संपादक की टिप्पणी
हाइपरसोनिक वेपन सिस्टम सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिहाज से एक लंबी छलांग है। इसे लेकर सभी बड़ी शक्तियों में होड़ चल रही है। एक बार ये वेपन सिस्टम आ जाए तो देश का डिटरेंस (प्रतिरोध) लेवल काफी बढ़ जाता है। हाइपरसोनिक्स से नागरिक उड्डयन क्षेत्र को भी नई ऊंचाई मिलने की संभावना है। ज्यादातर अत्याधुनिक तकनीकें जो विकसित की जा रही हैं, वे सैन्य और सिविल दोनों क्षेत्रों में उपयोग की जा सकती हैं। प्रस्तुत लेख हाइपरसोनिक सिस्टम, इसमें आगे बने रहने की होड़ और इसके उपयोग की संभावनाओं से जुड़ी मूल बातों को बारीकी से समझाता है।
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मीडिया में 18 अगस्त को रिपोर्ट आई कि रूसी रक्षा मंत्रालय ने कहा है, बाल्टिक सागर क्षेत्र के चकालोव्स्क एयर बेस पर किंझल हाइपरसोनिक मिसाइलों से लैस तीन मिग-31 फाइटर पहुंच गए हैं जो अतिरिक्त सामरिक प्रतिरोध के कदमों का हिस्सा हैं।
प्रस्ताव
दुनिया में अचानक हाइपरसोनिक हथियारों की होड़ तब दिखने लगी जब चीन ने हाइपरसोनिक ग्लाइड वीइकिल लॉन्च किया और उत्तर कोरिया हाइपरसोनिक मिसाइल की डींग हांकने लगा। भारत ने भी सितंबर 2020 में अपना पहला वीइकिल सफलतापूर्वक लॉन्च करते हुए हाइपरसोनिक तकनीक का प्रदर्शन करने वाले देशों के क्लब में अपने प्रवेश की सूचना दे दी। आज अमेरिका, चीन और रूस के पास सबसे आधुनिक हाइपरसोनिक हथियार क्षमता है, जबकि फ्रांस, जर्मनी, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और उत्तर कोरिया हाइपरसोनिक मिसाइल टेस्ट करने का दावा कर रहे हैं।
राइट बंधुओं ने 1903 में शायद ही सोचा होगा कि उनकी वह उड़ने वाली मशीन तकनीकी उन्नति और नवाचार के ऐसे रूप देखेगी। अधिक से अधिक रफ्तार की खोज जारी रखते हुए सोनिक साउंड की सीमा पहली बार 14 अक्टूबर 1947 को मेजर चक येगर ने बेल X-1 रॉकेट उड़ाते हुए तोड़ी जिसके बाद अमेरिकी डब्लूएसी कॉरपोरल साउंडिंग रॉकेट हाइपरसोनिक की श्रेणी में जाने वाली पहली मानवनिर्मित वस्तु बना।
हाइपरसोनिक की चुनौती
हाइपरसोनिक सिस्टम एक मील प्रति सेकंड से ऊपर की स्पीड से उड़ता है जो ध्वनि की गति से पांच गुना ज्यादा यानी 5 मैच है। हाइपरसोनिक साउंड की सीमाओं को पार करने की चुनौती बहुत बड़ी है। हाइपरसोनिक रफ्तार में वायु यान के चारों ओर लिपटे हवा के कण अलग होकर आयनीकरण प्रक्रिया के तहत चार्ज हो जाते हैं। इससे हाइपरसोनिक वाहन पर जबर्दस्त दबाव पड़ता है, वातावरण से इसके घर्षण के कारण अत्यधिक गर्मी पैदा होती है।
चाहे विमान की बात हो या मिसाइलों की, हाइपरसोनिक सिस्टम का मतलब है इंजीनियरिंग और सपोर्ट सिस्टम तकनीक से जुड़ी चुनौतियों का एक जटिल संग्रह। 1100 डिग्री सेंटिग्रेड से ऊपर की झुलसाती गर्मी वाले अत्यधिक ऊंचे तापमान को बर्दाश्त करने लायक मजबूत ढांचे के लिए एडवांस्ड मैटेरियल चाहिए। इन सामरिक वेपन सिस्टम के लिए जरूरी सटीकता बनाए रखने वाला कंट्रोल सिस्टम और गति बरकरार रखने वाला प्रॉपल्शन सिस्टम चाहिए होता है। स्टैंडर्ड डिजाइन और डेवलपमेंट के अतिरिक्त फॉर्म फैक्टर स्पेस मैनेजमेंट के मिसाइल सिस्टम से जुड़ी जटिलताएं, मिनिएचराइजेशन, परिष्कृत पावर मैनेजमेंट तथा मिसाइल सिस्टम की स्टैबिलिटी से जुड़ी चुनौतियां भी अपनी जगह हैं ही।
हाइपरसोनिक में आर एंड डी एक बड़ी चुनौती है। बहुत कम देश और संस्थान ऐसे हैं जिनके पास मैकेनिकल स्ट्रेस, उच्च गति वाले इलेक्ट्रॉनिक्स और संबंधित ईएमआई/ईएमसी की जांच करने वाले हाइपरसोनिक विंड टनेल और एन्वायरनमेंटल चैंबर हों।
हाइपरसोनिक प्लैटफॉर्म क्यों
युद्ध क्षेत्र की अनिश्चितताओं का सामना करने के लिए लड़ाकू विमान और मिसाइल सिस्टम खास तौर पर सुदृढ़ीकृत किए जाने के क्रम में चार कसौटियों पर कसे जाते हैं- कौशल, रक्षा, गोपनीयता और गोलाबारी की क्षमता। प्रदर्शन नापने का सबसे मुख्य निर्णायक इंडिकेटर है- बचे रहने की क्षमता। उच्च गतिशीलता को अंतर्निहित सुरक्षा के रूप में देखा जाता है।
एयरियल प्लैटफॉर्म चाहे एयरक्राफ्ट हों या मिसाइल आश्चर्यजनक कौशल और उच्च गतिशीलता से युक्त लड़ाकू सिस्टम हैं। मिसाइल और रॉकेट की बात करें तो ये बैलिस्टिक या क्रूज हो सकते हैं। बैलिस्टिक मिसाइल एक ऐसा टिपिकल प्रोजेक्टाइल है जिसकी मार रफ्तार और ऊंचाई से तय होती है और जो विशुद्ध या कृत्रिम बैलिस्टिक ट्रैजेक्टरी (प्रक्षेप पथ) का अनुसरण कर सकता है। एक बूस्ट फेज होता है जहां मिसाइल 30 किलोमीटर या उससे भी ज्यादा ऊंचाई तक उठती है, प्रॉपल्शन सिस्टम बंद हो जाता है और मिसाइल पृथ्वी के वातावरण में दोबारा प्रवेश करते हुए मैच 5 से भी ज्यादा की गति से या तो बैलिस्टिक ट्रैजेक्टरी में पत्थर की तरह गिरती है या फिर पूर्वनिर्धारित, संशोधित ट्रैजेक्टरी में पंखों (विंग्स) और अन्य कंट्रोल सरफेसेज के जरिए सावधानी से संचालित की जाती हैं।
इसके विपरीत क्रूज मिसाइल पूरी ट्रैजेक्टरी के दौरान संचालित होते हैं। हाइपरसोनिक वेपन सिस्टम, जो 20 मैच से ज्यादा तेज रफ्तार से उड़ सकते हैं, एक तेज, चपल सिस्टम है। यह इस तरह डिजाइन किया गया है कि किसी भी बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (बीएमडी) को महज रफ्तार और कौशल से पछाड़ सकता है। जहां विमानों में 8 जी तक की अंतर्निहित मानवीय सीमा होती है, वहीं मिसाइल अपनी ढांचागत मजबूती के हिसाब से 20 जी से भी आगे तक परफॉर्म कर सकते हैं।
लेकिन एचजीवी का एक और संभावित इस्तेमाल इंटेलिजेंस, सर्वेलांस एंड रिकॉन्सन्स (आईएसआर) यानी खुफिया सूचनाएं जुटाने, निगरानी रखने और टोह लेने में हो सकता है। हालांकि उस रफ्तार से सूचनाएं जुटाने और प्रदर्शित करने वाली टेक्नॉलजी अभी भी तैयार होने की प्रक्रिया में है।
हाइपरसोनिक सिस्टम का बड़ा फायदा यह है कि इन मिसाइलों तथा ग्लाइड वीइकिलों का पता करना बहुत मुश्किल होता है। उसके लिए कई तरह के अंतरिक्ष आधारित निगरानी उपकरणों की जरूरत होती है। यह ऐसी टेक्नॉलजी है जो अभी भी आर एंड डी चुनौतियों से गुजर रही है।
हाइपरसोनिक प्लैटफॉर्म्स
हाइपरसोनिक प्लैटफॉर्म्स दो तरह के होते हैं- ग्लाइड वीइकिल्स और क्रूज मिसाइल्स। पहला मुख्य वीइकल है क्योंकि यह रॉकेट से लॉन्च किया जाता है और उसके बाद टारगेट पर फिसलते हुए मिसाइलों का हाइपरसोनिक प्रॉपल्शन (प्रणोदक) हासिल करने की चुनौतियों से मुक्त हो जाता है। टेक्नॉलजी के नजरिए से देखें तो पहली बड़ी चीज है प्रॉपल्शन सिस्टम। हाइपरसोनिक मिसाइलों में एडवांस्ड रैम जेट्स इंजन और सुपरसोनिक कम्बश्चन रेमजेट्स या स्क्रैमजेट्स होते हैं जो उड़ान के दौरान गति पैदा करने के लिए हवा से ऑक्सीजन लेकर उसे हाइड्रोजन ईंधन में मिलाते हैं ताकि संतुलित रफ्तार और ऊंचाई बनी रहे।
हाइपरसोनिक प्रॉपल्शन सिस्टम में सॉलिड और लिक्विड प्रॉपेलेन्ट्स, दोनों का मिश्रण या एक डुअल कम्बश्चन रैमजेट हो सकते हैं जो सही कंट्रोल सिस्टम तैयार करते हैं। सॉलिड प्रपल्शन सिस्टम्स का इस्तेमाल अमूमन बूस्ट फेज में होता है, लिक्विड का क्रूज फेज में। महत्वपूर्ण डिजाइन पैरामीटर्स प्रायः प्रॉपेलेंट डिजाइन और नॉजल डिजाइन पर निर्भर करते हैं। अत्यधिक थर्मल और मैकेनिकल दबावों के बीच काम करने के लिए नॉजल को संरचनात्मक अखंडता चाहिए जिसके लिए प्लैटिनम अनिवार्य होता है। रेंज को टर्मिनल इफेक्ट (अंतिम परिणाम) से संतुलित करने के लिए एक्सप्लोसिव पेलोड और प्रॉपल्शन के बीच अदला बदली होती है। ऑल-अप वेट (पूरा वजन) पूरी तरह संतुलित रखने की जरूरत होती है।
इस प्रकार एयरफ्रेम हलका होना चाहिए लेकिन इसमें ऐसी संरचनात्मक मजबूती भी होनी चाहिए जिससे यह एयरोडायनामिक (वायुगतिक) शक्तियों और गहन गर्मी को बर्दाश्त कर सके। एल्युमिनियम, एलॉय, टाइटैनियम, स्टील, मैग्नेशियम, रीइन्फोर्स्ड (प्रबलित) सिलिकॉन और पीजोइलेक्ट्रिक फायबर एडवांस्ड मैटेरियल हैं। गर्मी में सिकुड़ने वाला हीट शील्ड (गर्मी अवरोधक) बनाया जाता है संशोधित सिलिकॉन रबर और कार्बन रीइन्फोर्स्ड कंपोजिट (कार्बन प्रबलित मिश्रण) से। खासकर रेडम के ऊपरी हिस्से में बेहतर तापमान नियंत्रण के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।
गाइडेंस कंट्रोल सिस्टम (निर्देश नियंत्रण व्यवस्था) किसी भी मिसाइल सिस्टम का मस्तिष्क होता है जिसमें एक कंप्यूटर, एक इनर्शल मेजरमेंट युनिट और कंट्रोल सरफेसेज होते हैं जो टारगेट के मद्देनजर मिसाइल की बिलकुल सही और सटीक स्थिति निर्धारित करते हैं। गिम्बॉल्ड इंजिन इसे अपेक्षित ताकत से धकेलते हैं। लिक्विड प्रॉपल्शन इंजिन में थ्रस्ट वैक्टर कंट्रोल ये भूमिका निभाते हैं। हाइपरसोनिक हाइप (प्रचार) की जड़ यही है। उच्च तकनीक और लागत वाला एक अत्यंत फुर्तीला मिसाइल सिस्टम जिसे नाकाम करना मुश्किल है, जिसकी सटीकता ऐसी है कि टारगेट को भेदने में नहीं चूकती। इसके लिए जीरो लैटेंसी वाले और इमेज रिकग्निशन के जरिए रियल टाइम टर्मिनल गाइडेंस से लैस रिस्पॉन्सिव कंट्रोल सिस्टम समर्थित आवश्यक उपयुक्त ट्रैजेक्टरी का अनुसरण करने वाला एक वेलट्यून्ड इनशर्ल मैनेजमेंट युनिट अनिवार्य है। तभी नियर जीरो सर्कुलर एरर ऑफ प्रोबैबिलिटी (सीईपी) हासिल किया जा सकता है। हाइपरसोनिक ग्लाइड वीइकिल और हाइपरसोनिक मिसाइलों को हाई वैल्यू टारगेट पर सटीक निशाने के लिए प्रोग्राम किया जाता है।
एक सवाल यह उठता है कि लक्ष्य (टारगेट एंड) तक कितना विस्फोटक (पेलोड) ले जाया जाता हैः 500 किलोग्राम, 1000 किलोग्राम या और अधिक? पेलोड को अधिकतम संभव सीमा तक बढ़ाना डिजाइनर की चुनौती होती है और यही हाइपरसोनिक प्लैटफॉर्म का मूल है।
हाइपरसोनिकः वैश्विक परिदृश्य
अमेरिका, चीन और रूस के बीच बढ़ी हुई होड़ के केंद्र में हाइपरसोनिक हथियार ही हैं। हाइपरसोनिक हथियारों की होड़ खासकर लंबी दूरी वाली हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलों और हाइपरसोनिक ग्लाइड वीइकिलों (एचजीवी) में बढ़ रही है। स्ट्रैटेजिक टारगेटिंग में डिसरप्शन पैदा करने के लिए एचजीवी आईसीबीएम पर चलते हैं। भारत, जर्मनी, फ्रांस, जापान और उत्तर कोरिया हाइफरसोनिक मिसाइलों का गहन परीक्षण करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। टेक्नॉलजी डिमॉन्सट्रेटर्स की बदौलत लंबी दूरी के आईसीबीएम, आईआरबीएम और एमआरबीएम सहित एचजीवी के प्रयोग और प्रसार की संभावना है।
चीन ने मिसाइलों और एचजीवी के क्षेत्र में तेजी से प्रगति की है। उसने डीएफ-41 (आईसीबीएम) और डीएफ-17 (मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल) के कई सफल परीक्षण किए जो विभिन्न मात्राओं में वारहेड ले जाने में सक्षम हाइपरसोनिक ग्लाइड वीइकिल लॉन्च करने के लिए बनाए गए थे। चीनी हाइपरसोनिक ग्लाइड वीइकिल डीएफ जेडएफ (चीनी हाइपरसोनिक सिस्टम) को कई सारे आईसीबीएम और एमआरबीएम में फिट किया जा सकता है। लो ट्रैजेक्टरी की वजह से डीएफ जेडएफ का पता लगाना लगभग नामुमकिन होता है। खबरों के मुताबिक चीन ने पिछली गर्मियों में संभवतः दो हाइपरसोनिक हथियारों का परीक्षण किया जिनमें परमाणु विस्फोटक ले जाने की क्षमता से लैस, दोबारा उपयोग करने लायक स्पेस वीइकिल के रूप में ऑरबिटिंग हाइपरसोनिक हथियार अंतरिक्ष में लॉन्च करना भी शामिल है।
रूस के पास तीन हाइपरसोनिक प्लैटफॉर्म हैं रूसी हाइपरसोनिक ग्लाइड वीइकिल अवांगार्ड, हाइपरसोनिक एयर लॉन्च्ड बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम किंझल और हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल जिरकॉन। अवांगार्ड किसी आईसीबीएम या शिप (जहाज) से लॉन्च किया जा सकता है और बताते हैं कि पारंपरिक तथा परमाणु दोनों तरह के वारहेड्स ले जाने में सक्षम है। दावा यह भी किया जाता है कि यूक्रेन युद्ध के दौरान पहली बार रूस ने किंझल मिसाइल के रूप में हाइपरसोनिक हथियार तैनात किए। हालांकि किंझल हाइपरसोनिक रफ्तार से चलता है लेकिन यह एक बैलिस्टिक मिसाइल है और हाइपरसोनिक हथियारों की श्रेणी में नहीं आता।
हाइपरसोनिक टेक्नॉलजी विकसित करने में अमेरिका को चीन और रूस की ओर से तगड़ा कॉम्पिटिशन मिलता रहा है। आईसीबीएम के लिए हाइपरसोनिक ग्लाइड वीइकिल विकसित किए जा रहे हैं। हवा से छोड़े जाने वाले क्रूज हाइपरसोनिक मिसाइल से संबंधित डीएआरपीए प्रॉजेक्ट पर काम चल रहा है और खबरों के मुताबिक 2015 से 2024 की अवधि के लिए 15 अरब डॉलर की रकम मंजूर हो चुकी है। टॉमहॉक क्रूज मिसाइल ने लगभग पूर्णता के साथ टर्मिनल गाइडेंस का प्रदर्शन किया जो हाइपरसोनिक वेपन सिस्टम में अपनाया जा सकता है। चीन से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा और आर एंड डी की ऊंची लागत- इन दोनों बातों को ध्यान में रखते हुए कॉन्सर्शियम एप्रोच को बेहतर मान ऑकस देश- ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस- उच्च प्रदर्शन वाले सस्ता सिस्टम विकसित करने के समझौते के तहत हाइपरसोनिक और काउंटर हाइपरसोनिक पर आपस में सहयोग कर रहे हैं।
एशिया का क्षेत्रीय शक्ति केंद्र होने के नाते और चीन के मद्देनजर भी भारत की सुरक्षा जिम्मेदारियां बहुत बड़ी हैं। हिंद महासागर और हिंद प्रशांत क्षेत्र के बदलते हालात को देखते हुए ये चुनौतियां और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं। भारतीय हाइपरसोनिक मिसाइल प्रोग्राम में एक हाइपरसोनिक टेक्नॉलजी डिमॉन्सट्रेटर वीइकिल (एचएसटीडीवी), एक एचजीवी, शौर्या हाइपरसोनिक मिसाइल, एक एयरोबैलिस्टिक मिसाइल रुद्रम 3, और रूसी हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल जिरकॉन की तर्ज पर भारत-रूस संयुक्त उपक्रम में बने ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम का ब्रह्मोस II शामिल है।
डुअल यूस हाइपरसोनिक्स
स्पेस मिशन के संदर्भ में हाइपरसोनिक टेक्नॉलजी बहुत पहले से खबरों में रही है। मंगल और बाहरी अंतरिक्ष की यात्रा करने और संभावनाएं तलाशने वाले मिशनों की शांतिपूर्ण तकनीकी होड़ अब अंतरमहादेशीय यात्राओं को अधिक से अधिक तेज बनाने के प्रयासों में प्रवेश कर रही है। टेक्नॉलजी डिमॉन्स्ट्रेटर्स में यूएस X 15, यूएस xcor Lynx , यूएस बोइंग X51, वेव राइडर एंड x43, यूके आरईएल स्काईलन, जर्मनी शार्प एज फ्लाइट एक्सपेरिमेंट (शेफेक्स) और बेशक भारतीय एचएसटीडीवी शामिल हैं।
सुपरसोनिक ब्रिटिश एय़रवेज-एयर फ्रांस कॉनकॉर्ड फ्लाइट्स ने यात्रा को रफ्तार जरूर दी, लेकिन कुछ समय बाद बढ़ते मेनटेनेंस खर्च की वजह से इसे बंद करना पड़ा। वैसे हाइरसोनिक कमर्शल एय़रोप्लेन्स के लिए भविष्य में बहुत अच्छी संभावनाएं हैं, खासकर कनेक्टेड ग्लोबल वन दुनिया में जहां दूरी को यात्रा में लगने वाले समय के रूप में देखा जाता है। सुविधाजनक यात्रा अनुभव सुनिश्चित करने के लिए साउंड बैरियर सीरीज तोड़ने के प्रभावों को कम करने के लिए सुपरसोनिक और हाइपरसोनिक गति से यात्रा को लेकर गहन रिसर्च का काम चल रहा है।
लागत का सवाल
एयरक्राफ्ट डिजाइन और मिसाइल टेक्नॉलजी के क्षेत्र में अगला डिसरप्शन है हाइपरसोनिक इको सिस्टम। इसे लॉन्ग शॉट समझना चाहिए- 2035 और उससे आगे। भविष्य में बाहरी अंतरिक्ष की यात्रा और खोज अभियानों, अंतरमहादेशीय यात्राओं और सैन्य मकसदों में इसके बढ़ते इस्तेमाल की संभावनाएं हाइपरसोनिक्स को आर एंड डी के लिए प्राइम टेक्नॉलजी बना रही हैं। इऱादा ऐसी सस्ती टेक्नॉलजी लाना है जो ग्लाइड एयरियल हाइपरसोनिक प्लैटफॉर्म्स लॉन्च करे और सैन्य उपयोग के लिए रीयल टाइम आईएसआर एक्शनेबल सूचनाएं जुटाने, मिलाने और प्रदर्शित करने वाला तथा सिविलियन उपयोग के लिए सुरक्षित और सुविधाजनक यात्रा सुनिश्चित करने वाला हाइपरसोनिक डिजाइन करे। दोबारा उठ खड़ा हुआ आत्मनिर्भर भारत अगली पीढ़ी की तकनीकी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है। ऑकस के साथ मिलकर कॉन्सर्शियम नजरिया लागत के सवाल को भी आसान बना सकता है।
एक दिलचस्प बहस चल रही है- हाइपरसोनिक हाइप डिटरेंस इफेक्ट के लिहाज से सचमुच गेमचेंजर है, एक ऐसा आइडिया है जिसका टाइम आ गया है या यह एक अनावश्यक तकनीकी मृगतृष्णा है, सैन्य क्षमताओं पर नाम मात्र का प्रभाव डालने वाला आर्थिक बोझ मात्र है। इस बहस की दिशा आगे राष्ट्रीय राजनीतिक इच्छा पर निर्भर करती है लेकिन यहां एक बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि यह टेक्नॉलजी ऐसी है जिस पर नेबर्स एन्वी, ओनर्स प्राइड (पड़ोसियों की ईर्ष्या, मालिक का गर्व) उक्ति सटीक बैठती है।
भारत की क्या स्थिति है इस मामले में? हमने टेक्नॉलजी प्रदर्शित कर दी है और दृढ़ इच्छा शक्ति दिखा चुके हैं। लेकिन एक हाइपरसोनिक मिसाइल की अनुमानित कीमत 10 करोड़ डॉलर से ज्यादा बैठती है। इसके मुकाबले एक ब्रह्मोस मिसाइल की लागत आती है 30 लाख डॉलर।
इसलिए निर्णायक सवाल इस संबंध में ये होंगे कि राष्ट्रीय सुरक्षा और टेक्नॉलजी रणनीति के लिहाज से हाइपरसोनिक टेक्नॉलजी विकास की किस अवस्था में है, डुअल यूस के लिहाज से इसकी क्या स्थिति है और भू रणनीतिक प्रभावों के नजरिए से ये कहां ठहरते हैं? सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार औऱ कॉरपोरेट द्वारा संचालित भारतीय अंतरिक्ष और सैन्य कार्यक्रमों की स्थिति को देखते हुए क्या हम वैश्विक होड़ में आगे रहने की सोच सकते हैं और हमें सोचना चाहिए? फैसला हो चुका है। भारत को जल्दी करना होगा, लेकिन धीरे-धीरे।
वैश्विक स्तर पर देखें तो सर्वश्रेष्ठ का अभी इंतजार है।
लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. अनिल कपूर, एवीएसएम, वीएसएम (रिटायर्ड)