भारत में रक्षा खरीद की बेहतर क्षमता
ब्रिटेन में खरीद प्रक्रिया के बारे में हम लेफ्टिनेंट जनरल पी आर शंकर का एक लेख पहले ही प्रकाशित कर चुके हैं। इस लेख में लेखक अमेरिका में इस्तेमाल होने वाले मॉडल की बात कर रहे हैं। अमेरिका में खरीद के मॉडल का केंद्रबिंदु उस कर्मचारी के ज्ञान का स्तर होता है, जिसे यह जिम्मेदारी दी जाती है। वहां खरीद के बारे में ज्ञान देने वाला विश्वविद्यालय है। जनरल ने अमेरिकी प्रणाली में अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों को भी पहचाना है और ऐसे क्षेत्र चुने हैं, जिन पर हमारे मामले में जोर दिए जाने की जरूरत है।
भारत में रक्षा खरीद की बेहतर क्षमता
अमेरिका में ‘बेटर बाइंग पावर (बीबीपी)’ नाम का एक कार्यक्रम है, जो ‘रक्षा विभाग की खरीद क्षमता मजबूत करने, उद्योग की उत्पादकता बढ़ाने और योद्धाओं को किफायती, मूल्य वर्द्धित सैन्य क्षमताएं प्रदान करने के लिए सर्वोत्तर तरीके अपनाने’ की बात करता है। इसका लक्ष्य नवाचार, तकनीकी उत्कृष्टता एवं गुणवत्ता पर जोर देते हुए खरीद की बेहतर प्रक्रियाओं तथा सिद्धांतों के जरिये अधिक दक्षता प्राप्त करना है। इसमें सात प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाता है।
* अधिग्रहण करने वाले अधिकारियों की पेशेवर प्रवृत्ति में सुधार
* निरर्थक प्रक्रियाओं और अफसरशाही को दूर करना
* प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना
* उद्योग तथा सरकार में उत्पादकता तथा नवाचार को प्रोत्साहित करना
* किफायती कार्यक्रमों की उपलब्धि
* उत्पादन के समूचे जीवनचक्र में लागत पर नियंत्रण रखना
* सेवाओं की खरीद में कार्यकौशल में सुधार होना
ये सातों क्षेत्र स्वयं में विस्तृत विषय हैं। इसीलिए इस संदर्भ में बुनियादी भूमिका वाले केवल चार क्षेत्रों की चर्चा की जाएगी। ये क्षेत्र हैं: पेशेवर प्रवृत्ति को बढ़ावा देना, निरर्थकता को दूर करना, प्रतिस्पर्द्धा तथा नवाचार को प्रोत्साहित करना। यह विचार रक्षा खरीद विश्वविद्यालय की वेबसाइट से ही लिया गया है। अमेरिका में उसकी रक्षा खरीद प्रक्रियाओं के बारे में शिक्षित करने और सहायता देने के लिए एक विश्वविद्यालय है। पहला सबक यह है कि शिक्षा महत्वपूर्ण है।
हमारे मामले में ध्यान देने वाले क्षेत्र
खरीद का कार्य करने वालों के भीतर पेशेवर रवैये का समावेश कर उनकी पेशेवर क्षमता सुधारनी चाहिए। पेशेवर रवैया बढ़ाने के लिए जरूरी गुण हैं उत्कृष्टता, जिम्मेदारी, निष्ठा तथा जवाबदेही। पेशेवर रुख सिखाने के लिए ज्ञान एवं सततता दो अन्य आवश्यक गुण हैं। हमारी व्यवस्था में ये गुण अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मात्रा में हैं।
ज्ञान एवं उत्कृष्टता एक दूसरे से जुड़े हुए तत्व हैं। इनमें से एक तत्व दूसरे से पनपता है और इसीलिए दोनों पर एक साथ काम करना होता है। खरीद का कार्य करने वाले पेशेवर व्यक्ति में अनुभव, शिक्षा और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। पेशेवर रवैया सर्वांगीण होना चाहिए और खरीद के पूरे क्षेत्र में लागू होना चाहिए। अच्छा सैनिक हमेशा खरीद में अच्छा नहीं हो सकता। इसी तरह अच्छा अधिकारी हमेशा खरीद में अच्छा नहीं हो सकता।
अनुभव का अर्थ हथियार चलाने का सैन्य ज्ञान अथवा फाइलें, प्रक्रियाएं और व्यवस्थाएं संभालने का प्रशासनिक ज्ञान भर नहीं है। इसमें अच्छी शिक्षा शामिल होनी चाहिए और केंद्रित प्रशिक्षण भी होना चाहिए। इसीलिए हमारे पेशेवरों को प्रशिक्षण देना पहला चरण है।
प्रशिक्षण में यह सुनिश्चित होना चाहिए कि खरीद पेशेवर कार्यकारी नेतृत्व, कार्यक्रम क्रियान्वयन, तकनीकी प्रबंधन और कारोबार प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में विभिन्न कार्यों में पूरी तरह सक्षम हों। किंतु किसी एक कार्य में विशेषज्ञता भी होनी चाहिए। विशेषज्ञता वाला क्षेत्र कोई भी हो सकता है जैसे खरीद की प्रक्रिया, अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) गतिविधियों का प्रबंधन, जोखिम को समझना और दूर करना, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, रक्षा जरूरतों से जुड़ी इंजीनियरिंग एवं गणित, खरीद का नेतृत्व करने वालों से अपेक्षित मानक, खरीद के लिए प्रबंधन के तरीके, गुणवत्ता नियंत्रण, रक्षा वित्तीय प्रबंधन समेत विभिन्न क्षेत्र। प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों की योजना बनाई जा सकती है। किंतु ऐसा ढांचा बनाना सबसे अहम है, जो ऐसा प्रशिक्षण दे सकता हो। हम राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय बनने की प्रतीक्षा में बैठ नहीं सकते!
जिम्मेदारी और निष्ठा की बात सभी जानते हैं, लेकिन इन्हें अक्सर ठीक से समझा नहीं जाता। खरीद अधिकारी पारदर्शिता और ईमानदारी के संदर्भ में इनसे अच्छी तरह परिचित होते हैं। लेकिन उन जवानों की सेवा की जिम्मेदारी और निष्ठा का क्या होगा, जिनसे मोर्चे पर जान देकर भी देश की सेवा करने की अपेक्षा की जाती है। युद्ध क्षेत्र में मौजूद जवान को उस दुष्कर कार्य के लिए हरसंभव साजोसामान उपलब्ध कराना हमारी जिम्मेदारी है। हमारी ईमानदारी की परीक्षा तभी पूरी होती है, जब उसकी सभी जरूरतें पूरी हो जाती हैं। राष्ट्र की रक्षा के लिए उसके हाथ में सबसे अच्छी बंदूक होनी चाहिए, सबसे अच्छा लड़ाकू विमान होना चाहिए और सबसे अच्छा युद्धपोत होना चाहिए।
खरीद से जुड़े पेशेवर को लगातार काम नहीं करने देने के अपने जोखिम हो सकते हैं। ऐसा बहुत समय से होता आ रहा है। अगर हमें यकीन हो जाए कि निरंतर तैनाती अनिवार्य है तो निष्ठा, करियर प्रबंधन, विकास और दूसरे सभी मुद्दों का खयाल रखा जा सकता है। यदि खरीद के कार्य में तेज प्रगति चाहिए तो इस तथ्य से बचा नहीं जा सकता। केवल इस बात का ध्यान रखना होगा कि निरंतरता ठहराव का कारण भी बन सकती है और अंत में बाधा की शक्ल भी ले सकती है। ऐसे मामलों में छंटनी भी करनी चाहिए।
जवाबदेही होना या बिल्कुल नहीं होना कड़वी गोली की तरह है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में आज तक एक भी अधिकारी को काम समय पर नहीं होने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है। क्यों? जवाबदेही की कमी? हमारे पास जांच करने और जवाबदेही तय करने वाली कोई बुनियादी व्यवस्था ही नहीं है। पूरी श्रृंखला में निगरानी और समीक्षा प्रणाली की बहुत कमी है। गुणवत्ता से जुड़े हमारे कारकों को ताक पर रखा जा सकता है और अनुबंध व्यवस्थाएं कमजोर हैं। अफसरशाही हो, सेना हो, वैज्ञानिक क्षेत्र हो, औद्योगिक क्षेत्र हो या वित्तीय मामला हो, जवाबदेही की कमी हर ओर है और महामारी की तरह है। हमारे यहां जवाबदेही केवल पारदर्शिता और ईमानदारी से संबंधित है। परिणामस्वरूप जोखिम लेने की क्षमता बहुत कम है। जोखिम से बचते हुए काम करने की परंपरा है और निर्णय भी सामूहिक रूप से ही लिए जाते हैं। इसमें भी सबसे सुरक्षित फैसला यही है कि कोई फैसला ही नहीं लिया जाए।
निरर्थक प्रक्रियाओं और अफसरशाही को हटाना हमारे लिए अगली प्राथमिकता होनी चाहिए। यह सर्वविदित है कि खरीद की प्रक्रिया लंबी होती है और विशेष रूप से बड़े कार्यक्रमों में सौदा पक्का होने में समय लगता है। किंतु प्रक्रियाएं पूरी व्यवस्था को उलझा तो नहीं सकतीं। विचार के चरण से लेकर परिभाषा के चरण तक कोई भी आवश्यकता उलझ जाती है। वहां से आवश्यकता का खाका तैयार होने तक एक बार फिर खामियों, समस्याओं, दबावों और समझौतों का सिलसिला चलता है। खाके से लेकर निर्माण और सशस्त्र बलों में शामिल होने तक एक अलग अधिकारी तंत्र के साथ एक अलग प्रक्रिया से गुजरना होता है। यह सब होने के बाद इस बात की पूरी संभावना रहती है कि जो खरीदा जा रहा है, वह वास्तव में वह उपकरण या सामान नहीं है, जिसे खरीदा जाना था। ज्यादातर मामलों में ये प्रक्रियाएं एक दूसरे से ढंग से जुड़ी नहीं होती हैं और प्रत्येक प्रक्रिया से संबंधित एजेंसियों के अपने नजरिये और अपने तरीके होते हैं। प्रत्येक खरीद को अलग-अलग चरणों पर अलग-अलग प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। ‘आरंभ से अंत’यानी काम को शुरू करने के बाद अंजाम तक पहुंचाकर ही रुकना हमारी रक्षा खरीद प्रक्रिया के लिए अभी एकदम अनजानी बात है।
हमारी प्रक्रिया की दूसरी बड़ी समस्या यह है कि सामग्री का महत्व, आकार, आकृति, मात्रा या कीमत कितनी भी हो, उसके लिए तरीका एक ही होगा और समयावधि भी उतनी ही रहेगी। हमारे पास खरीद को प्राथमिकता देने या उसकी गति तेज करने का कोई तरीका ही नहीं है। गति तेज करने की मौजूदा प्रक्रियाओं का कोई नतीजा नहीं निकलता। परिणाम यह होता है कि खरीद के मामले में रवैया तो बहुत अड़ियल होता है, लेकिन नतीजा बहुत कम होता है।
हमारे अफसरशाही तौर तरीकों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि कार्यक्रम यहां से वहां भटकते रहते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि हमारे अफसरशाही तौर तरीके बदलाव के खिलाफ रहते हैं और नई-नई प्रक्रियाएं जोड़ने में जुटे रहते हैं। कुल मिलाकर हमारे पास ऐसा अधिकारी तंत्र है, जो कभी-कभी एकाएक सक्रिय हो जाता है। हमें ऐसा तंत्र चाहिए जो नतीजे दे सके। अमेरिकी प्रशासनिक मॉडल में ऐसी प्रक्रियाएं और अधिकारी तंत्र है, जो ज्यादा पेचीदा और श्रमसाध्य है। लेकिन वह काम पूरे करता है। इसका जवाब एक ही है और वह है कि पेशेवर खरीद प्रणाली, जिसमें पता हो कि क्या किया जा रहा है। इस तरह हम अपने पहले बिंदु यानी ‘ज्ञान’पर लौट आते हैं।
प्रतिस्पर्द्धा करने की भावना रक्षा खरीद के मामले में बहुत प्रभावशाली विचार है। अमेरिकी सरकार के लिए उत्पादकता बढ़ाने का यह इकलौता और सबसे प्रभावशाली तरीका है। हमारे यहां प्रतिष्ठित और स्थापित सरकारी अनुसंधान एवं निर्माण संस्थाओं का एकाधिकार भरा रवैया समाप्त करना होगा। सरकार का एक वर्ग तो कहता है कि सरकारी संस्थाओं को भी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना चाहिए, लेकिन सरकार का ही दूसरा वर्ग सामाजिक कारकों के नाम पर एकाधिकार को बढ़ावा देता है, जिससे संस्थाओं में अयोग्यता बढ़ती है। वर्तमान सरकार को संतुलित फैसला करना होगा। किसी भी स्थिति में रक्षा खरीद की क्षमता बढ़ाने के लिए रक्षा निर्माण को कॉर्पोरेट जामा पहनाना और निजी प्रतिभागिता को बढ़ावा देना अनिवार्य है।
नवाचार, तकनीकी उत्कृष्टता और गुणवत्ता वाकई चर्चा के अच्छे विषय हैं। हमारे तंत्र में इनका इस्तेमाल बहुत कम दिखता है। बेहतर उत्पादों के लिए प्रोत्साहन हमारे लिए अनजानी बात है। इन विचारों को अमली जामा पहनाने के लिए हमें गहन जानकारी की आवश्यकता है। जानकारी तो तंत्र को दुरुस्त करने के लिए भी होनी चाहिए। अक्सर सुनते हैं – हमारी व्यवस्थाएं अच्छी तरह स्थापित हैं और केवल बदलाव के लिए उन्हें बदलने की जरूरत नहीं है। लेकिन हमारी पुरानी और स्थापित व्यवस्थाएं काम करने में सफल नहीं रही हैं। इसीलिए बदलाव की आवश्यकता है। अगर इस तर्क को भी नहीं माना जाता तो कोई भी तर्क काम नहीं करेगा। बदलाव में जोखिम तो होता ही है। हमारे भीतर जोखिम उठाने का साहस होना चाहिए। बदलाव करने की क्षमता में भी बदलाव लाना होगा। हम ऐसी व्यवस्था बनकर नहीं रह सकते, जहां बदलाव के बगैर ही हम खुश रहें। पूरी बात एक बार फिर ज्ञान यानी जानकारी पर लौट आती है। अगर हमारे पास जानकारी नहीं है तो हम संतुलित बदलाव सुनिश्चित नहीं कर सकते।
यक्ष प्रश्न
अंत में अमेरिकी सरकार के प्रकाशन में एक पंक्ति हैः “व्यवस्था में तो खरीद करने वाले कई बेहद योग्य व्यक्ति हैं, लेकिन दूसरी पंक्ति में इतनी योग्यता नहीं है।” हमारे तंत्र में खरीद करने वाले योग्य व्यक्ति बहुत कम हैं – दूसरी पंक्ति तो करीब-करीब खाली है। हमें इसके लिए कुछ करना होगा।
लेफ्टिनेंट जनरल पी आर शंकर (सेवानिवृत्त)
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