आतंक फैलाने में पाकिस्तान कर रहा है रोहिंग्या का भी इस्तेमाल

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जम्मू और कश्मीर में चलाए जा रहे छद्म युद्ध में पाकिस्तान की शिरकत, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे खतरनाक आतंकवादी संगठनों को की जाने वाली हथियारों की आपूर्ति और अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी सुनिश्चित करने में उसकी उल्लेखनीय भूमिका को लेकर बहुत कुछ कहा और लिखा जाता रहा है, लेकिन रोहिंग्या मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथ की दीक्षा तथा आतंकी संगठनों को समर्थन देकर पहले से ही गरमाए माहौल वाले इस क्षेत्र को अस्थिर करने की उसकी कोशिशों पर विशेष ध्यान नहीं गया है। फिर भी, इस क्षेत्र में आतंक फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका पर बात करने से पहले रोहिंग्या आबादी और उसकी शिकायतों पर एक नजर डाल लेने की जरूरत है।

रोहिंग्या म्यांमार के रखाइन राज्य के निवासी हैं। रोहिंग्या का दावा है कि उनका पश्चिमी म्यांमार में रहने का हजार साल पुराना इतिहास है, लेकिन म्यांमार सरकार उनकी जातीय पहचान को मान्यता नहीं देती। 1982 का म्यांमार राष्ट्रीयता कानून उन्हें नागरिक नहीं मानता। म्यांमार सरकार रोहिंग्या टर्म को ही स्वीकार नहीं करती। इसके बजाय उन्हें बंगाली कहा जाता है। उन्हें कहीं आने-जाने, शिक्षा प्राप्त करने और नौकरियां हासिल करने में पाबंदियां झेलनी पड़ती हैं। म्यांमार में रोहिंग्या आबादी 14 लाख हुआ करती थी। अभी हाल तक वे रखाइन स्टेट (जिसे पहले अराकान के नाम से जाना जाता था) में रहते थे, जब तक कि बारंबार हिंसा के दुष्चक्र के चलते वहां से निकलने नहीं लगे। 2017 में म्यांमार सेना के जवानों के मारे जाने के बाद सरकार ने पूरी कठोरता से जवाबी कार्रवाई की जिसके परिणामस्वरूप 6,25,000 रोहिंग्याओं को सामूहिक पलायन कर बांग्लादेश आना पड़ा। भारत में 40,000 रोहिंग्या हैं जिनमें से बड़े हिस्से के पास कोई वैध दस्तावेज नहीं है।

अशांत इलाका, खचाखच भरे शरणार्थी शिविर और जीने की उम्मीद खो चुके सैकड़ों हजारों की संख्या में बेदखल लोग आतंकवादी आंदोलनों के लिए उर्वर जमीन का काम करते हैं। ऐसे मौकों की तलाश में बैठे आईएसआई और पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों का ध्यान रोहिंग्याओं की ओर जाते देर नहीं लगी। सबसे पहले रोहिंग्या लोगों का इस्तेमाल करने वाला संगठन था आईएसआई समर्थित लश्कर-ए-तैयबा।

फलह-ए-इंसानियत फाउंडेशन लश्कर-ए-तैयबा का एक मुखौटा-संगठन है जो छुपे तौर पर उसके लिए संपर्क विकसित करता और चैरिटी के कार्यों के जरिए किसी इलाके या आबादी में उसकी स्वीकार्यता बढ़ाता है। लश्कर प्लैटफॉर्म की तरह इन कार्यों का इस्तेमाल करते हुए अपना एजेंडा आगे बढ़ाता है। स्थानीय शिकायतों को बड़े मुद्दों के साथ गूंथते हुए मुस्लिमों के धार्मिक उत्पीड़न की कहानी फैलाई जाती है।

2004 की सुनामी ने दक्षिणी बांग्लादेश में रोहिंग्याओं को राहत मुहैया कराने की जरूरत पैदा की। फलह-ए-इंसानियत ने मौके का फायदा उठाया। उसकी पहल के बाद अल खिदमत जैसे आईएसआई से जुड़े अन्य एनजीओ भी आगे आए। फाउंडेशन ने कुछ समय बाद तुर्की में रोहिंग्या समस्या पर एक सेमिनार आय़ोजित किया। फलह-ए-इंसानियत के फॉरेन ऑपरेशंस हेड शाहिद महमूद ने अत्यधिक जोखिम भरे हालात में रोहिंग्याओं के बीच जाने की बात स्वीकार की।

वैसे सुनामी के बाद की स्थिति में मदद करना अपने आप में गलत नहीं था, लेकिन इस सिलसिले में लश्कर और चैरिटेबल फाउंडेशन की अन्य गतिविधियां खतरनाक थीं। मिसाल के तौर पर पहले से ही क्षुब्ध रोहिंग्याओं में कट्टरंपथी भावनाएं भरने का प्रयास। इसके साथ ही लश्कर ने इन्हें हथियारों के इस्तेमाल की ट्रेनिंग देनी भी शुरू कर दी थी।

इस बीच अप्रैल 2004 के चिटगांव हथियार ढुलाई केस में 12 ट्रक हथियार पकड़े गए। जांच-पड़ताल से इस बात की पुष्टि हुई कि इन हथियारों का एक हिस्सा रोहिंग्या सॉलिडैरिटी ऑर्गनाइजेशन (आरएसओ) को जाना था। क्योंग तोंग में आईईडी विस्फोट की एक घटना में कुछ रोहिंग्याओं और पाकिस्तानियों के मारे जाने से भी पाकिस्तान-रोहिग्या सांठगांठ की पुष्टि हुई।

लश्कर ने 2012 में म्यांमार में अपनी गतिविधियां बढ़ा दीं। जुलाई 2012 में हाफिज सईद ने पाकिस्तान में एक सम्मेलन आयोजित किया और रोहिंग्याओं के मुक्ति मार्ग के रूप में जिहाद का गुणगान किया। उसने अब्दुल कदूस अल बर्मी को हरकत-उल- जिहाद-अल-इस्लामी (हूजी-अराकान) का चीफ बना दिया। बर्मी अस्सी के दशक में पाकिस्तान भाग आया था और कराची में रहता था।

भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार बर्मी ने म्यांमार के मुआंगदा से हाफिज तौचार उर्फ अताउल्लाह की भर्ती कर उसे पाकिस्तान में ट्रेनिंग दिलवाई। तौचार पाकिस्तान में जनमा एक रोहिंग्या है और उसने सऊदी अरब से धार्मिक पढ़ाई की है। तौचार ने हूजी-अऱाकान को अपने हाथ में ले लिया और संगठन का नया नाम रखा अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी। उसके बाद से ही लश्कर सशस्त्र आंदोलन को कारगर बनाने के लिए अपने सीनियर बंदे भेजता रहा है। 9 अक्टूबर 2016 को रोहिंग्या लड़ाकों ने क्यीकांपीन और न्गाखुया के स्थानीय प्रशासनिक कार्यालय में नंबर 1 बॉर्डर गार्ड पुलिस कमांड मुख्यालय पर हमला किया।

रोहिंग्या और म्यांमार में लश्कर-ए-तैयबा की लिप्तता के सबूत 2014-15 में मिले जब सिख उग्रवादियों का एक ग्रुप थाइलैंड में गिरफ्तार हुआ। उन्हें रोहिंग्या कैंप में विस्फोटकों के इस्तेमाल की ट्रेनिंग दी गई थी। इनमें से एक उग्रवादी हरमिंदर सिंह मंटू ने पूछताछ में बताया कि ट्रेनिंग देने वालों में उस्ताद वजीर (लश्कर का एक पुराना बंदा) और कर्नल चौधरी (आईएसआई ऑफिसर) भी थे।

म्यांमार एक ऐसी जगह है जहां पाकिस्तानी और चीनी हितों का मेल होता है और दोनों का साझा उद्देश्य होता है भारत-म्यांमार संयुक्त विकास परियोजनाओं को बाधित करना। जैसे कि पाकिस्तानी जहां तक संभव हो किसी न किसी को ढाल बनाते हुए चलते हैं, वैसे ही चीनी म्यांमार में सक्रिय विभिन्न उग्रवादी समूहों को ढाल (प्रॉक्सी) की तरह इस्तेमाल करते हैं। ऐसा एक समूह है अराकान आर्मी जो 2009 में खड़ा हुआ। 2009 में ही भारत और म्यांमार के बीच कलाडान मल्टी मॉडल प्रॉजेक्ट पर दस्तखत हुए थे। यहीं से चीन ने अराकान आर्मी को समर्थन देना और उसके जरिए भारतीय परियोजनाओं को रुकवाना शुरू किया।

रखाइन मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण करते हुए म्यांमार सेना से लड़ने के वास्ते दुनिया भर से जिहादियों को लाना लश्कर-ए-तैयबा के हक में था। इससे न केवल जिहादी राजनीति में लश्कर का कद बढ़ता बल्कि आरएसओ पर पकड़ मजबूत करते हुए लश्कर और पाकिस्तानी आईएसआई म्यांमार सेना पर हमलों को भी व्यवस्थित कर सकते थे ताकि वह और ज्यादा जवाबी कार्रवाई करे जिससे बांग्लादेश तथा भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या और बढ़े। कुल मिलाकर इन सबसे इस क्षेत्र की अस्थिरता बढ़ती और लश्कर के भुनाने के लिए मौके बढ़ते।

पाकिस्तान ने जहां एक तरफ लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे पाक स्थित आतंकवादी संगठनों के ऑपरेशंस के लिए ठोस आधार मुहैया कराया वहीं दूसरी तरफ रोहिंग्या मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में भी कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। वह ओआईसी (ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन) को भी इसमें ले आया ताकि खुद को दुनिया भर में मुस्लिम अधिकारों के समर्थक के रूप में पेश कर सके।

पाकिस्तान म्यांमार के उग्रवादी समूहों को इस्तेमाल करते हुए भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए कठिन हालात पैदा कर सकता है। म्यांमार सेना द्वारा की गई हिंसक कार्रवाई बांग्लादेश में फिर से शरणार्थियों की बाढ़ लाएगी जो फैलकर भारत तक पहुंचेगी। यही नहीं, म्यांमार के उग्रवादी संगठन पाकिस्तान और चीन से मिलने वाले हथियार उत्तर पूर्व के राज्यों में सक्रिय भारतीय विद्रोही संगठनों तक पहुंचाने का भी जरिया बनते हैं।

ब्रिगेडियर एसके चटर्जी (रिटायर्ड)


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Editor, Bharatshakti.in

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