‘अगर डेटा आज के दौर का नया तेल है तो टेक्नॉलजी नई तेल रिफाइनरी है। आइए नया इको सिस्टम तैयार करें!’
नया, जागा हुआ भारत राष्ट्रीय विकास की त्रिस्तरीय रणनीति अपनाकर चल रहा है। पहला है मेड इन इंडिया की तर्ज पर मेक इन इंडिया, दूसरा आत्मनिर्भर भारत या स्वावलंबन का आह्वान और तीसरा है स्टार्ट अप इंडिया जिसका मकसद है ऊर्जस्वी युवा मस्तिष्कों को उद्यमिता की ओर प्रेरित करना। इन तीनों मोर्चों पर एक साथ हुए प्रयासों की बदौलत देश में जबर्दस्त उत्साह और टेक्नॉलजी इनोवेशन देखने को मिल रहा है जिसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है।
हमारा देश दुनिया भर में फैले सामरिक चिंतकों और तकनीक के जादूगरों के कमाल के लिए जाना जाता है। तकनीक में सक्षम वाइट कॉलर्ड प्रफेशनल्स, कुशल, इनोवेटिव टेक वर्कफोर्स, जोश से भरपूर इंडस्ट्री कैप्टंस और इन सबके साथ मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति ने मिलकर तकनीकी विकास का एक नया दौर ही शुरू कर दिया है। इसने दुनिया को दो मुख्य गेमचेंजर कॉन्सेप्ट प्रदान किए हैं। पहला है जुगाड़ यानी समस्याओं को सुलझाने का व्यावहारिक नजरिया औऱ दूसरा आत्मनिर्भरता या स्वावलंबन। अभी अभी संपन्न हुए डिफेंस एक्सपो में इन दोनों अवधारणाओं से संबंधित जो पहलें प्रदर्शित हुईं वे इस बात का प्रतीक हैं कि भारत ने तकनीक जगत में खास जगह बना ली है। कोई आश्चर्य नहीं कि भारत रक्षा साजो-सामान के निर्यात में झंडे गाड़ रहा है।
आत्मनिर्भरता और मेक इन इंडिया अभियान की बदौलत पिछले कुछ वर्षों में स्वावलंबन की भावना में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है। वैश्विक तकनीकी दबदबे के लिहाज से भी काफी कुछ हुआ है। बहुआयामी राष्ट्रीय मास्टर प्लान गतिशक्ति, 5-जी का आरंभ, डिजिटल इंडिया के तहत ई-गवर्नेंस की पहल, उड़ान -आरसीएस (रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम), भारतनेट, भीम यूपीआई, आयुष्मान भारत, यूआईडीएआई आधार… ये ऐसे कुछ बड़े कदम हैं जिनसे भारत में ईज ऑफ लिविंग बढ़ी है। ‘लोकल फॉर ग्लोबल’ को बढ़ावा देने वाले ऐसे तमाम कार्यक्रमों ने दुनिया भर का ध्यान खींचा है। हालांकि सशस्त्र बलों के सपोर्ट सिस्टम के अंदर इसका प्रभाव दिखना अभी बाकी है। जाहिर है, नेट-केंद्रित, सक्षम सशस्त्र बलों का निर्माण करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने की जरूरत है।
एक अहम सवाल यह है कि तकनीक के क्षेत्र में एक उभरते हुए वैश्विक शक्ति केंद्र के तौर पर भारत ‘तकनीकी संप्रभुता’ कैसे हासिल करने वाला है? तकनीकी तौर पर विकसित देशों की सूची में हम 17वें स्थान पर हैं और सेना पर खर्च करने के मामले में तीसरे नंबर पर। तो इन रैंकिंग्स को पलटने के लिए हम अपनी तकनीकी ताकत का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? अगर कुछ टॉप के देशों की बात करें तो अमेरिका, चीन, फ्रांस, जापान, जर्मनी, रूस, इजरायल, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर जैसे देशों ने तकनीकी श्रेष्ठता कैसे हासिल की?
देखा जाए तो ये सब केस स्टडीज हैं राष्ट्रीय दृष्टि, राजनीतिक इच्छाशक्ति, राष्ट्र की संपूर्णता का नजरिया और निरंतर जिम्मेदार व्यवहार की। इनमें से हरेक के रास्ते में जो चुनौतियां आईं, जो अवसर आए, उन्हें रचनात्मक ढंग से कानून बनाने और गवर्नेंस मॉडल विकसित करने में इस्तेमाल किया गया ताकि रिसर्च और डिवेलपमेंट को सही दिशा देते हुए राष्ट्र को सशक्त किया जा सके। अमेरिका का डिफेंस प्रोडक्शन एक्ट 1950 इसका एक अच्छा उदाहरण है। इसी तरह चीन ने 1949 में ही सौ साल का मैराथन शुरू कर दिया। इजरायल बिल्कुल नए ढंग से एक स्टार्ट-अप राष्ट्र के रूप में सामने आया। पहली नजर में ये एक दूसरे से भिन्न नजर आते हैं, लेकिन इनमें समानता यह है कि इन सबने मैक्रो इकॉनमिक डिविडेंड के लिहाज से सामर्थ्य बढ़ाने और क्षमता निर्माण करने वाले एक प्रमुख कारक के तौर पर तकनीकी बढ़त हासिल करने के लिए ईएसजी इकोसिस्टम तैयार किया।
तकनीकी रणनीति के तहत आत्मनिर्भरता
आत्मनिर्भरता बड़ी जटिल चीज है। इसमें तकनीकी रणनीति और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, लॉजिस्टिक्स तथा एमआरओ का पुनर्निर्माण शामिल है। यही नहीं, सर्विस सेक्टर, रोड-रेल इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास, इंडस्ट्रियल कॉरिडोर इन्फ्रास्ट्रक्चर, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए प्रभावी नीतियां, निर्यात, राजनीतिक इच्छा और भरपूर वित्तीय स्रोत भी इसका अहम हिस्सा होते हैं।
कुल मिलाकर इसके लिए जबर्दस्त तालमेल वाले एक सुनियोजित कार्यक्रम की जरूरत होती है जिसमें शिक्षा जगत, सरकार और इंडस्ट्री समेत तमाम स्टेकहोल्डर्स राष्ट्रीय नजरिए के साथ शामिल हों। देश की 50 फीसदी आबादी 25-35 साल के युवाओं की है, इस डेमोग्राफिक डिविडेंड ने भारत में विभिन्न क्षेत्रों में जबर्दस्त अवसर और उत्साह पैदा किया। लेकिन इन सबके लिए सिस्टम्स थिंकिंग एप्रोच (एक संपूर्ण नजरिये) की जरूरत है ताकि एक सुविचारित टेक्नॉलजी रणनीति तैयार करते हुए स्वावलंबन की एक स्पष्ट अवधारणा के जरिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाया जा सके। इसके साथ ही उपकरणों के देशीकरण, उनके निर्यात और लाइफ साइकल सस्टेनेंस सपोर्ट को लेकर भी लक्ष्य आधारित दृष्टिकोण की जरूरत है। सिस्टम्स थिंकिंग का मतलब ऐसे संपूर्ण विश्लेषणात्मक नजरिए से है जो इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि कैसे सिस्टम के अलग-अलग हिस्से एक दूसरे से रिलेट करते हैं और कैसे सिस्टम व्यापक स्तर पर अन्य बड़े सिस्टमों के तहत काम करता है। मकसद यह है कि भारत सर्विस और कृषि सेक्टरों में अपनी बढ़त बनाए रखते हुए मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में दुनिया का अग्रणी देश बन जाए।
डिफेंस एक्सपो 2022 के तीन दिनों के दौरान कुल 451 एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) साइन किए गए जो 1 लाख 50 हजार करोड़ रुपये मूल्य के हैं। यह नया कीर्तिमान है। आजादी के इन 75 वर्षों में ऐसा कभी नहीं हो सका था। रक्षा उद्योग के जबर्दस्त उत्साह और मेगा इवेंट में प्रदर्शित हुए स्पेस आधारित स्टार्ट-अप्स के बावजूद यह ‘तकनीकी संप्रभुता’ के लिए सटीक, केंद्रित टेक्नॉलजी स्ट्रैटेजी तैयार करने और कील-कांटे दुरुस्त करने का उपयुक्त मौका है।
दरअसल सशस्त्र बलों को खतरों के एक व्यापक क्षेत्र का ख्याल रखना होता है जिसमें आतंरिक सुरक्षा, कम तीव्रता वाले संघर्ष, आतंकवाद और सीमित से लेकर पूर्ण युद्ध तक शामिल होते हैं। ये सब वुका (वीयूसीए) -यानी वालैटिलिटी (अस्थिरता), अनसर्टेंटी (अनिश्चितता), कॉम्प्लेक्सिटी (जटिलता) और एंबिग्युटी (संशयात्मकता) – से संचालित हैं। इनमें अगर डिसरप्शन को भी जोड़ लिया जाए तो वुकाड में आज ग्रे जोन– ऐसा मिश्रित अदृश्य युद्ध जो समय और स्थान की सीमा को पार कर जाता है- की रूपरेखा भी शामिल हो जाती है।
आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि अपना एक खास मॉडल बनाया जाए जो देश के अंदर विकसित देशी सॉल्यूशंस मुहैया कराए। इसके लिए एक स्पष्ट नैशनल टेक्नॉलजी स्ट्रैटेजी (एनटीएस) की जरूरत है। टेक्नॉलजी के क्षेत्र में खास उपलब्धियां हासिल करने के लिए हमें प्रोजेक्ट स्ट्रक्चर, पॉलिसीज और सिस्टम्स (टास्क, टीम, टाइम) सहित कई केंद्रित कार्यक्रम तैयार करने होंगे। एनटीएस के लिए नैशनल टेक्नॉलजी फ्रेमवर्क से जुड़े कुछ विचार नीचे विश्लेषित किए जा रहे हैः
नैशनल टेक्नॉलजी फ्रेमवर्क (एनटीएफ)
नैशनल टेक्नॉलजी डेवलपमेंट बोर्ड के तहत चिह्नित टेक्नॉलजीज के सेंटर ऑफ एक्सेलेंस (सीओई) और इनोवेशन हब बनाने की कई पहलें की गई हैं। हर मंत्रालय के पास कुछ सीओई हैं। टेक्नॉलजी इनोवेशन हब्स आईआईएसटी में हैं, डीआरडीओ के अपने सीओईज हैं, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय के भी सीओईज हैं। ऐसे ही डीएसटी, इसरो और प्राइवेट तथा पब्लिक सेक्टर के दूसरे संस्थानों के अपने सीओईज हैं। इन प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए एक प्रभावशाली नैशनल टेक्नॉलजी फ्रेमवर्क की ओर जाने की जरूरत है ताकि स्पष्ट टेक्नॉलजी भविष्यवाणी औऱ टेक्नॉलजी डिवेलपमेंट वर्क टाइम एक्शन प्लान से युक्त नैशनल टेक्नॉलजी स्ट्रैटेजी सामने आ सके।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की तर्ज पर नैशनल टेक्नॉलजी स्ट्रैटेजी की प्रस्तावना इन शब्दों से शुरू होनी चाहिएः ‘हम भारत के लोग भारत को एक तकनीकी संप्रभु वैश्विक ताकत बनाने के लिए दृढ़तापूर्वक संकल्पित होते हैं।’ यह बुनियादी दस्तावेज डिफेंस टेक्नॉलजी स्ट्रैटेजी से तैयार कराया जा सकता है जो राष्ट्रीय प्रयासों को दिशा देगा।
टेक्नॉलजी और इनोवेशन मिनिस्ट्री
डीएसटी को अपग्रेड करते हुए तकनीक और नवाचार मंत्रालय (टेक्नॉलजी एंड इनोवेशन मिनिस्ट्री) का रूप देने की जरूरत है। विज्ञान तथा तकनीक से जुड़े बुनियादी रिसर्च को एक हिस्से के रूप में इस मंत्रालय में शामिल किया जा सकता है। आज सरकार के अंदर और प्राइवेट सेक्टर में भी आर एंड डी के बहुत सारे संगठन हैं जिनसे बहुत सारे विशेषज्ञ (सब्डेक्ट मैटर एक्सपर्ट्स या एसएमई) जुड़े हैं और जिनमें आर एंड डी का बड़ा फंड जा रहा है। त्रिस्तरीय रणनीति के जरिए इन संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल सुनिश्चित किया जा सकता हैः
1 नैशनल टेक्नॉलजी एक्ट (एनटीए) : आर एंड डी के क्षेत्र में हो रहे इन प्रयासों का ‘एक टेक्नॉलजी, एक टीम’ अवधारणा से तालमेल कायम करने के लिए एक एनटीए कानून लाकर नियंत्रण की व्यवस्था की जानी चाहिए। आर एंड डी के प्रयास उन एजेंसियों के जरिए ज्यादा सार्थक बनाए जाएं जो आपस में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने के बजाय एक दूसरे की पूरक हों। उदाहरण के लिए क्वांटम कम्प्यूटिंग का काम देख रहीं सारी एजेंसियों का टेक्नॉलजी डिवेलपमेंट बोर्ड के तहत एक ही जगह रजिस्ट्रेशन होना चाहिए ताकि उनके बीच तालमेल और संयुक्तता कायम हो।
2 सरकार, शिक्षा जगत, पब्लिक औऱ प्राइवेट पार्टनरशिपः शिक्षा जगत, पब्लिक सेक्टर, प्राइवेट इंडस्ट्री, स्टार्ट-अप्स, आर एंड डी संगठन और टेक्नॉलजी विकास का काम देख रहे सरकारी संस्थान जैसे सीओई, एसटीपीआई आदि के बीच तालमेल विकसित करें।
3 नैशनल टेक्नॉलजी ब्रॉडकास्टः जैसे हर साल फरवरी में नैशनल बजट ब्रॉडकास्ट होता है, कुछ उसी तरह हर साल मई महीने में नैशनल टेक्नॉलजी डे (11 मई) के पहले टेक्नॉलजी फोरकास्ट और डेवलपमेंट स्ट्रैटेजी का ब्रॉडकास्ट रखने की जरूरत है।
अंतर मंत्रालयीन तकनीक तालमेल
भारत में एक कसी हुई टेक्नॉलजी रणनीति पर सही ढंग से अमल तभी हो सकता है जब ऊपर बताए गए कार्यों के लिए कुशल संरचना और नीतियां लाई जाएं। वन टेक्नॉलजी, वन प्रोग्राम का एक फोकस्ड लैंडस्केप बनाने के लिए विभिन्न मंत्रालयों में बड़ी संख्या में सहूलियतें शुरू करवाई जा सकती हैं। इसके अलावा, भारत में कुशल, योग्य युवाओं और अत्यंत अनुभवी रिटायर्ड बिरादरी का एक संतुलित मिश्रण है। डेमोग्राफिक डिविडेंड के तौर पर आए युवाओं के उभार और योग्य रिटायर्ड बिरादरी- इन दोनों का इस्तेमाल करते हुए स्किल डेवलपमेंट और टेक्नॉलजी की बहुस्तरीय पहलें विकसित की जा सकती हैं। अमीबा संगठनात्मक संरचना वाले ये टेक-फोकस्ड स्टार्ट-अप्स निरंतरता के साथ तकनीकी विकास करने और अत्याधुनिक तकनीक लाने में मददगार होंगे। पीएमओ या टेक्नॉलजी एंड इनोवेशन मिनिस्ट्री के तहत गठित इंटर मिनिस्टीरियल स्ट्रक्चर देश की टेक्नॉलजी स्ट्रैटेजी को स्पष्ट रूप में व्यक्त और संचालित कर सकता है।
कॉरपोरेट प्रफेशनल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीपीआर)
आर एंड डी और टेक्नॉलजी डेवलपमेंट डिजाइन और रीडिजाइन की एक कष्टसाध्य प्रक्रिया है। बहरहाल, डिसरप्टिव दौर की जरूरत होती है- बड़ा सोचें, छोटे से शुरुआत करें, नाकाम जल्दी हों, नाकामी से और जल्दी उबरें, चपल रहें, अव्वल बनें। यह कवायद, जिसे ट्रायल एंड एरर की बार-बार दोहराई जाने वाली प्रक्रिया के लिए ढेर सारा फंड चाहिए और असफलता का दुष्चक्र जिसका अभिन्न हिस्सा है, वह दरअसल सफलता की ओर जाने वाली बेहद कठिन यात्रा है। यही वजह है कि इसके लिए अच्छा खासा फंड बनाने और अत्याधुनिक डिसरप्टिव टेक्नॉलजी उपलब्ध रखने की जरूरत है। आत्मनिर्भरता के हक में अच्छा होगा अगर सरकार कंपनीज एक्ट 2013 के तहत राष्ट्रीय पहल के रूप में टेक्नॉलजी डेवलपमेंट के लिए कॉरपोरेट प्रफेशनल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीपीआर), टेक्नॉलजी डेवलपमेंट फंड के नाम से फंड को इंस्टिट्यूशनलाइज्ड (सांस्थानिक) स्वरूप दे दे। यह फंड कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी फंड की तर्ज पर होगा, कंपनी के टर्नओवर और प्रॉफिट मार्जिन का करीब दो फीसदी।
टेक्नॉलजी इन्क्यूबेशन सेंटर्स, हब्स और स्टार्ट-अप्स को औद्योगिक घराना आधारित सीपीआर से फंड मुहैया कराया जाना चाहिए और वे चिह्नित सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट्स से निर्देशित होने चाहिए। राष्ट्र अपनी तकनीकी प्रगति और कैसे सुनिश्चित करते हैं? आइए हम सीपीआर आधारित टेक्नॉलजी डेवलपमेंट का अपना म़ॉडल विकसित करें। सीएसआर कानून बनाने वालों में भारत अग्रणी रहा और देश के सोशल फैब्रिक को उसका फायदा भी मिला। सीपीआर एक ऐसा विचार है जिसका समय बहुत पहले ही आ चुका है।
डेमोग्राफिक डिविडेंड का सुदृढ़ीकरण
‘आत्मनिर्भरता’ और ‘मेक इन इंडिया’ को निश्चित रूप से ‘मेड इन इंडिया’ तक जाना होगा और पूरी ‘लाइफ साइकल’ का ध्यान रखते हुए देश की तकनीकी शक्ति के जरिए सब-असेंबली-असेंबली-प्रोडक्ट्स ही नहीं प्रोडक्शन लाइन, निर्यात और इस तरह पूरी अर्थव्यवस्था में सार्थक योगदान करना होगा। इस लक्ष्य के लिए ‘मेड इन इंडिया’ के विचार को केंद्र में रखते हुए देशव्यापी इंडस्ट्रियल कॉरिडोर विकसित करने की जरूरत है। यही नहीं, उच्च शिक्षा के क्षेत्र को रीडिजाइन करने और तकनीकी संस्थानों में बदलाव लाने की भी आवश्यकता होगी ताकि स्किल डेवलपमेंट पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए और जॉब-रेडी इंजीनियर तैयार किए जा सकें। जॉब-रेडी होने का मतलब प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, क्वालिटी कंट्रोल, आईपीआर और पेटेंट्स से जुड़ी ट्रेनिंग, पॉजिटिव तथा जिम्मेदार रुख और क्वालिटी प्रोडक्ट देते हुए ग्लोबल स्टैंडर्ड से कम्पीट करने की भावना भी है। कौशल स्तर का भी प्रमाणित होना जरूरी है ताकि वर्कफोर्स की बढ़ी हुई कारगरता सुनिश्चित की जा सके। बेहतर वैश्विक प्रभाव के लिए युवाओं को विदेशी भाषाएं सीखने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है। यह सेकेंडरी स्कूल लेवल पर शुरू किया जा सकता है। इसके लिए एनईपी 2020 को थिंक-एक्ट-रीथिंक मेथड से लागू करना होगा।
ग्लोबल स्टैंडर्ड से ऊपर
मैन्युफैक्चरिंग के ग्लोबल स्टैंडर्ड्स की पहचान कर हमें उनके पार जाने की जरूरत है। ग्लोबल बेंचमार्क को परिभाषित करने के लिए जापानियों ने मैन्युफैक्चरिंग के पांच एस सिद्धांत अपनाए- सीरी (चुनना), सीसो (चमकना), सीतन (तय करना), सीकेत्सु (मानकीकरण करना) और शित्सुकी (कायम रखना)। अमेरिकियों ने इन्हें अपनाया और डिफेंस इक्विपमेंट तथा अन्य क्षेत्रों में एक मजबूत ब्रैंड तैयार करने के लिए इनसे भी आगे बढ़े। वैश्विक स्तर पर जो सर्वश्रेष्ठ मानक और व्यवहार प्रचलित हैं उन्हें पहचानने और फिर पीछे छोड़ने के लिए भारत को टेक्नॉलजी और इनोवेशन से संचालित एक सख्त क्वॉलिटी रिजीम अपनानी होगी। इसके लिए नैशनल टेक्नॉलजी एक्ट, नैशनल प्रोडक्शन एक्ट में कड़े प्रावधान जोड़ने या नए कानून लाने की जरूरत पड़ेगी।
बाहरी और आंतरिक सुरक्षा प्रतिबद्धताओं के चलते भारतीय रक्षा बल हमेशा ही युद्ध में जुटे होते हैं। इसलिए देशी रक्षा साजो-सामान का परीक्षण कठिन ऑपरेशनल कंडीशंस में होता है। आकाश वेपन सिस्टम, ब्रह्मोस, पिनाक और भारत फोर्ज के एटीएजीएस भारतीय निर्यात का हरावल दस्ता हैं। मेड इन इंडिया की यात्रा शुरू करने पर रक्षा साजो सामान निर्यात में वैश्विक तौर पर पहली पसंद बनने के लिए हाई टेक्नॉलजी स्टैंडर्ड्स, लाइफ साइकल सपोर्ट और कठोर अंतरराष्ट्रीय अनुपालन अनिवार्यता होंगे विकल्प नहीं। भारत ने कोविड वैक्सीन के मामले में पूरी दुनिया की जरूरतें पूरी कर दिखाई, वही बात हमें अन्य टेक्नॉलजी के मामले में भी दोहरानी है।
टेक्नॉलजी के नीचे लटकते फल
क्यों न हम हम अगले पांच साल में अनमैंड ऑटोनोमस सिस्टम्स (ड्रोंस और रोबॉट्स) के नीचे लटकते फलों के मामले में बढ़त हासिल कर लें, जिसका 50 अरब डॉलर से अधिक का ग्लोबल मार्केट है। कुछ मेगाट्रेंड्स का जिक्र किया जाए तो इसमें वैकल्पिक ऊर्जा, ईवी, आईसीटी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर, सॉफ्टवेयर डिफाइंड नेटवर्क्स औऱ सहायक उपकरण, एआई, एआर, वीआर, मेटा, आईओटी, बिग डेटा एनालिटिक्स, ब्लॉकचेन और चिप मैन्युफैक्चरिंग आदि आ जाते हैं। इस लिहाज से एमएसएमईज और वैश्विक खरीदारों सहित स्थानीय उत्पादकों के लिए यूजर फ्रेंडली निर्यात नीति बनाने की जरूरत पड़ेगी। भारत की क्षमता के विकास तथा क्षमता निर्माण का एक प्रमुख कारक होगा इंडस्ट्रियल कॉरिडोर। अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वंद्विता में भारतीय मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री हाई-क्वालिटी एंटिटी के रूप में नजर आनी चाहिए।
एमआरओ ग्लोबल हब
उपकरणों के जन्म से श्मशान तक का जो जीवन चक्र है उसमें मेनटेनेंस, रिपेयर, ओवहॉल (एमआरओ) ही नहीं, समय समय पर आने वाले टेक्नॉलजिकल अपग्रेड्स और एंड ऑफ लाइफ मैनेजमेंट भी शामिल है। भारतीय सशस्त्र बलों को तीन जेनरेशन के उपकरणों- जेन एक्स और वाई की विरासत, समकालीन जेन जेड और अत्याधुनिक जेन अल्फा- की एमआरओ गतिविधियों में महारत हासिल रही है। युवाओं के उभार और एमआईआई रक्षा उपकरणों के निर्यात की जबर्दस्त संभावनाओं के मद्देनजर एमआरओ लाइफ साइकिल सपोर्ट एक बढ़िया मौका है जिसका वैश्विक स्तर पर फायदा उठाया जाना चाहिए। भारत टेक्नॉलजी, इनोवेशन और जुगाड़ का देश है जिसमें एमआरओ ग्लोबल हब बनने की पूरी संभावना है। उदाहरण के लिए तमाम कमर्शल विमानों के लिए टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स का एमआरओ ग्लोबल हब है जबकि लड़ाकू विमानों और यूएएस के लिए एचएएल के साथ मिलकर अडानी ग्रुप ने स्थापित किया, गंस के लिए भारत फोर्ज का एमआरओ हब है तो लड़ाकू वाहनों के लिए महिंद्रा डिफेंस का है और मिसाइल सिस्टम्स के लिए एल एंड टी ने स्थापित किया है।
इंडियन एमआरओ मेगा वर्कशॉप
एमआरओ हब की अवधारणा को बढ़ाते हुए एमआरओ मेगा वर्कशॉप तक ले जाया जा सकता है जहां एक ही छत के नीचे विभिन्न उपकरणों की एमआरओ सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हों। मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल की तर्ज पर ऐसे मल्टी स्पेशलिटी और मल्टी-स्किल वर्कशॉप कम ऐसेट वेयरहाउस की कल्पना करें जहां ओईएम्स, एमएसएमईज और सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट्स (जैसे आर एंड डी, डिजाइन और डेवलपमेंट के एक्सपर्ट्स), कंसल्टेंट्स, एडवाइजर्स और मैकेनिक रिपेयर, ओवरहॉल, टेक्नॉलजी अपग्रेड, प्रोडक्ट इंप्रूवमेंट, रिवर्स इंजीनियरिंग और छोटे बड़े इनोवेटिव हस्तक्षेप तक सब कुछ करते होंगे और वह भी इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट्स, वेपंस, वाइट इलेक्ट्रॉनिक्स, इक्विपमेंट असेंबलीज/ सब-असेंबलीज, सप्लाई बेबी कंपोनेंट्स सबमें।
यह वैसा ही होगा जैसे एक छत के नीचे चौबीसो घंटे चलने वाला ऐसा टेक्नॉलजी एक्सपो या डिफेक्सपो जहां अत्याधुनिक उपकरण और सस्टेनेंस सपोर्ट एक्टिविटी प्रदर्शित की जा रही हो। यह रोजगार का एक जबर्दस्त अवसर तो होगा ही, उससे भी ज्यादा यह रिपेयर, रिवर्स इंजीनियरिंग, 3 डी प्रिंटिंग और विभिन्न एमआरओ सॉल्यूशंस पर आत्मनिर्भर भारत का एक शो विंडो होगा।
निष्कर्ष
न्यू टेक वर्ल्ड ऑर्डर चार डी के जरिए परिभाषित किया जाता है- डेटा, डिजिटाइजेशन, डिजिटलाइजेशन और डिसरप्शन। इन सबने दुनिया भर में डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन को बढ़ावा दिया है जिससे बड़ी संख्या में डुअल यूज टेक्नॉलजी बढ़ी है जो ऑटोमेशन और ऑटोनोमस एप्लिकेशंस के पीछे की मुख्य ताकत रही है। इससे भी बड़ी बात यह है कि इन चारों ‘डी’ की ओर से आने वाला डिसरप्शन टेक्नॉलजी को अभूतपूर्व तेजी से बदल रहा है जिससे बिजनेस कॉन्सेप्ट्स, बिजनेस मॉडल्स, बिजनेस प्रॉसेस और बिजनेस प्रैक्टिस- सबमें आमूल बदलाव आ रहा है।
आत्मनिर्भरता और एमआईआई में रणनीति के लिहाज से ये खासे अहम हैं। इसरो और डीआरडीओ, इंडस्ट्री तथा पीएसयूज के टेक्नॉलजी और इनोवेशन सेंटर्स, स्टार्ट-अप्स और टी हब्स के द्वारा उपलब्ध कराए गए मजबूत तकनीकी आधार की पृष्ठभूमि में यह देश के इंडस्ट्रियल फैब्रिक को मजबूती देने का सही वक्त है। एक सुविचारित टेक्नॉलजी स्ट्रैटेजी और इस पेपर में उल्लिखित विभिन्न पहलकदमियों के जरिए उसे वैश्विक आकांक्षा से लैस करके यह काम किया जा सकता है। जो टेक्नॉलजी का एक पड़ाव लग रहा है उसे एक लंबी शानदार यात्रा में बदला जा सकता है। आइए ऐसा कर लिया जाए।
लेफ्टनेंट जनरल (डॉ.) अनिल कपूर, एवीएसएम, वीएसएम (रिटायर्ड)