चीन में 20वीं कांग्रेस के क्या हैं संकेत

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चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय प्रतिनिधि कांग्रेस, जिसे आम बोलचाल में पार्टी कांग्रेस कहते हैं, हर पांच साल में एक बार होती है। सैद्धांतिक तौर पर यह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की शीर्षस्थ बैठक होती है। यह एक ऐसा सार्वजनिक कार्यक्रम है जहां सीसीपी में सर्वोच्च स्तर के नेतृत्व से जुड़े बदलाव और पार्टी संविधान में संशोधन को अंतिम रूप दिया और मंजूर या नामंजूर किया जाता है। यहीं नीतिगत मसलों पर भी चर्चा और विचार-विमर्श के बाद अंतिम फैसले किए जाते हैं। इसी बैठक में लाए और पारित किए गए प्रस्तावों के अनुरूप अगले पांच साल के लिए राजनीतिक, सैनिक, आर्थिक और कूटनीतिक नीतियों की दिशा तय होती है। सत्तर के दशक के मध्य से पांच साल में एक बार होने वाले इस सम्मेलन को खासा अहम माना जाता रहा है क्योंकि इसी सम्मेलन में तय होता है कि चीन की अगले पांच वर्षों में क्या दशा और दिशा रहने वाली है।

पार्टी कांग्रेस में जमीनी स्तर के सदस्य शामिल होते हैं जो चुने और मनोनीत किए गए होते हैं। कांग्रेस में उपस्थित ये सदस्य सेंट्रल कमिटी चुनते हैं जिनमें करीब 370 सदस्य होते हैं। सेंट्रल कमिटी को सीपीसी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के रूप में समझा जा सकता है। इस सेंट्रल कमिटी के सदस्य पोलित ब्यूरो के 25 सदस्यों को चुनते हैं और पोलित ब्यूरो के सदस्य पोलित ब्यूरो स्टैंडिंग कमिटी को चुनते हैं। स्टैंडिंग कमिटी में पांच से नौ सदस्य होते हैं। स्टैंडिंग कमिटी सीपीसी की सत्ता और नेतृत्व का असली केंद्र है। यही पार्टी और इस तरह पूरे देश को नियंत्रित करती है। 

इसमें हर स्तर पर कोई व्यक्ति अगले ऊंचे स्तर के लिए निर्वाचित, चयनित या मनोनीत होता है, लेकिन यह मतों के जरिए नहीं बल्कि जोड़-तोड़ और सौदेबाजी से तय होता है। हरेक स्तर पर जबर्दस्त सत्ता संघर्ष होता है औऱ विजेता पक्ष पराजितों, जीतने के इच्छुकों, असफल बगावत के साजिशकर्ताओं को स्थायी या अस्थायी तौर पर निर्ममतापूर्वक दरकिनार कर देता है।    

20वीं पार्टी कांग्रेस 16 अक्टूबर से शुरू हो गई है। आज की तारीख में इस पूरी कवायद के क्या मायने हैं और इससे क्या नतीजे निकलने वाले हैं इस पर पूरी दुनिया की नजरें हैं। 2002 में यह निर्णय किया गया था कि पोलित ब्यूरो से 69 साल से ऊपर के सभी सदस्य रिटायर हो जाएंगे। इस बार की कांग्रेस शी को 69 साल का होने के बावजूद तीसरा कार्यकाल देने का समर्थन करेगी और पोलित ब्यूरो स्टैंडिंग कमिटी के 68 साल से ऊपर के सभी सदस्यों को रिटायर कर देगी। यह पहला नतीजा होगा इस कांग्रेस का।

प्रधानमंत्री ली कचियांग का जाना तय है। नए प्रधानमंत्री लाए जाएंगे। शी चिन फिंग यह सुनिश्चित करेंगे कि पोलित ब्यूरो और स्टैंडिंग कमिटी में उनके वफादार सदस्य ही हों। इसके साथ ही शी को चीन का आजीवन बेताज बादशाह बनाए रखने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। पूरी संभावना है कि उन्हें चीन के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण नेता का दर्जा दे दिया जाए। माओ त्से तुंग की आत्मा शांति से सोयी रहेगी!

जब शी अपने तीसरे कार्यकाल में प्रवेश कर रहे हैं, चीन के सामने गंभीर चुनौतियां हैं! चीनी अर्थव्यवस्था 2-3 फीसदी की अनुमानित जीडीपी विकास दर से जूझ रही है। कर्ज निर्देशित निवेश से संचालित अर्थव्यवस्था तनाव (स्ट्रेस) में है। राष्ट्रीय सरकार, राज्य सरकारें, बैंक, इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियां, रियल स्टेट सेक्टर, प्राइवेट कॉरपोरेट्स, घर-गृहस्थी तक सभी कर्ज में डूबे हैं। निकट भविष्य में देखें तो चीन जीरो-कोविड पॉलिसी और आर्थिक बदहाली को लेकर इधर कुआं, उधर खाई वाली दुविधा से दो-चार होने वाला है। वह जीरो-कोविड पॉलिसी जारी रखता है तो अर्थव्यवस्था की गिरावट से बचना मुश्किल होगा और सख्त लॉकडाउन की नीति में ढील देता है तो वैक्सीन के सुरक्षा घेरे से बाहर आबादी के कमजोर हिस्सों में संक्रमण और मौत बढ़ने का खतरा होगा।

दीर्घकालिक तौर पर, चीन के सामने जनसांख्यिकीय गिरावट का वह अपरिहार्य चक्र होगा जिसकी वजह से आबादी में बुजुर्गों का अनुपात बढ़ेगा और कामकाजी लोगों की संख्या घटेगी। चीन में बिजनेस का माहौल भी अनिश्चित है क्योंकि एक समय में फलता-फूलता प्राइवेट सेक्टर बड़े सरकारी उद्यमों को मिल रही प्राथमिकता के चलते कमजोर होता जा रहा है।

बाहरी माहौल भी जो एक समय चीन के उदय को लेकर सहयोगात्मक नजर आता था, अब ऐसा हो गया है जो चीनी विकास की रफ्तार पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रहा है। नतीजतन, विदेशों से निवेश कम हो गया है, नए सिरे से सप्लाइ चेन बनाए जा रहे हैं और विदेशी कंपनियां चीन से खुद को अलग कर रही हैं। यूक्रेन युद्ध और अमेरिका, यूरोपीय समुदाय, भारत, ताइवान, हांगकांग आदि से बढ़ते तनाव के चलते इन समस्याओं की जटिलता बढ़ रही है। इस साल के अभूतपूर्व सूखे को दो साल पहले आई भीषण बाढ़ के साथ देखा जाए तो साफ होता है कि क्लाइमेट चेंज चीन पर भी अपना असर दिखा रहा है। बहरहाल, 20वीं पार्टी कांग्रेस के दौरान चीन से आ रहे संकेत यह बिलकुल साफ कर रहे हैं कि शी चिन फिंग चीन को कहां ले जाने वाले हैं।

राजनीतिक तौर पर शी चीन पर बिलकुल एकल और संपूर्ण नियंत्रण स्थापित करने वाले हैं। ‘शी चिन फिंग विचार’ पार्टी कांग्रेस पर छाया रहेगा। यह मजबूत सीसीपी, कड़ी आंतरिक निगरानी, भ्रष्टाचार की सफाई और चुनिंदा पर व्यापक सेंसरशिप पर आधारित राष्ट्रवाद सुनिश्चित करने वाली एक अति केंद्रीकृत व्यवस्था की परिकल्पना करता है। जाहिर है सूचना, डेटा और संस्थानों पर राज्य का नियंत्रण रहेगा। असमानता पैदा करने वाले निजी उद्यम हाशिये पर होंगे और बड़े राजकीय उद्यमों का दबदबा रहेगा। देंग, हू और जियांग के काल में लाए गए सुधार पलट दिए जाएंगे। चीन वाम की ओर अधिक से अधिक मुड़ेगा। मुख्य राजनीतिक मार्गदर्शक होंगे, ‘शी चिन फिंग विचार’ के अनुरूप ‘चीनी स्वप्न की पुनर्स्थापना’ ‘अपमानों की सदी का प्रतिशोध’ और ‘चीनी स्वप्न का साकार होना’। ‘विचार’ यह है कि चीन को एक मजबूत, लोकतांत्रिक, सभ्य, समरस और आधुनिक समाजवादी देश बनाना है जो 2049 तक अग्रणी वैश्विक शक्ति होगा।

पार्टी कांग्रेस के दौरान संतुष्टि जैसे भावों से बचते हुए क्रांतिकारी उत्साह बनाए रखने पर पूरा जोर होगा। सोवियत संघ की गति को प्राप्त होने से बचने के लिए पार्टी में लगातार आत्म सुधार की बात कही जाएगी। लेकिन आत्म सुधार से ठीक-ठीक मतलब क्या है यह स्पष्ट नहीं है। देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी कांग्रेस इस पर रोशनी डालती है या नहीं। मगर ध्यान देने की बात यह है कि सोवियत संघ की गलतियों से बचने की कोशिश करते हुए चीन अपने लिए अलग गड्ढे तैयार करता चल रहा है।

बंदूक पर पार्टी का नियंत्रण बना रहेगा। पीएलए की शक्ति कम करते हुए पोलित ब्यूरो में उसके सदस्यों की संख्या मात्र दो कर दी गई है। स्टैंडिंग कमिटी में तो उसके एक भी सदस्य नहीं रखे गए हैं। शी सीएमसी (सेंट्रल मिलिट्री कमिटी) की ताकत पहले ही कम कर चुके हैं। सेना की पार्टी के प्रति (शी के प्रति) पूरी निष्ठा सुनिश्चित करने के लिए उसकी सफाई की जा चुकी है। छह में से चार सीएमसी सदस्य पार्टी कांग्रेस के बाद रिटायर हो जाने वाले हैं। नए नेताओं की पूरी पांत शी की चुनी हुई होगी। इससे सैन्य मामलों में संपूर्ण नियंत्रण स्थापित हो जाएगा और शी चिन फिंग की इच्छा के अनुरूप सेना की उनके सामने पूर्ण अधीनता सुनिश्चित हो जाएगी। चीनी स्वप्न को दोबारा जगाने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी और आधुनिकीकृत सेना का होना नितांत आवश्यक है। पीएलए को भी याद दिलाना होगा कि वह पार्टी के हितों को पूरा करने के लिए उसके हाथों का एक औजार है।

साझा संपदा के जरिए आम समृद्धि हासिल करना 20वीं कांग्रेस के दौरान एक अहम ‘रणनीतिक लक्ष्य’ रहेगा। उम्मीद है कि पार्टी कांग्रेस के दौरान सर्वोच्च नेतृत्व की ओर से साझा समृद्धि हासिल करने के तरीकों पर ज्यादा साफ और विस्तृत रोडमैप प्रस्तुत किया जाएगा। जैसा कि अभी तक समझा जाता रहा है, साझा समृद्धि का मतलब संपत्ति का अमीरों से गरीबों के हाथों में हस्तांतरण है, दूसरे शब्दों में कहा जाए तो राज्य की रॉबिनहुड शैली! देखना दिलचस्प होगा कि इसे किस तरह से अंजाम दिया जाता है। कहा जा रहा है कि समाज के अमीर और समृद्ध तबकों से गरीबों के हाथों में पैसा पहुंचाकर उपभोक्तावाद को बढ़ावा दिया जाएगा। साझा समृद्धि असमानता को दूर करने का रामबाण नुस्खा है। ‘डुअल सर्कुलेशन’ (दोहरा प्रसार) अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार का सबसे बड़ा आधार होगा।

ताइवान का पुनर्एकीकरण कांग्रेस के एजेंडा में ऊपर रहेगा। यह ‘कायाकल्प’ की प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है। इसलिए ताइवान का फिर से एकीकरण करने को लेकर शी के प्रचार और उनके कदमों को भरपूर समर्थन मिलेगा। जरूरत पड़ने पर शक्ति के इस्तेमाल की भी मंजूरी मिलेगी। नैंसी पेलोनी की ताइवान यात्रा के दौरान हुआ लाइव फायरिंग ड्रामा आगे के छाती पीटने वाले कार्यक्रमों का प्रस्थान बिंदु होगा।  गौर करने लायक है कि पिछले एक साल के दौरान शी चिनफिंग तिब्बत, शिनचियांग और हांगकांग के दौरे पर भी गए। उन्होंने इन क्षेत्रों में एक देश दो सिस्टम मॉडल के तहत शासन पर अपने विचार भी व्यक्ति किए हैं। दरार पैदा करने की कोशिशों और किसी भी तरह से देशद्रोही लगने वाली गतिविधियों के लिए कोई जगह नहीं होगी।

कांग्रेस के दौरान राष्ट्रवादी उत्साह जोर-शोर से दिखेगा। राज्य के तमाम अंग बाहरी शक्तियों की चीन के अंदर ‘कलर रिवॉल्यूशन’ (सत्ता विरोधी गतिविधियां) भड़काने की कोशिशों को लेकर पूरी तरह सतर्क रहेंगे। चीन की सांस्कृतिक और क्षेत्रीय अखंडता तथा संप्रभुता की रक्षा करना एजेंडा में सबसे ऊपर रहेगा।

20वीं कांग्रेस कोविड के खिलाफ जंग जारी रखने के सरकार के मजबूत संकल्प का भी समर्थन करेगी। व्यापक लॉकडाउन और बड़े पैमाने पर टेस्टिंग के जरिए चीन में सामूहिक मौत की आशंका दूर करने के लिए सरकार की तारीफ की जाएगी। अन्य विकसित देशों के मुकाबले कम मृत्यु दर का हवाला देते हुए चीनी शासन के मॉडल की श्रेष्ठता दर्शाई जाएगी।

बुजुर्गों में टीकाकरण के कम प्रतिशत और वैक्सीन के कम असर जैसी बातें छिपा ली जाएंगी। कोविड पर जीत की समयपूर्व घोषणा, जीडीपी विकास की धीमी पड़ी रफ्तार और आर्थिक लक्ष्यों से पिछड़ने जैसी बातें भी नजरअंदाज कर दी जाएंगी। पार्टी कांग्रेस जीरो कोविड पॉलिसी को जारी रखने के प्रस्ताव पर ज्यों का त्यों मोहर लगा देगी। जहां बाकी दुनिया कोविड के साथ जीना सीख रही है, वहीं चीन से शी की जोरो-कोविड पॉलिसी के साथ जीना सीखने को कहा जाएगा। जाहिर है, चीन में वायरस का प्रकोप जारी रहेगा, व्यापक हिस्सा लॉकडाउन की चपेट में बना रहेगा और बड़े पैमाने पर टेस्ट होते रहेंगे।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी अब वैश्विक समाजवादी आंदोलन की ध्वजवाहक समझी जाती है। चीन खुद को उन करीब सौ देशों का नेता समझता है जहां आज भी समाजवाद बचा हुआ है। यह चोगा वैश्विक नेतृत्व के लिए मुख्य आधार होगा। इसी आधार पर बीआरआई कर्ज के जरिए दक्षिणी विश्व पर वित्तीय नियंत्रण स्थापित किया जाएगा। एससीओ और ब्रिक्स में चीनी नेतृत्व को रेखांकित किया जाएगा।

पूरी संभावना है कि 20वीं कांग्रेस इस अत्यंत महत्वपूर्ण फ्रेमवर्क का इस्तेमाल वैश्विक नेतृत्व के चीनी दावे को मजबूती देने के लिए करेगी। चीन पूंजीवाद के विस्तार और ‘मिडिल किंगडम’ को उसकी उपयुक्त भूमिका से वंचित करने की पश्चिमी साजिशों को रोकने वाली दीवार बनेगा। कांग्रेस अपने वुल्फ वॉरियर्स को अपनी हित रक्षा के लिए ‘कूटनीतिक संघर्ष’ चलाने का लाइसेंस दे देगी। ‘बात-बात पर चीन की बलि चढ़ा दिए जाने का समय कब का बीत चुका है’ और ‘दुनिया की कोई ताकत चीन के विकास को नहीं रोक सकती’ जैसी घोषणाएं बार-बार दोहराई जाएंगी।

कुल मिलाकर देखा जाए तो 20वीं कांग्रेस के दौरान शी चिन फिंग अपनी ताकत को सुदृढ़ करेंगे और सीसीपी यह सुनिश्चित करेगी कि चीन एक सर्वसत्तावादी समाज बना रहे। चीनी समाज जिन असल समस्याओं से जूझ रहा है, उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाएगा। बिलकुल साम्यवादी अंदाज में इन्हें मामूली बताते हुए अनदेखा किया जाएगा। एक चीज जो सबसे ज्यादा स्पष्ट होकर उभरेगी वह है ‘बोल मेरे तोते सबसे सुंदर कौन’ वाली प्रवृत्ति जिसके बगैर कम्युनिस्ट रह ही नहीं सकते। उन्हें बार-बार यह आश्वस्ति चाहिए कि वही सर्वश्रेष्ठ हैं, भले ही ऐसा न हो।

लेफ्टिनेंट जनरल पी आर शंकर (रिटायर्ड)


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Lt Gen P R Shankar (Retd)
Lt Gen P R Shankar is a retired Director General of Artillery. He is an alumnus of National Defence Academy Khadakvasala, Defence Services Staff College, Wellington, Army War College, Mhow, Naval Post Graduate School, Monterrey and National Defence College, New Delhi. He has held many important command, staff and instructional appointments in the Army. He has vast operational experience having served in all kinds of terrain and operational situations which has confronted the Indian Army in the past four decades.He gave great impetus to the modernization of Artillery through indigenization. He has deep knowledge, understanding and experience in successful defense planning and acquisition, spanning over a decade. Major 155mm Gun projects like the Dhanush, M777 ULH and K9 Vajra, Rocket and Missile projects related to Pinaka, Brahmos and Grad BM21, surveillance projects like Swati WLR and few ammunition projects came to fructification due to his relentless efforts.The General Officer is now a Professor in the Aerospace Department of Indian Institute of Technology, Madras., Chennai. He is actively involved in applied research.

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