और पार्टी सेक्रेटरी का पद मिला। ऊपरी स्तरों पर भ्रष्टाचार के कारण शंघाई के पार्टी सेक्रेटरी के रूप में विशेष चयन हुआ। अक्टूबर 2007 में हू चिनताओ के नेतृत्व में नौ सदस्यीय पोलित ब्यूरो का सदस्य निर्वाचित हुए, 2008 में उपप्रधानमंत्री और अक्टूबर 2010 में सेंट्रल मिलिटरी कमिशन (सीएमसी)  के वाइस चेयरमैन बने। नवंबर 2012 में पोलित ब्यूरो की सात सदस्यीय स्थायी समिति में पुनर्निर्वाचित हुए और 15 नवंबर 2012 को महासचिव और सीएमसी के चेयरमैन के रूप में हू की जगह ली। इसके बाद 12वीं पार्टी कांग्रेस के दौरान 14 मार्च 2013 को राष्ट्रपति चुने गए।

लोकप्रिय और करिश्माई शी

शी ने चीनी सपने को साकार करने के लुभावने वादे के साथ राष्ट्रपति पद ग्रहण किया। निस्संदेह, राष्ट्रपति बनने के बाद से और उससे पहले भी शी ग्रामीण और शहरी दोनों तबकों में खासे लोकप्रिय रहे हैं। उन्होंने इन लोगों के जीवन स्तर में जबर्दस्त सुधार किया और उनके पूर्ववर्तियों की ही तरह उनके शासनकाल में भी आर्थिक विकास की तेज रफ्तार बनी रही। जो सख्तियां लाई गईं हैं जो पाबंदियां लादी गई हैं, उन्हें लोगों ने पैकेज के हिस्से के रूप में या विकास की एक छोटी सी कीमत के रूप में स्वीकार कर लिया है।

उन्होंने भ्रष्टाचार, क्रोनी कैपिटलिज्म औऱ अमीर तथा गरीब के बीच की विषमता जैसे बड़े मुद्दे उठाए और इनमें राष्ट्रवाद तथा दुनिया में चीन की बढ़ती हैसियत की नशीली कहानी जोड़ दी जिसमें सैन्य शक्ति और टेक्नॉलजी के क्षेत्र में चीनी अगुआई की शेखी बघारी गई थी। ग्लोबल एक्सपोर्ट फैक्ट्री की चीन की छवि और कमजोर तथा विकासशील देशों को बिना शर्त दिए जाने वाले उदार राहत पैकेजों ने इन कहानियों की चमक बढ़ा दी।

सीसीपी हमेशा सबसे ऊपर

सोवियत संघ की टूटन और उसके बिखराव ने शी को गहरे प्रभावित किया। दिसंबर 2012 में महासचिव बनने के ठीक बाद शी ने गुआंगदोंग प्रांत के कार्यकर्ताओं के सामने भाषण दिया था। भाषण हालांकि बंद दरवाजों के भीतर दिया गया था, लेकिन इसके अंश लीक हो गए और 2013 की शुरुआत में एक चीनी पत्रकार ने इसे प्रकाशित कर दिया। सोवियत संघ क्यों बिखर गया? सोवियत कम्यूनिस्ट पार्टी आखिर क्यों खत्म हो गई? एक बड़ा कारण यह था कि उनके आदर्श और विश्वास हिल गए थे। यह हमारे लिए गंभीर सबक है। सोवियत संघ और सोवियत कम्यूनिस्ट पार्टी को खारिज करना, लेनिन और स्टालिन को खारिज करना और अन्य तमाम बातों को खारिज करना ऐतिहासिक शून्यवाद में उलझना है। यह हमारे सोच में उलझाव पैदा करता है और हर स्तर पर पार्टी संगठन को कमजोर करता है।

सेंट्रल कमिटी ने अप्रैल 2013 में पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए डॉक्युमेंट नंबर 9 (जिसका औपचारिक सा शीर्षक था- विचारधारात्मक क्षेत्र में मौजूदा स्थिति पर विज्ञप्ति) जारी किया गया जो शी-युग का मूलभूत पाठ साबित हुआ। संदेश बिलकुल स्पष्ट था। पश्चिमी देश घुसपैठ करके सीसीपी को नष्ट करने, इसे सत्ता से निकाल फेंकने की साजिश कर रहे हैं। इसलिए पार्टी को पश्चिम की फर्जी वैचारिक प्रवृत्तियों पर पूरी तरह रोक लगानी होगी जिनमें संवैधानिक लोकतंत्र, सिविल सोसायटी, आर्थिक नवउदारीकरण, पत्रकारीय स्वतंत्रता, इतिहास के पार्टी वर्जन को दी जाने वाली चुनौतियां और सुधार तथा खुलेपन के पार्टी के अजेंडे की अलग-अलग व्याख्याएं शामिल हैं।

डॉक्युमेंट नंबर 9 कहता है, इन खतरों को देखते हुए हम जरा भी लापरवाही नहीं बरत सकते, सावधानी कम नहीं कर सकते। ध्यान रहे, सीसीपी ने कभी भी अपनी विचारधारात्मक या राजनीतिक सत्ता को मिलने वाली किसी चुनौती को बर्दाश्त नहीं किया और न ही कभी अपनी नीतियों के कठोर क्रियान्वयन में कोई हिचक दिखाई। फिर भी आर्थिक प्रगति के चार दशकों के दौरान करोड़ों व्यक्तियों की निजी महत्वाकांक्षा और उद्यमिता के लिए गुंजाइश हमेशा बनी रही।

 

तानाशाही की ओर रुझान और बढ़ता आंतरिक नियंत्रण

अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान शी ने बार-बार बढ़ती विषमता, बढती उदारता और पश्चिम के बढते प्रभाव का जिक्र किया। 2015 में उन्होंने धर्म पर पार्टी नियंत्रण को और सख्त बनाने से शुरुआत की। 19वीं पार्टी कांग्रेस में उन्होंनेअसंतुलित और अपर्याप्त विकास के दुष्परिणामों को रेखांकित करते हुए अत्यधिक आमदनी को व्यवस्थित करने की बात कही। उन्होंने साझा समृद्धि की नीति शुरू की।

पिछले साल उन्होंने लाभ के उद्देश्य से स्कूली बच्चों को पढ़ाना बैन करते हुए विदेशों से लॉगइन कर ऑनलाइन लैंग्वेज पढ़ाने वाले टीचर्स पर भी रोक लगा दी। यह ऑनलाइन पढ़ाई ग्रामीण और शहरी मध्यवर्गीय आबादी में खास तौर पर बेहद लोकप्रिय थी। शी ने रियल स्टेट सेक्टर में स्पेक्युलेशन रोकने के लिए ठोस कदम उठाए और बाजार में भरोसे का संकटपैदा करने वाले जैक मा जैसे दिग्गजों के भी पंख कतरे।

उन्होंने विडियो गेम प्लैटफॉर्म्स पर भी बंदिशें लगाईं और युवाओं को विदेशी फिल्में खासकर पश्चिम की फिल्में दिखाया जाना बहुत कम कर दिया। आंतरिक और बाहरी ऑडिएंस के सामने दिए गए उनके हालिया बयान इस बात में कोई संदेह नहीं रहने देते कि शी सीसीपी को कमजोर करने वाली किसी भी असंतुष्ट गतिविधि को दबाने के लिए निर्णायक कदम उठाने में संकोच नहीं करेंगे। सभी विश्लेषक इस बात से सहमत हैं कि उनके बयान और कार्य विचारधारा से निर्देशित होते हैं और सीसीपी की सर्वोच्चता सुनिश्चित करते हैं।

20वीं कांग्रेस के बाद अपेक्षाएं

शी के हाथों में पूरी सत्ता की केंद्रीकृत कमान आ चुकी है। पोलित ब्यूरो के आर्थिक मामलों के जानकार सदस्यों की जगह कट्टर निष्ठावान लोग लाए जा चुके हैं और पार्टी संविधान में मार्गदर्शक सिद्धांत के तौर पर संघर्ष की स्टालिनवादी-माओवादी अवधारणा प्रतिष्ठित हो चुकी है। पहले का नारा – सुधार और खुलापन- किनारे किया जा चुका है। उनकी शासन शैली में ताईवान को चीन से मिलाने की गहरी इच्छा, अंदर से विद्रोह की आशंका, अमेरिका के प्रति दुश्मनी के साथ ही रूस से सहानुभूति और पूंजीवादी पश्चिम पर साम्यवाद की निर्णायक जीत के दृढ़ विश्वास की झलक दिनोदिन स्पष्ट होती जा रही है।

प्रतिकूल आर्थिक परिणामों के बावजूद शी विश्व व्यवस्था पर चीनी दबदबा कायम करना चाहते हैं। भू-राजनीतिक, कूटनीतिक औऱ सामरिक तौर पर आक्रामक विदेश नीति अपनाते हुए शी ने अपनी सशस्त्र सेनाओं का आधुनिकीकरण किया, उसे युद्ध क्षेत्र को इंटेलिजेंटाइज करके लड़ने और जीतने में सक्षम बनाया। उनकी अगुआई में चीन ने सैन्य और असैन्य क्षेत्रों में अच्छा तालमेल कायम करके जबर्दस्त तकनीकी उन्नति हासिल की और आज आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई), 5जी टेलिकम्युनिकेशन नेटवर्क्स, बिग डेटा, अल्ट्रा-हाई वोल्टेड इलेक्ट्रिसिटी नेटवर्क्स (हाई-स्पीड रेल), सैटलाइट और एंटी सैटलाइट टेक्नॉलजी आदि में ग्लोबल लीडर माना जाता है। 

अच्छा कहें या बुरा, पुतिन की थोड़ी-बहुत मदद से राष्ट्रपति शी ने दुनिया को विचारधारा और शासन का एक वैकल्पिक मॉडल मुहैया कराया। आश्चर्य नहीं कि यह मॉडल तानाशाह नेताओं और अमेरिका की अगुआई वाले उदार, लोकतांत्रिक मूल्यबोध के दोहरे मानदंडों से तंग आ चुके देशों को खूब रास आ रहा है।

शी और विरोध प्रदर्शनों की सुनामी

देशवासियों पर और मीडिया पर सीसीपी के कड़े नियंत्रण के बावजूद पिछले साल से जिस तरह पूरे देश में विरोध तेज होता जा रहा है, वह सचमुच बड़ी बात है। कोविड को लेकर बरती जा रही सख्ती पर शुरू में तो लोगों का समर्थन मिला (खासकर यह बताए जाने की वजह से कि अमेरिका और पश्चिमी देशों का कितना बुरा हाल है), लेकिन कुछ समय में अर्थव्यवस्था की सुस्ती, बेरोजगारी में बढ़ोतरी और शासन के संवेदनहीन रवैये की वजह से ग्रामीण आबादी भी चिढ़ गई।

कोविड से जुड़ी सख्तियों पर नाराजगी तो है ही, इन विरोध प्रदर्शनों में शी और कम्यूनिस्ट पार्टी को सत्ता से बाहर करने की मांग करती आवाजें भी सुनाई पड़ रही हैं जो इस बात का संकेत है कि मर्यादा की कोई अदृश्य पर महत्वपूर्ण सीमा टूट गई है।

इन प्रदर्शनों की गंभीरता को समझते हुए शी ने तेजी से कार्रवाई की। सीसीपी ने 7 दिसंबर को कदम पीछे लेने की घोषणा की। जीरो कोविड पॉलिसी को समाप्त करने की ओर कदम बढ़ाते हुए स्टेट काउंसिल (चीन के मंत्रिमंडल) ने बदलती आंतरिक परिस्थिति और कमजोर पड़ते ओमिक्रॉन वैरिएंट के मद्देनजर नए कदमों का एलान किया।

नए कदमों के तहत लॉकडाउन को अपार्टमेंट की खास मंजिलों या खास इमारतों तक सीमित कर दिया गया, फायर एग्जिट तथा दरवाजों को बंद करने पर सख्त रोक लगा दी गई, सार्वजनिक स्थानों पर जाने के लिए न्यूक्लिक एसिड टेस्ट की फ्रीक्वेंसी कम कर दी गई, देश के अंदर अलग-अलग क्षेत्रों को जा रहे यात्रियों के लिए कोविड टेस्ट और हेल्थ कोड की शर्तें हटा दी गईं, बिना लक्षणों वाले और हलके लक्षणों वाले कोविड मरीजों को घर पर क्वारंटीन में रहने या सामूहिक क्वारंटीन चुनने की छूट दी गई, यह तय किया गया कि हाई रिस्क के तहत आने वाले क्षेत्रों को पांच दिनों के अंदर लॉकडाउन से बाहर लाया जाना चाहिए, यह भी कि स्कूल खुले रखे जाने चाहिए।

 शी की चुनौतियां

पाबंदियों में ढील दीजिए तो हजारों कोविड मौतों का जोखिम उठाइए और यथास्थिति बनी रहने दीजिए तो विरोध प्रदर्शन बढ़ने का खतरा झेलिए, साथ ही देश की अर्थव्यवस्था को और नुकसान पहुंचाइए। रोजाना करीब 30,000 कोरोना संक्रमण का औसत तेजी से बढ़ सकता है। कुछ एक्सपर्ट्स तो दस लाख मौतों की आशंका जता रहे हैं। जीरो-कोविड पॉलिसी के चलते चीन में 60 साल से ऊपर के मात्र 68.7 फीसदी और 80 साल से ऊपर के मात्र 40.4 फीसदी लोगों को टीके के तीनों डोज लगे हैं। चीनी आबादी में हर्ड इम्युनिटी भी नहीं है और गैर-एमआरएनए टीका पर्याप्त सुरक्षा नहीं दे पा रहा। अर्थव्यवस्था में भी खास सुधार के आसार नहीं दिख रहे। 

उपसंहार

शक्ति के केंद्रीकरण ने शी को उस स्थान पर पहुंचा दिया जहां से वह निहित स्वार्थी तत्वों को चुनौती देते हुए सुधार की कठिन प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते हैं। दुर्भाग्य से शी ने इन सुधारों में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसके बजाय वह राज्य नियंत्रित व्यवस्था को मजबूत बना रहे हैं जो उद्यमिता और विकास को कुंद करती है। चीन हमेशा भ्रष्टाचार के साथ विकास का गवाह रहा है। शी के अभियान ने भ्रष्ट अफसरों के मन में डर बैठा दिया। लेकिन यह भ्रष्टाचार के मूल कारण को दूर नहीं कर सका। वह है इकॉनमी पर सरकार का पूरा नियंत्रण और नौकरशाही की संरक्षणवादी व्यवस्था। अगर शी घरेलू मोर्चे पर कमजोर पड़ते हैं तो क्या वह विदेश के मोर्चे पर दुस्साहसिक नीति अपनाएंगे या कड़े कदम उठाकर घरेलू प्रतिद्वंद्वियों को धूल चटाएंगे? सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था, बढती विषमता, आंतरिक विरोध, आबादी का असंतुलन और इसके साथ-साथ अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर चीनी पूंजी तथा व्यापार के प्रवाह में डाली जा रही अभूतपूर्व रुकावट चीनी सपने की राह में बड़ी बाधाएं हैं।

पश्चिम का दावा है कि परिवर्तन मुख्यतया शी द्वारा पॉलिटिकल इकॉनमी के चीनी मॉडल में लाए गए बदलावों से संचालित हैं। विडंबना यह है कि चिप्स एंड साइंट एक्ट तथा इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट जैसे कदमों के जरिए चीन से अलग होने का उतना ही नुकसान अमेरिका और अन्य उदार लोकतंत्रों को भी होने वाला है।

चीन न तो रूस है और न ही ईरान। शी दुनिया के दूसरे सबसे ताकतवर देश के एक व्यावहारिक नेता है। आंतरिक विरोध प्रदर्शनों के मोर्चे पर और विश्वस्तरीय भू-राजनीतिक खेल में (मिसाल के तौर पर अफ्रीका और मध्यपूर्व में) दिखाया गया उनका लचीला रवैया बताता है कि शी और चीन दोनों एक लंबे, कठिन और तीखे वैचारिक तथा आर्थिक संघर्ष की तैयारी कर रहे हैं। नतीजों की अटकलें लगाना भी अभी जल्दबाजी होगा। क्या शी को भीतर से ही कोई गंभीर चुनौती मिलेगी या सीसीपी की पकड़ ढीली होगी, कहना मुश्किल है। लेकिन एक बात तय है- चीनी और वैश्विक भू-राजनीति में यह उथल-पुथल वाले एक दौर की शुरुआत है।

 

लेफ्टिनेंट जनरल पीआर कुमार (रिटायर्ड)


Spread the love
Previous articleIsrael: Benjamin Netanyahu Forms New Government
Next articleभारत ने 84,328 करोड़ रुपये के रक्षा खरीद प्रस्ताव को दी मंजूरी
Lt Gen PR Kumar (Retd)
Lt Gen PR Kumar (Retd) served in the Indian Army for 39 years, He was the DG Army Aviation, before superannuating from the appointment of Director General of Military Operations (DGMO) in end 2015. He continues to write and talk on international and regional geo-political, security and strategic issues. He can be contacted at prkumarsecurity.wordpress.com and kumapa60@gmail.com

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here