संपादक की टिप्पणी
अनमैंड यानी मानवरहित सिस्टम्स लड़ाई के तौर-तरीकों को बदल रहे हैं। जैसा कि आर्मेनिया-अजरबैजान युद्ध ने दर्शाया है, इसका कुशल इस्तेमाल पलड़े को किसी खास सेना के पक्ष में झुका सकता है। तकनीकी दृष्टि से खास आगे न बढ़ी हुई फौज, यहां तक कि कोई आतंकवादी ग्रुप भी आर्थिक लिहाज से बेहद अहम ठिकानों को निशाने पर ले सकता है जैसा कि सऊदी अरब के अरामको तेल केंद्र पर हुए हमले से जाहिर है। प्रस्तुत लेख विभिन्न यूएएस की मौजूदा स्थिति समझाते हुए यह भी बताता है कि इन सिस्टम्स की अगली पीढ़ी इस क्षेत्र में बेहतर टेक्नॉलजी से लैस देशों को कैसी ताकतें/सहूलियतें मुहैया कराने वाली है।
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अनमैंड ऑटोनोमस सिस्टम (यूएएस) दूसरी ऑद्योगिक क्रांति के दौरान रोबोट के आगमन के साथ ही हमारी जिंदगी में दाखिल हुआ और उसके बाद से नए-नए रूपों में मैन्युफैक्चरिंग, लॉजिस्टिक्स, सप्लाई चेन, खतरनाक ऑपरेशंस, परमाणु इकाई और जटिल सर्जरी तक में साथ देता रहा है। डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन, नैनो टेक और मिनिएचराइजेशन से इस क्षेत्र में नवाचार को जैसे नई जिंदगी मिली। आज यूएएस ग्राउंड-बेस्ड सिस्टम्स ने एयरियल प्लैटफॉर्म्स, आउटर स्पेस ऐप्लिकेशंस और समुद्र में जल के अंदर स्थित सिस्टम्स तक में अपनी गहरी पैठ बना ली है।
अनमैंड ग्राउंड सिस्टम्स, अनमैंड शिप्स, अनमैंड एयरियल ऑटोनोमस सिस्टम्स या ड्रोन ने लगभग हर इंडस्ट्री को प्रभावित किया है और खास तौर पर डिफेंस ऐप्लिकेशंस पर सबसे ज्यादा असर डाला है। आर्मेनिया-अजरबैजान युद्ध, रूस-यूक्रेन युद्ध, सऊदी अरब का अरामको और जम्मू हवाई क्षेत्र हाल के दिनों में सही कारणों से चर्चा में रहे हैं- इन सबने ‘सीक एंड स्ट्राइक’ की सटीक हमले करने की क्षमता प्रदर्शित की- जिसने मैंड-अनमैंड (मानव-मानवरहित) हमलों के असमान युद्ध क्षेत्र में नए प्रयोगों की जरूरत स्थापित की।
ड्रोंस और उनके ट्विन ग्राउंड-बेस्ड सिस्टम्स या रोबोट्स ने मिलकर सप्लाई चेन, लॉजिस्टिक्स सपोर्ट, रोबोट बेस्ड स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग और सर्जरी समेत तमाम कॉमर्शियल एप्लिकेशंस में आमूल बदलाव ला दिए। इससे सैन्य क्षेत्र में भी डिसरप्शन आया। कुल मिलाकर, सबक यह है कि यूएएस आ चुके हैं और वे टिके रहने वाले हैं।
यूएएस से जुड़ी चुनौतियां
किसी तटीय क्षेत्र में एयरियल और ग्राउंड बेस्ड वेक्टर्स के समूह के साथ हमले की योजना बना रहे सीकर शूटर मोड में, पूरी तरह ऑटोनोमस एक अनमैंड सिस्टम की अनिश्चितता के बारे में सोचिए। भविष्य के ऑपरेशंस मनुष्य की कल्पना, व्याख्या और योजना की अभिव्यक्ति होने वाले हैं- कहीं भी और कभी भी। पिछले करीब एक दशक में टेक्नॉलजी ने सदियों पुरानी इस उक्ति को सच कर दिया है कि जो कुछ भी बताया जा सकता है, उसे डिजाइन किया जा सकता है, वह भी कम समय में।
यूएएस के रूप में टेक्नॉलजी आउटरीच (तकनीकी विकास) का यह प्रदर्शन त्वरित तैनाती का एक साधन बना रहेगा चाहे वह बाधाएं पार करते हुए आए या निर्बाध रहे, चाहे पारंपरिक नजर आए या गैरपारंपरिक दिखे, चाहे गति से उत्पन्न हो या गैर-गतीय साधनों से, चाहे 3डी प्रिंटेड हो या असेंबली लाइन पर हो और चाहे स्टेट फोर्सेज के जरिए तैनात हो या नॉन स्टेट एक्टर्स के हाथों में रहे।
अनमैंड कॉम्बैट ऑटोनोमस सिस्टम्स (यूकैस)
सैन्य मामलों में ‘डिसरप्शन’
डिजिटल रूपांतरण की बदौलत यूएएस-बेस्ड टेक्नॉलजी ने ह्यूमैनोएड के रूप में जाने जाने वाले रोबोटिक डिजिटल वॉरियर और उपयुक्त डिसरप्टिव टेक्नॉलजी के जरिए सैन्य गतिविधियों की पूरी दुनिया ही बदल डाली है चाहे वह सूचनाएं इकट्ठा करने का मामला हो या इंटेलिजेंस, रेकी और सर्वेलांस (निगरानी) का, चाहे बचाव और आक्रमण से जुड़े ऑपरेशंस का मामला हो या लॉजिस्टिक्स और सप्लाई चेन का या फिर बचाव तथा आक्रमण से जुड़े ऑपरेशंस में संसाधनों के नियंत्रण का। लड़ाई का दायरा भी जमीन, समुद्र और हवा से आगे बढ़ते हुए साइबर, अंतरिक्ष, मनोवैज्ञानिक प्रचार या दुष्प्रचार औऱ हाइब्रिड तक अनेकानेक रूपों में फैल चुका है। कुल मिलाकर देखा जाए तो डिसरप्टिव टेक्नॉलजी ने जनहानि को कम से कम रखते हुए निर्णायक प्रो-एक्टिव एक्शंस के ड्राइवर के तौर पर ‘ऊडा लूप’ की रफ्तार बढ़ा दी है। डिसरप्शन ने सैन्य मामलों में नए युग का सूत्रपात किया है जिसमें हम सब लोग जो मानते थे कि जीत फुट (कदमों) से नापी जाती है, अब इस मान्यता से चल रहे हैं कि जीत डिजिटल अनमैंड फुटप्रिंट से नापी जाती है।
यूएएस संचालित लड़ाई
हालांकि यह नॉन स्टेट एक्टर्स का काम था, लेकिन यमन के ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों का 12 अप्रैल 2021 (और उससे पहले 14 सितंबर 2019) को सऊदी अरब की राजधानी स्थित अरामको रिफाइनरी पर बम और मिसाइल लदे ड्रोन से किया गया हमला इस राज्य के ऊर्जा और सुरक्षा प्रतिष्ठान पर आक्रमण था। ये ड्रोन 500 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक ऑटोनोमस मोड में उड़ते हुए आए और पूरी सटीकता से अपने टारगेट को भेद दिया।
लेकिन टेक्नॉलजी के जरिए लड़े गए निर्णायक युद्ध का उपयुक्त उदाहरण आर्मेनिया-अजरबैजान युद्ध है। आधुनिक युद्ध इतिहास का वास्तव में यह पहला ही युद्ध है जो लगभग पूरी तरह से ड्रोंस की ताकत से जीता गया। आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच युद्ध नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को लेकर शुरू हुआ था। जहां आर्मेनिया टैंकों, तोपों और वायु रक्षा प्रणालियों (एयर डिफेंस सिस्टम्स) से लड़ा, वहीं अजरबैजान ने मुख्यतया यूएएस (ड्रोंस) पर भरोसा किया, खासकर तुर्की में बने बायरक्तार टीबी 2 और इजरायल में बने कामिकेज ड्रोंस पर। दोनों ड्रोंस क्रमशः 55 किलोग्राम और 15 किलोग्राम तक के बम ले जा सकते थे। ये मिसाइल बैटरीज, एयर डिफेंस रडार्स और उन सभी उपकरणों को निशाना बनाने में काफी उपयोगी साबित हुए जिनसे रेडिएशन निकलता है या जिनमें थर्मल सिगनेचर होता है।
आर्मेनियाई फौज ने करीब 185 टैंक्स, 45 आर्मर्ड फाइटिंग वीइकल्स, 44 इन्फैंट्री फाइटिंग वीइकल्स, 147 टोड आर्टिलरी गन्स, 19 सेल्फ प्रॉपेल्ड आर्टिलरी, 72 मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर्स और 12 रडार्स गंवाए, जबकि अजरबैजान को हुआ नुकसान इसका छठा हिस्सा ही था। इंसान बनाम मशीन युद्ध में यूएएस की घातकता का कोई जोड़ नहीं है।
रूस-यूक्रेन युद्ध
रूस और यूक्रेन दोनों टारगेट तय करने, उन पर आर्टिलरी फायर छोड़ने और कामिकेज ड्रोंस को तैनात करने के लिए ड्रोंस का भरपूर इस्तेमाल करते रहे हैं। ये ड्रोन हथियार भंडारों, सैन्य तंत्र से जुड़े ठिकानों और जहाजों को निशाना बनाते रहे हैं, हालांकि इसके प्रभाव स्थानीय स्तर के ही हुए हैं। यूक्रेन अमेरिकी स्विचब्लेड कामिकेज, तुर्की बायरक्तार टीबी 2 और अन्य मित्र देशों द्वारा भेजे ड्रोंस का उपयोग करता रहा है। इन ड्रोनों ने क्रीमिया स्थित रूसी सैनिक अड्डों, रूसी ब्लैक सी बंदरगाह के जहाजी बेड़ों और सेवैस्टोपोल के एयर बेस पर हमले किए। रूसी फौजों ने भीतरी इलाकों तक मार करने और प्रभावी गोलीबारी सुनिश्चित करने के लिए ओरलान 10 का इस्तेमाल किया।
यूएएस और चीन
चीन अनमैंड ऑटोनोमस सिस्टम्स- कॉमर्शियल ड्रोंस, मिलिट्री ड्रोंस और ह्यूमैनोएड्स (रोबोटीकृत इंसान) का मैन्युफैक्चरिंग हब है। कॉमर्शियल ड्रोंस के सबसे बड़े सप्लायर चीन ने मिलिट्री ड्रोंस- लीथल पेलोड्स, सर्वेलांस पेलोड्स औऱ लॉजिस्टिक्स लोड्स ले जाने वाले ऑटोनोमस ऑपरेशंस के लिए एआई से लैस माइक्रो और मेगा हाई ऐल्टिट्यूड एंडुरेंस (हेल), मेल ड्रोंस- भी बनाने शुरू कर दिए हैं। चीन विभिन्न रोजगारों और तैनाती से जुड़ी स्थितियों के लिए भी रोबोट ह्यूमैनोएड्स विकसित करता रहा है।
नई पीढी के लीथल ऑटोनोमस वेपन सिस्टम्स (लॉज)
अनमैंड सिस्टम्स के समूह
ग्राउंड-बेस्ड अनमैंड सिस्टम्स (रोबोट्स), अनमैंड एयरियल सिस्टम्स, समुद्र स्थित तथा जल के अंदर वाले अनमैंड सिस्टम्स और जमीन तथा हवा दोनों के लिए हाइब्रिड सिस्टम्स तैयार करने के लिए एआई प्लैटफॉर्म्स का उपयोग किया जा रहा है। भविष्य में होने वाले युद्ध के लिहाज से ये टेक्नॉलजीज गेमचेंजर हैं और ऑटोमेशन (बिजनेस इंटेलिजेंस) से ऑटोनोमस सिस्टम्स की ओर बढ़ते हुए परिदृश्य बदल देने की कूवत रखती हैं।
नैनो टेक्नॉलजी से संचालित पाम टॉप ड्रोंस यूएएस का नया रूप हैं जो ब्लॉक हॉरनेट्स तथा उससे भी ज्यादा ओरनीथॉप्टर्स की तरह सीकर शूटर मोड में तैनात किए जा सकते हैं। इस नए खतरे के मद्देनजर हमें क्वाडकॉप्टर्स/हेक्सा या ऑक्टोकॉप्टर्स/मिनी हेलिकॉप्टर्स फिक्स्ड विंग यूएएएस या ओरनीथॉप्टर्स के समूह की तैयारी करने की जरूरत है जिन्हें सैन्य ऑपरेशंस के दौरान पिछले इलाकों में संवेदनशील ठिकानों पर तैनात किया जा सकेगा।
अनमैंड एयरियल आर्म के साथ तालमेल बिठाए रखता है फ्यूल इंजन/इलेक्ट्रिक पावर/सोलर पावर/हाइब्रिड की ताकत से युक्त रोबोट म्यूल्स सहित अनमैंड ग्राउंड सिस्टम्स (यूजीएस), जो जरूरत के मुताबिक तालमेल के साथ भी काम कर सकता है और अकेले भी। ये सिस्टम्स इस लिहाज से विशेष लड़ाकू बल माने जा सकते हैं कि ये मौके के मुताबिक मुख्य या सहायक भूमिका निभाते हुए डमीज से स्लीपर सेल्स तक अलग-अलग सेवाएं देते की क्षमता रखते हैं।
यूएएसः दोहरा उपयोग
व्यापक बैंडविड्थ की बदौलत यूएएस में जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने की जबर्दस्त क्षमता है। हवा और जमीन आधारित अनमैंड ऑटोनोमस सिस्टम्स सप्लाई चेन, लॉजिस्टिक्स परिवहन, एयर टैक्स, एयर एंबुलेंस, खेती, स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग, गंभीर सर्जरी, सीवेज सिस्टम मेनटेनेंस, न्यूक्लिय पावर सिस्टम जैसे तमाम क्षेत्रों में काम कर सकते हैं। 5जी स्पेक्ट्रम आ जाने के बाद कम्यूनिकेशन की बढ़ी हुई रफ्तार के मद्देनजर रीयल टाइम रिमोट सर्जरी भविष्य का यथार्थ बन चुके हैं। ड्रोंस समेत अनमैंड ऑटोनोमस सिस्टम्स की तैनाती से संबंधित अनेकानेक नीतियां अमल में लाई जा रही हैं। सड़क हाईवे के लिए स्थान की सीमाओं को देखते हुए हवा में हाईवे और सेफ लेन भविष्य की जरूरत ही नहीं, एक तरह से अनिवार्यता है।
निष्कर्ष
आत्मनिर्भर भारत प्रभाव
यूएएस और एंटी-यूएएस टेक्नॉलजी के प्रचार-प्रसार के लिए कन्सॉर्शियम एप्रोच वक्त की जरूरत है। सैन्य उपयोग के अलावा ये टेक्नॉलजी लॉजिस्टिक्स, सप्लाई चेन से जुड़े एप्लिकेशंस में ही नहीं लोगों और सामानों को लाने ले जाने के लिए एयर स्पेस का अधिकाधिक इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिहाज से भी खासी उपयोगी है। यूएएस का जबर्दस्त बैंडविड्थ इसके दोहरे इस्तेमाल को संभव बनाता है। इसे लेकर वैश्विक जागरूकता है और इसकी दुनिया भर में जरूरत भी है। जरूरी है कि आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया मिशन के तहत इनके संभावित सैन्य और असैन्य उपयोगों को लेकर प्राथमिकता और रणनीति स्पष्ट की जाए। इसकी जबर्दस्त मांग और निर्यात संभावनाओं का फायदा उठाने के लिए इंडस्ट्री को कमर कसनी होगी।
पुछल्ला
अनमैंड ऑटोनोमस सिस्टम्स आ गए हैं, ये बने रहने वाले हैं। कई लोगों का कहना है कि मिलिट्री ड्रोंस गरीबों के लड़ाकू विमान की तरह हैं और समूह के तौर पर ये लड़ाकू विमानों से ज्यादा नहीं तो उतने ही घातक जरूर साबित हो सकते हैं। सस्ती दर पर और छोटी जगह में टेक्नॉलजी के विस्तृत रेंज की उपस्थिति और थोड़ी सी ट्रेनिंग के साथ हमलों के बड़े प्रभाव जैसे कारकों के मद्देनजर यह धारणा मजबूत हो रही है। युद्ध क्षेत्र में तैनाती के बाद इन्हें आकाश में दृष्टि सीमा से कहीं आगे तक नजर रखते हुए सीक एंड शूटर ऑटोनोमस मोड में मार करनी होती है। इन खतरों को उनकी पूरी जटिलता के साथ समझना और उनके लिए तैयार रहना जरूरी है। यूएएस औऱ एंटी-यूएएस अब कोई विकल्प नहीं हैं। भविष्य की चुनौतियों से निपटने की तैयारी रखने और पारंपरिक, गैरपारंपरिक, हाइब्रिड जैसे तमाम मोर्चों पर संचालन की कारगरता सुनिश्चित करने के लिहाज से ये अनिवार्य हो गए हैं।
लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) अनिल कपूर एवीएसएम, वीएमएम, (रिटायर्ड)