भारत में युद्ध का नया सिद्धांत और रक्षा स्वदेशीकरण

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 संपादक की बात

लेखक मानते हैं कि सभी जगह आसन्न परमाणु खतरे के बीच तकनीक के अत्यधिक प्रयोग वाले रणक्षेत्र में कोल्ड स्टार्ट डॉक्टरिन या सिद्धांत अब कोई विकल्प रह ही नहीं गया है। वह भविष्य के रणक्षेत्र की थाह लेते हैं और नया सिद्धांत गढ़े जाने का समर्थन करते हैं, जिससे तकनीकी रूप से बेहतर प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर अपनी ताकत का क्षय कम से कम किया जा सके। लेकिन इस सिद्धांत में स्पष्ट लक्ष्य होने चाहिए, जिनके लिए हमारे अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) विभाग को काम करना चाहिए और स्वदेशीकरण को अपनी सबसे बड़ी ताकत बनाना चाहिए।

भारत में युद्ध का नया सिद्धांत और रक्षा स्वदेशीकरण

पिछले दो महीने में पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्तों को लेकर यहां विभिन्न प्रकार की भावनाएं उमड़ती रही हैं। पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से लगभग 77 भारतीय शहीद हो चुके हैं। जनता में आक्रोश है, गर्व से भी भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना को रगड़कर उसकी हरेक गलती की सजा दे रही है। भारत में ‘अमन के रखवाले’ एकदम चुप हो गए हैं क्योंकि पाकिस्तान के छल और मूर्खता को सही ठहराने वाला कोई बहाना ही उनके पास नहीं है।

Image Courtesy: Reuters

इन मुठभेड़ों और होहल्ले के बीच इन घटनाओं के दीर्घकालिक प्रभाव पर नजर डालने और वर्तमान स्थिति से निपटने का सर्वोत्तम तरीका तलाशने की तथा यह देखने की आवश्यकता है कि भविष्य में अधिक स्पष्ट परिणामों के साथ इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं।

हम भारत-पाकिस्तान संबंधों की कुछ साबित हो चुकी सच्चाइयों के साथ शुरुआत कर सकते हैं:

* कश्मीर के प्रति अपना राग छोड़ने का पाकिस्तान का कोई इरादा नहीं है।

* भारत को हजारों घाव देकर नुकसान पहुंचाने के अपने सिद्धांत पर पाकिस्तान अब भी कायम है।

* पाकिस्तान को भारत के साथ पूर्ण युद्ध के नतीजों का पूरा भान है, लेकिन यह सोचना बेवकूफी है कि भारत सरकार संयम बरतने के अपने पुराने सिद्धांत पर चलती रहेगी।

* पूर्ण युद्ध की संभावना इस बात पर निर्भर करती है कि पाकिस्तान जिहादी तत्वों पर कितना नियंत्रण रख पाता है। यदि सेना का उन पर नियंत्रण खत्म हो जाता है (असैन्य सरकार का तो उन पर कोई नियंत्रण है ही नहीं) तो जनता के बड़े वर्ग की इच्छा नहीं होने के बावजूद समूचा पाकिस्तान युद्ध में धकेला जा सकता है।

* पाकिस्तान को लगता है कि पश्चिमी मोर्चे पर उसके पास भारत के बराबर पारंपरिक युद्ध क्षमता है क्योंकि मैत्रीपूर्ण संबंधों वाला चीन जरूरत पड़ने पर भारत को पूर्वी सीमा पर उलझाकर उसकी मदद करेगा।

* आर्थिक मोर्चे पर भारत की प्रगति से पाकिस्तान ईर्ष्या करता है और भारत को आर्थिक महाशक्ति बनने, जिसकी पूरी संभावना है, से रोकने के लिए वह कुछ भी करेगा।

भारत के दृष्टिकोण से कुछ अहम मुद्दे इस प्रकार हैं:

* भारत असहयोग पर आमादा पाकिस्तान से उलझा है, जो दोनों देशों के बीच स्थायी शांति सुनिश्चित करने वाली पूरे क्षेत्र की प्रगति की बात समझता ही नहीं है।

* भारत विस्फोटक आर्थिक वृद्धि के मुहाने पर खड़ा है, जो आजादी के बाद से उसकी जनता के लिए सबसे अच्छी बात है। हमने इस मुकाम पर पहुंचने के लिए सात दशक तक प्रतीक्षा की है और आत्मघाती पड़ोसी के साथ भिड़कर हम मीठे फल को गंवा नहीं सकते।

* पिछले सात दशकों में भारत की खामियों और नाकामियों में से एक यह भी है कि वह रक्षा आयुधों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं हो सका।

* सही तरीका यह था कि स्वदेश में विकसित रक्षा उद्योग की आर्थिक संभावनाओं का पूरा दोहन किया जाता ताकि रक्षा क्षमता में वृद्धि ही नहीं होती बल्कि यह उद्योग भारत की आर्थिक वृद्धि के वाहकों में मजबूती से शामिल भी होता।

* भारत ने रक्षा आरएंडडी और विनिर्माण उद्योग ने ‘कुछ करने’ का जज्बा टुकड़ों में ही दिखाया है, जिससे देश को विदेश से बेहद ऊंचे दामों पर औचक खरीद करनी पड़ी हैं और स्वदेशीकरण के स्थानीय प्रयासों पर उसका बहुत दुष्प्रभाव हुआ है।

* इस तरह का आधा-अधूरा रवैया क्षेत्रीय शक्ति के तौर पर भारत के उभार में आड़े आ रहा है। वर्तमान विकसित देश भारत की क्षमता से परिचित हैं और इस बात को मानने तथा भारत के साथ कारोबार करने के अपने नजरिये को बदलने में वे देर नहीं करते। लेकिन वे विश्व के सबसे बड़े रक्षा आयात बाजार से मुनाफे की एक-एक पाई वसूलने आए हैं। इसे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण संबंधी रवैये, ऑफसेट प्रावधानों के अधूरे परिणामों और हाल ही में आरंभ किए गए मेक इन इंडिया अभियान के प्रकाश में देखा जाना चाहिए।

ऊपर दिए गए बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए हमें दीर्घकालिक नीति बनानी होगी। कुल मिलाकर नीति का उद्देश्य स्वदेशी रक्षा क्षमता विकसित करना होगा, जो अगले पचास वर्ष तक युद्ध टाल सके ताकि हम अपने आर्थिक लक्ष्यों की ओर बिना किसी रुकावट के बढ़ सकें।

Image Courtesy: Defense News

इस समग्र रक्षा क्षमता के जरिये रक्षा का नया सिद्धांत आगे बढ़ाने की जरूरत है, जो समय के अनुरूप हो और आरएंडडी तथा स्वदेशी रक्षा उपकरण उत्पादन पर जोर देता हो ताकि आयातित उपकरणों पर निर्भरता एकदम कम हो जाए।

पहले हम देखते हैं कि नया रक्षा सिद्धांत क्या होना चाहिए। भारत में बना आखिरी बड़ा रक्षा सिद्धांत जनरल के सुंदरजी का कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत था। बौद्धिक रूप से सैन्य लेखन का उत्कृष्ट नमूना होने के बाद भी यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि आज के शक्ति समीकरणों तथा भारत और पाकिस्तान के पास मौजूद हथियारों की क्षमता, आपूर्ति प्रणालियों, परमाणु विकल्पों तथा विभिन्न प्रकार की प्रौद्योगिकी को देखते हुए यह सिद्धांत कितना प्रासंगिक रह गया है।

कोल्ड स्टार्ट ऐसा सिद्धांत है, जो द्वितीय विश्वयुद्ध जैसी ही क्षमताओं वाले विभिन्न हथियारों के साथ पारंपरिक युद्ध करने तक सीमित है। इस सिद्धांत में सबसे जरूरी विचार यह है कि दुश्मन के अधिक से अधिक और महत्वपूर्ण भूभाग पर तेजी से और प्रभावी तरीके से कब्जा कर लिया जाए ताकि उसे घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़े। अस्सी के दशक में यह सैन्य नीति राजनीतिक खेमे को शत्रु से भारत के अनुकूल शर्तों पर युद्धविराम कराने अथवा समर्पण कराने के लिए आवश्यक अवसर प्रदान करती थी।

पारंपरिक युद्ध के क्षेत्र में अहम बदलाव यह आया है कि आज पांरपरिक लड़ाई होने पर सेना को जो नुकसान होने की संभावना है, अस्सी के दशक में उससे बहुत कम नुकसान होता। उस पर पाकिस्तान में तंत्र भी युद्ध प्रेमी है, जो भारत के साथ पारंपरिक युद्ध में अपनी सुनिश्चित हार होने पर अंतिम विकल्प के रूप में परमाणु अस्त्रों का आत्मघाती प्रयोग कर सकता है। सैन्य परिणाम तो निस्संदेह भारत के पक्ष में होंगे, लेकिन उनकी

कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी? हमारे आर्थिक सपने बिखर जाएंगे और दशकों में हमने जो भी भौतिक प्रगति की है, वह हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।

इसीलिए नए सैन्य सिद्धांत को दृष्टि के दायरे से भी इतर (बियॉण्ड विजुअल रेंज) लड़ने की बेहतर क्षमता तथा निगरानी एवं खुफिया सूचना एकत्र करने की बेहतर क्षमता जैसी रणक्षेत्र की अधिक प्रासंगिक वर्तमान आवश्यकताओं के इर्दगिर्द केंद्रित होना चाहिए, जिनसे हमारी अपनी सेनाओं को प्रत्युत्तर देने का पर्याप्त समय मिल जाता है। हमें साइबर क्षेत्र, बाहरी क्षेत्र और इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में प्रभुत्व की आवश्यकता है। ऐसा सिद्धांत हमारी पारंपरिक सेनाओं का नुकसान कम करने, दुश्मनों को जल्दी चोट पहुंचाने और युद्ध का परिणाम तेजी से भारत के पक्ष में करने में मदद करेगा।

चूंकि पाकिस्तानी क्षेत्र पर कब्जा करने का भारत का कोई इरादा नहीं है, इसलिए भविष्य में पाकिस्तान के साथ युद्ध का उद्देश्य उसकी पारंपरिक युद्ध क्षमता को नष्ट करना होगा। आशा है कि पाकिस्तान की युद्ध क्षमता के नाश से वहां असैन्य सरकार और सेना के रिश्तों में बदलाव हो जाएगा। माना जा सकता है कि ऐसे युद्ध के बाद हम अधिक तार्किक पाकिस्तानी असैन्य तंत्र से रूबरू हो रहे होंगे। कई अन्य संभावनाएं भी हैं, जैसे पाकिस्तान का अपनी आंतरिक ताकतों के कारण ही टूट जाना आदि। इससे स्थिति पर भारत की पकड़ मजबूत ही होगी।

आरएंडडी और स्वदेशी क्षमताओं में हमारे प्रयास सैन्य सिद्धांत के इन बुनियादी तथ्यों पर आधारित होने चाहिए कि भारत के पास प्रासंगिक बीवीआर तथा खुफिया सूचनाएं एकत्र करने वाली प्रौद्योगिकियां या तो पहले से मौजूद हैं या वह उन्हें विकसित कर सकता है। इन क्षमताओं को हमारे स्थान, सॉफ्टवेयर तथा डेटा प्रबंधन की तकनीकों से सहायता मिलती है।

Image Courtesy: Deccan Chronicle

गंभीरता के साथ इस बात पर विचार करने का समय आ गया है कि भविष्य की तकनीकें कौन सी होंगी? युद्ध के आरंभ से ही भविष्य की रणनीतियों का लक्ष्य गतिरोध की अधिक क्षमता प्राप्त करना तथा खुफिया सूचना एकत्र करने की क्षमता में सुधार करना होगा। हजारों वर्षों में बुनियादी सिद्धांत में कोई बदलाव नहीं हुआ है। इसीलिए भारत को अत्याधुनिक सेंसर, सूक्ष्म तकनीक तथा मानवरहित हथियार प्रणालियां विकसित करने के इस शाश्वत सिद्धांत पर काम करना चाहिए क्योंकि युद्ध का भविष्य यही होगा। बेहतर सेंसर और पहले हमला करने वाले गतिरोध हथियार दुश्मन की टुकड़ियां नष्ट करने तथा उसके ढांचों पर तेजी से नियंत्रण करने की क्षमता प्रदान करते हैं।

जिसके पास दुश्मनों के ‘आंख और कान’ तेजी से नष्ट करने की क्षमता होगी, वही हथियार दागने की अपनी प्रणालियों के कम से कम नुकसान के साथ पारंपरिक युद्ध में विजयी होगा। बेहतर सेंसरों तथा बीवीआर क्षमताओं, जिनमें विभिन्न श्रेणियों की मिसाइलों का अहम हिस्सा होगा, की मौजूदगी में विमानों, जहाजों तथा टैंकों जैसे अत्याधुनिक तकनीक वाली हथियार आपूर्ति प्रणालियों की आवश्यकता अपेक्षाकृत कम होगी। पारंपरिक हथियारों का प्रयोग अभियान के दूसरे चरण का काम करेगा, जिसमें कम से कम प्रतिरोध के साथ सफाया किया जाएगा और इसीलिए नुकसान भी बहुत कम होगा।

यदि अगले 5-10 वर्षों तक हम उत्साह से काम करते हैं तो स्वेदश में ही बनाई गई हथियार क्षमता विकसित कर लेंगे, जो नए रक्षा सिद्धांत के साथ मिलकर हमारे सबसे बड़े विरोधियों को रोकने में सबसे अहम भूमिका निभाएगी।

लेफ्टिनेंट कमांडर शिवराम (सेवानिवृत्त)

(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of BharatShakti.in)


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Lt Cdr L Shivaram (Retd)
Lt Cdr (Retd) L.Shivaram is an alumnus of Birla Institute of Technology and Science, Pilani, where he graduated in Instrumentation. He joined the Indian Navy in 1984 as a commissioned officer in the Engineering Branch. In the Navy he underwent specialization courses in Marine engineering and also the Air Engineering specialization course at Naval Institute of Aeronautical Technology. He obtained his engine room watch keeping certificate on INS Godavari and has also done tenures at sea as Engineering Officer of INSDB T-53 and INS Sarayu. After joining the Aviation Arm of the Navy, he has served in frontline anti-submarine aircraft squadrons twice and at deeper level maintenance facilities of aircraft for almost a decade. Post retirement from the Navy in 1998 he has worked for over 18 years in several Indian and multinational companies in defence aviation projects including indigenous air borne avionics development and vibration monitoring and control on helicopters.

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