भारत के लिए जरूरी है परमाण्विक पनडुब्बी (एसएसएन)

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14 अक्टूबर 2022 को समंदर की गहराई से एक न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइल निकली और पूर्वनिर्धारित स्थान पर जा गिरी। आईएनएस अरिहंत से किया गया यह सटीक लॉन्च था। आईएनएस अरिहंत यानी भारत का इकलौता शिप सबमर्सिबल बैलिस्टिक न्यूक्लियर (एसएसबीएन) पनडुब्बी। भारत पर न्यूक्लियर स्ट्राइक लॉन्च करने वाले किसी दुश्मन देश के खिलाफ अभियान छेड़ने के आदेश का इंतजार करते हुए समुद्र की गहराई में शांति से सतर्क नजर बनाए रखने वाले भारत के न्यूक्लियर ट्रायड की यह लोन वुल्फ है। इसका ज्यादा तेज और फुर्तीला साथी है आईएनएस चक्र, शिप सबमर्सिबल न्यूक्लियर या एसएसएन जो रूस से लीज पर मिला था और लीज समाप्त होने के बाद वापस जा चुका है।

एसएसबीएन और एसएसएन की अपनी अलग भूमिकाएं होती हैं। एसएसबीएन तेजी से चलते हैं. डाइव लगाते हैं और शांति से उन आदेशों का इंतजार करते हैं जिन्हें वही अंजाम दे सकते हैं। दूसरी तरफ एसएसएन शिकार की तलाश में निकले कुत्तों की तरह होते हैं। एसएसबीएन काफी फुर्तीले होते हैं लेकिन गतिशीलता के बजाय स्थिरता को तवज्जो देते हैं। एसएसएन अपनी तेज रफ्तार का इस्तेमाल दुश्मन का पीछा करने और फिर उनका शिकार करने में करते हैं। एसएसबीएन और एसएसएन का इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर देशों ने पहले एसएसएन का निर्माण किया उसके बाद एसएसबीएन पर आए। फ्रांस और भारत इसके अपवाद हैं।

परमाण्विक समुद्री जहाजों का इस्तेमाल करने वाले अग्रणी देश अमेरिका की नौसेना ने पहले एसएसएन यूएसएस नॉटिलस का निर्माण किया और इसके 5 साल बाद यूएसएस जॉर्ज वॉशिंग्टन के रूप में एसएसबीएन को कमिशन किया। चीन ने एसएसएन- हान क्लास और एसएसबीएन-शीए क्लास दोनों पर साथ काम शुरू किया था, पर पहले एसएसबीएन पनडुब्बी बन गई। रूसियों ने होटल क्लास एसएसबीएन तक पहुंचने से पहले नवंबर क्लास एसएसएन बना लिया। ब्रिटेन की रॉयल नेवी ने भी पहले ड्रेडनॉट क्लास एसएसएन बनाया, उसके बाद रिजॉल्यूशन क्लास एसएसबीएन हासिल किया। सिर्फ रीडाउटेबल क्लास फ्रांसीसी एसएसबीएन ही है जो रुबिस क्लास पनडुब्बी से पहले बनाया गया। भारत ने इकलौता एसएसबीएन आईएनएस अरिहंत तो बना लिया, लेकिन एसएसएन कहां है? 

अगर रिपोर्टों पर यकीन किया जाए तो भारत ने परमाणु पनडुब्बी की तलाश एसएसएन के निर्माण की योजना बनाते हुए शुरू की। लेकिन योजनाएं बदलती रहीं और आखिरकार नतीजा परमाणु क्षमता से लैस बैलिस्टिक मिसाइल यानी एसएसबीएन के रूप में सामने आया। ऐसी बहुत सी रिपोर्टें हैं जो बताती हैं कि भारत और भी एसएसबीएन बना रहा है, लेकिन एसएसएन की कहीं कोई चर्चा ही नहीं है।

भारतीय नौसेना ने भी बैलिस्टिक परमाणु पनडुब्बियों के तो नहीं, लेकिन जहाजों और पनडुब्बियों के निर्माण का एक मजबूत इकोसिस्टम विकसित कर लिया है। यह आत्मनिर्भरता पर जोर वाले मौजूदा दौर से काफी पहले हो गया; भारतीय नौसेना इस मामले में ट्रेंडसेटर रही है। मुंबई की मजगांव डॉक शिप बिल्डर्स लिमिटेड में स्कॉर्पीन क्लास पारंपरिक पनडुब्बी के निर्माण के बाद एसएसएन ही बचा रह जाता है।

हिंद महासागर एक महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र है। विश्व व्यापार का एक बड़ा हिस्सा इसी जल से होकर गुजरता है। इस क्षेत्र में ऊर्जा औऱ खनिजों के बड़े-बड़े भंडार हैं। इस समुद्री क्षेत्र में तटों पर बसे देशों में वैश्विक आबादी का भी एक अच्छा खासा हिस्सा रहता है। इन्हीं वजहों से कई बाहरी प्लेयर्स भी इस क्षेत्र में अपने हितों की रक्षा के नाम पर अपनी स्थायी मौजूदगी बना चुके हैं। भारत के लिए चुनौती यह है कि जब कभी कोई शक्ति उसके हितों का अतिक्रमण करने की कोशिश करे तो वह अपने हितों की रक्षा कर सके।

भारतीय नौसेना एयरक्राफ्ट कैरियर्स, फ्रंटलाइन शिप्स, विमानों और पारंपरिक पनडुब्बियों की मजबूत पांत की बदौलत भारत के समुद्री हितों की रक्षा करती है। इकलौता एसएसबीएन भी भरोसेमंद प्रतिरोध मुहैया कराता है। लेकिन हिंद महासागर एक विस्तृत क्षेत्र है और आज के सर्वव्यापी सैटलाइट कवरेज के युग में गहरे समुद्र में चलते हुए जहाजों के लिए अपना लोकेशन सुरक्षित रखना काफी चुनौतीपूर्ण होता है।

एसएसएन ऐसे हालात में नौसेना के लिए काफी कारगर साबित होते हैं। रेडार से बच निकलते हुए तेजी से आगे बढ़कर दूर तक मार करने की इनकी क्षमता इन्हें खासा उपयोगी बनाती है। फिक्स्ड विंग फाइटर्स वाले एयरक्राफ्ट कैरियर्स और गाइडेड मिसाइलों तथा लंबी दूरी वाले मैरिटाइम पेट्रोल एयरक्राफ्ट से लैस जहाजों के साथ तालमेल बनाए रखते हुए एसएसएन भारतीय नौसेना की क्षमता में अच्छा खासा इजाफा कर सकते हैं। वक्त आ गया है जब हमें एसएसन को भारतीय नौसेना में जल्द से जल्द शामिल करना अपनी प्राथमिकता में लाना चाहिए।

कैप्टन डी के शर्मा, वीएसएम (रिटायर्ड)


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Captain DK Sharma VSM (Retd.)
A hard core Executive Officer, he specialised in Navigation & Direction (ND) during his formative years. Was entrusted with navigating two frontline Kashin class Guided Missile Destroyers, incl one during Kargil conflict {Op Vijay}. Fortunate enough to have commanded a Mine Counter Measure Vessel (MCMV) and Pilotless Target Aircraft Squadron and was instrumental in clearance of the prestigious upgrade trials of Sea Harriers (LUSH). An alumnus of DSSC Wellington, he found his calling as the *Spokesperson of Indian Navy*. In chair for almost a decade, the officer handled matters of the media, image building and kept the countrymen abreast with the events happening in Indian Navy. Awarded Visisth Seva Medal (VSM) by the President of India in 2016 for meritorious service, he retired in Aug 2019 after a glorious innings spanning 32years. Presently, he is associated with @Bharatshakti.in, a web portal dealing in Defence and Strategic Affairs.

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