संपादक की बात
जनरल ने चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) पर अपने पिछले आलेख (https://bharatshakti.in/cpec-the-chinese-carotid-pakistani-jugular-and-an-indian-opportunity/) में भारतीच दृष्टिकोण से इस विशाल परियोजना की पड़ताल की थी। इस आलेख में वह परियोजना की पड़ताल उन लोगों के दृष्टिकोण से कर रहे हैं, जो परियोजनास्थल पर मौजूद हैं। इस आलेख में पाकिस्तानी बुद्धिजीवियों द्वारा पाकिस्तानी मीडिया में व्यक्त किए गए सभी विचारों और शंकाओं का निचोड़ दिया गया है।
सीपीईसी की कहानी – “चीन पंजाब गलियारा” या “पाकिस्तान का औपनिवेशीकरण और चीन की समृद्धि”?
पाकिस्तानियों द्वारा जताए गए सभी प्रकार के डर मिला लें तो साबित होता है कि पाकिस्तान धरती पर शक्ति का केंद्र बनने की चीन की बड़ी रणनीतिक चाल के बहकावे में आ गया है। उनके सम्मानित सैन्य एवं राजनीतिक नेता अब अपने ही देश में चीनी राज की अगवानी करने जा रहे हैं। यह अतीत में लौटने जैसा है। कायदे-आजम अपनी कब्र में वैसे ही घूम रहे होंगे, जैसे तोप से छूटने पर गोला घूमता है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे। पाकिस्तान आंखें मूंदकर इस परियोजना में दाखिल हो रहा है।

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नजम सेठी के विचार – नजम सेठी के सुपरिचित विचार हैं कि सीपीईसी चीन और उसकी मुद्रा के विकास के लिए है, पाकिस्तान की संपन्नता के लिए नहीं। अस्थिर हिंसाग्रस्त क्षेत्र में होने के कारण पाकिस्तान को पर्याप्त विदेशी निवेश प्राप्त नहीं होता है। उसे चीन के सैन्य उपकरणों और विदेश नीति की ढाल चाहिए। चीन अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाने की खातिर अस्थिरता का जोखिम उठाने और पाकिस्तान में निवेश करने के लिए तैयार है। चीन दरें बढ़ा रहा है और वह बहुत ऊंची कीमत वाले सीपीईसी को बेचेगा, जो पाकिस्तान की क्षमता से बाहर होगा। चीन अच्छा प्रतिफल हासिल करने के लिए पाकिस्तान को कर्ज भी दे रहा है। हर कोई जानता है कि पाकिस्तान उसे चुका नहीं पाएगा। आपूर्तिकर्ता और ऋणदाता होने के नाते चीन ने पाकिस्तान को कर्ज के स्थायी जाल में फंसा लिया है। मेरे विचार से पाकिस्तान के चीनी उपनिवेश बनने की शुरुआत यहीं से होती है।
अर्थव्यवस्था
आर्थिक संकेतक – पाकिस्तानी अर्थशास्त्री उचित प्रश्न खड़े कर रहे हैं। परियोजना पर कितना खर्च होना है – 46 अरब डॉलर या 54 अरब डॉलर? पाकिस्तान में पिछले 6 वर्ष में मुद्रास्फीति का औसत 11.6 प्रतिशत रहा है। परिणाम, परियोजना की लागत में वृद्धि। सीपीईसी पर पूंजीगत खर्च मुख्य रूप से चीन से मिल रहे कर्ज से हो रहा है। वास्तविक ब्याज दर क्या है? पता नहीं। अनुमानों के अनुसार पाकिस्तान को सीपीईसी में कई दशकों में हो रहे 50 अरब डॉलर के निवेश के बदले 90 अरब डॉलर चुकाने पड़ेंगे। 3 से 3.5 अरब डॉलर हर वर्ष
चुकाने पड़ेंगे। इस तरह पाकिस्तान से पूंजी का बाहर उड़ जाना निश्चित है। देश का चालू खाते का घाटा 8 महीने के भीतर बढ़कर 5.47 अरब डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.6 प्रतिशत हो गया है, जो पहले 2.48 अरब डॉलर या जीडीपी का 1.3 प्रतिशत था। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का अनुमान है कि यह बढ़कर जीडीपी के 2.9 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। अर्थशास्त्रियों को लगता है कि जब चीन का कर्ज चुकाया जाना शुरू होगा तो पाकिस्तान को एक बार फिर आईएमएफ की मदद की जरूरत पड़ सकती है।
वृहद् अर्थशास्त्र – आईएमएफ, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) का अनुमान है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था 2 अरब डॉलर सालाना से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) ग्रहण करने की हालत में तब तक नहीं आ सकता, जब तक वह अपनी अर्थव्यवस्था पर दबाव नहीं बढ़ाता। उनके अनुसार पाकिस्तान में चीन का सालाना प्रत्यक्ष निवेश अधिकतम 1 अरब डॉलर प्रतिवर्ष तक ही रहना चाहिए। यह परियोजना इन अनुमानों से बहुत ऊपर जाएगी।
सामाजिक व्यय पर प्रभाव – सीपीईसी के लिए आवंटित संसाधन आगे जाकर सामाजिक एवं मानवीय पूंजी की परियोजनाओं पर होने वाले खर्च पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे। पाकिस्तान जैसे अत्यधिक गरीबी और निरक्षरता वाले देश के लिए यह विनाशकारी हो सकता है। विचार यह है कि 50 प्रतिशत गरीबों को पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के एकदम निचले तबके के रहमोकरम पर रहना पड़ेगा। नतीजा बहुत निराशा भरा लग रहा है।
कृषि – अचंभे की बात है! कृषि में चीनी निवेश सीपीईसी के केंद्र में होगा! कृषि योग्य हजारों एकड़ जमीन चीनी कंपनियों को पट्टे पर दी जाएगी। कृषि भूमि पर प्रदर्शन के लिए परियोजनाएं तैयार की जाएंगी। कृषि आपूर्ति श्रृंखला में बीज प्रौद्योगिकी, फलों और सब्जियों के लिए प्रसंस्करण सुविधाओं, उर्वरकों, कीटनाशकों, ऋण सुविधाओं, भंडारण समेत लॉजिस्टिक्स, परिवहन एवं विपणन श्रृंखलाओं जैसी नई कड़ियां जुड़ेंगी। मवेशियों के प्रजनन, संकर प्रजातियां, सटीक सिंचाई, मांस प्रसंस्करण, कपास प्रसंस्करण आदि होना तय है। सब कुछ चीनी कंपनियां चीन की ही रकम से चलाएंगी। चीनी खेती और उत्पादन परियोजनाओं के लिए पाकिस्तान की जमीन – बहुत डरावनी बात है। कुल मिलाकर चीन पाकिस्तानी समाज में व्यापक और गहरी पैठ बना लेगा। परिणामस्वरूप ग्रामीण अर्थव्यवस्था के आज के तौर-तरीकों में व्यवधान उत्पन्न होगा। इससे बखेड़ा खड़ा हो जाएगा।

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बिजली क्षेत्र के संकट – पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में दाखिल होने के बाद इस्लामाबाद के निकट तारबेला तक सिंधु पर छह बड़े बांध बने हुए हैं। विशेषज्ञों ने पाकिस्तान को उनमें से कुछ पर आगे नहीं बढ़ने की सलाह दी है। इसके बावजूद इन बांधों से 22000 मेगावाट पनबिजली का उत्पादन करने की योजना है। किंतु अनुमान हैं कि इससे नीचे पानी का प्रवाह कम हो जाएगा और पाकिस्तान में खाद्य तथा जल सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव होगा। इससे खासकर उत्तरी क्षेत्रों की जनता पर पर्यावरण संबंधी बड़ा प्रभाव पड़ेगा और इसका आकलन अभी तक नहीं किया गया है। लगभग 10000 मेगावाट बिजली कोयले से चलने वाले संयंत्रों से बनती है। शिकायत यह है कि ये दुनिया के सबसे गंदे बिजली संयंत्र हैं, जिनका इस्तेमाल चीन तक नहीं करता। ऐसा महसूस हुआ है कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले संयंत्रों से पाकिस्तान को पाटा जा रहा है। पारेषण एवं वितरण नेटवर्क और बिजली के दामों का क्या? पाकिस्तानियों के सामने दूसरे प्रश्न हैं – बिजली किसके लिए बनाई जा रही है? क्या पाकिस्तान इसके लिए तैयार है? फायदा कौन उठाएगा?
नैतिकता और न्याय की बात
औचित्य – पाकिस्तानी कीमत क्यों चुकाए? इसका औचित्य हर कोई पूछ रहा है। यदि चीन को गलियारा चाहिए तो उसकी कीमत पाकिस्तान क्यों चुकाए? चीन के लोग वीजा के बगैर पाकिस्तान आ सकते हैं, लेकिन पाकिस्तानी वीजा के बगैर चीन नहीं जा सकते। चीन के उद्योगपतियों को ही गलियारे के किनारे प्रस्तावित आर्थिक क्षेत्रों में अपने उद्योग लगाने की अनुमति होगी। विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) के लिए ऊर्जा और जल की आपूर्ति पाकिस्तान के संसाधनों से ही होगी। पाकिस्तान को बहुत बड़ी बुनियादी ढांचागत संपत्ति हासिल हो सकती है। किंतु इसके उद्योग और व्यापार क्षेत्र गलियारे का सर्वश्रेष्ठ प्रयोग नहीं कर सकते। व्यापक धारणा यही है कि सीपीईसी चीनी कारोबार के लिए बनाई गई ऐसी सड़क और पाइपलाइन होगा, जिसकी सुरक्षा पाकिस्तानी सेना पाकिस्तान के ही करदाताओं की रकम पर करेंगे। इसीलिए खर्च और बोझ पाकिस्तान पर पड़ेगा और फायदा चीन का होगा।
पारदर्शिता – इस समूची प्रक्रिया में पहली बलि पारदर्शिता की हुई है। इस बात पर सर्वसम्मति है कि सीपीईसी पाकिस्तान के लिए वास्तविक और कायाकल्प करने वाली परियोजना हो सकता था, लेकिन इसमें बहुत अधिक गोपनीयता और अपारदर्शिता बरती गई है। धारणा यह है कि जनता और संबंधित पक्षों को दी जाने वाली छोटी से छोटी जानकारी भी छंटी हुई होती है, अस्पष्ट होती है और कतरब्योंत के बाद दी जाती है। सीपीईसी के ठेके बोली लगाए बगैर ही चीनियों को दे दिए गए। नौ एसईजेड में इकाइयां लगाने की इजाजत केवल चीनी उद्योगपतियों को ही होगी। चीनी परिसरों में चलने वाली परियोजनाओं का ब्योरा पता नहीं है।
स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान ने कहा है कि उसे सीपीईसी परियोजनाओं के लिए धन के इंतजाम के तरीके के विषय में पूरी तरह अंधेरे में रखा गया है। उसे यह तक नहीं पता कि सीपीईसी से संबंधित पूंजीगत आयात के लिए रकम कर्ज के जरिये दी जा रही है अथवा इक्विटी निवेश के जरिये।
औपनिवेशीकरण
संप्रभुता का हनन – पाकिस्तान की संप्रभुता पर स्पष्ट खतरा है। सीपीईसी को ‘कॉलोनाइज पाकिस्तान एनरिच चाइना’ भी कहा जा रहा है। धारणा यह है कि सीपीईसी से तो दरवाजा खुला भर है। इसके बाद दरवाजे से क्या-क्या आएगा, कोई भी अंदाजा लगा सकता है। चीन पाकिस्तानी समाज के हरेक हिस्से में सेंध लगा लेगा। हाल ही में पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज का अधिग्रहण चीन ने कर लिया है। के इलेक्ट्रिक का अधिग्रहण भी शीघ्र ही होने वाला है। सघन फाइबर-ऑप्टिक प्रणाली बनाने की योजना है, जिसका इस्तेमाल भी चीन का मीडिया पाकिस्तान में ‘चीनी संस्कृति के प्रसार’ के लिए करेगा। पाकिस्तान के संदर्भ में ‘चीनी संस्कृति’ का अर्थ सांस्कृतिक आधिपत्य है।
कराची और लाहौर समेत प्रमुख शहरों में सुरक्षा प्रणालियां लगाने का जिम्मा चीन का होगा। चीन को यह जिम्मेदारी सौंपने से दूसरी समस्याएं उत्पन्न हो जाएंगी। चीन में ऑनलाइन स्वतंत्रता न के बराबर है और हैकिंग बहुत अधिक होती है। वहां दादागिरी वाली बात आ जाएगी। चीनी कंपनियों का बाजार में पहले ही दबदबा हैः घरेलू उपकरणों में हायर, दूरसंचार में हुआवेई, खनिजों में चाइना मेटलर्जी ग्रुप कॉर्पोरेशन। इसके अतिरिक्त सीपीईसी में वस्त्र, उर्वरक और कृषि प्रौद्योगिकियों में विशिष्ट सुधार की व्यवस्था है। इस तरह क्या पाकिस्तान चीन के स्थायी नियंत्रण वाला देश बन जाएगा? पाकिस्तानी संप्रभुता का हनन अवश्यंभावी है।
चीनी इलाके – यदि पाकिस्तान कर्ज नहीं चुका सका तो उसे चीनी निवेश तथा आवासीय कॉलोनियों के लिए जमीन देनी पड़ेगी और उन इलाकों में कानून प्रवर्तन तथा प्रशासन का अधिकार भी चीनी अधिकारियों के हाथ में देना पड़ेगा। बिल्कुल वैसे ही, जैसे श्रीलंका में हंबनटोटा का मॉडल है। इन इलाकों या परिसरों की कल्पना
तथा अस्तित्व एक हद तक पहले से ही है। इन इलाकों में चीन का ही आदेश चलता है। इसलिए जल्द ही पाकिस्तान में चीनी कॉलोनियों का जमावड़ा लगता जाएगा। पाकिस्तानी इन सुरक्षित बुलबुलों के बाहर ही रहेंगे। ब्रिटिश राज की याद?
सामाजिक समस्याएं

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हंबनटोटा – ग्वादर – मैंने पहले हंबनटोटा मॉडल की बात पहले की थी। इसे ग्वादर में दोहराया जा रहा है। पूरा बंदरगाह चीनियों को सौंप दिया गया है। जिन परिसरों की योजना बनाई गई है, वे स्थानीय जनता को विस्थापित कर देंगे। ग्वादर के विकास के समय बलोच जनता से सरकार द्वारा किए गए कई वायदे तोड़े जा चुके हैं। ग्वादर से सामान्य बलोची को कोई मदद नहीं मिली। तीन वर्ष तक सूखा पड़ने के कारण शहर को जलापूर्ति करने वाला बांध सूख चुका है। जल से नमक दूर करने वाला मौजूदा संयंत्र काम नहीं करता। इस क्षेत्र में सड़क और रेल संपर्क नहीं है। इसलिए बंदरगाह कभी फल-फूल नहीं सकता। अधिकतर लाभ बाहरी लोगों को मिल जाने के कारण बलूचिस्तान में अलग-थलग किए जाने की और क्षोभ की भावना आनी स्वाभाविक है।
चीन पंजाब आर्थिक गलियारा – इसी प्रकार सीपीईसी का आरंभिक उद्देश्य बलूचिस्तान और देश के अन्य वंचित हिस्सों का विकास करना था। सीपीईसी का रास्ता अब बदल गया है क्योंकि बलूचिस्तान में जरूरी बुनियादी ढांचा नहीं है! उत्तरी क्षेत्रों को धीरे-धीरे बाहर किया जा रहा है। दिलचस्प यह जानना है कि मकरान के तट पर क्या बनेगा? स्पा, जलक्रीड़ा और आरामगाह जैसे रिसॉर्ट! इसका सबसे अधिक लाभ पंजाब को हो रहा है। सीपीईसी को बाद में चीन पंजाब आर्थिक गलियारा कहा जा रहा है। पाकिस्तान के शेष भाग का नाराज होना स्वाभाविक है। जैसे-जैसे समय बीतेगा, ये घाव गहरे ही होंगे। पाकिस्तान के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों – राजनीति, तरह-तरह से प्रतिस्पर्द्धा करते दल, धर्म, जनजातियां, आतंकवादी और पश्चिमी दखल – से मामला और जटिल हो जाएगा।
ऊपर से नीचे (टॉप डाउन) की पद्धति बनाम संतुलित पद्धति – सीपीईसी टॉप-डाउन योजना है, जिसके लिए धन ऐसा निरंकुश साथी मुहैया करा रहा है, जो केवल यही जानता है कि ऊपर के लोग नीचे के लोगों पर योजना थोपते हैं। इसकी सफलता के लिए शोर कम से कम होना चाहिए और संस्थागत बाधाएं समाप्त होनी चाहिए। पाकिस्तान जैसे विविधता भरे देश में यह तरीका विनाशकारी होगा। इसके साथ ही घरेलू हितों का ध्यान न के बराबर रखा जा रहा है। इसीलिए भविष्य में इसकी निरंतरता यानी इसके बने रहने पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगा हुआ है। कई नैतिक प्रश्नों को ताक पर रख दिया गया है।
चीन और पाकिस्तान की सरकारें एक दूसरे से गलबहियां करती हो सकती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर जनता के बीच कोई संपर्क नहीं है। चीनी और पाकिस्तानी एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। अब इसमें चीनियों की थोक में आमद को भी जोड़ लीजिए। सीपीईसी जिस तरह से बन रहा है, वह “चीनी संस्कृति” के प्रसार के जरिये पाकिस्तान की जनसांख्यिकी को प्रभावित करना और बदलना शुरू कर देगा। अधिकतर पाकिस्तानियों के लिए धर्म बहुत महत्वपूर्ण होता है। चीन में धर्म की कोई जगह नहीं है। कट्टर धार्मिक इस्लामी गणराज्य और साम्यवादी देश के बीच इस विरोधाभास का क्या किया जाएगा? याद रखिए कि पाकिस्तानियों को अमेरिकी डॉलर पसंद थे, अमेरिकी नहीं। पाकिस्तान के धर्म में पगे हुए माहौल को चीनी संस्कृति के साथ मिलाइए – बहुत गड़बड़ होगी!!
आने वाला कल
पाकिस्तान में सबसे बड़ी चिंता है कि यह जानने का कोई तरीका ही नहीं है कि जब सीपीईसी शुरू हो जाएगा तो क्या होगा। हो सकता है कि उसकी कमान सरकार के हाथ में न हो। यदि सरकार को ही नहीं पता है कि काम कैसे होगा तो बाकी लोग भी कयास भर ही लगा सकते हैं। भविष्य अनिश्चित है। अंत में सुरक्षा की अन्य बड़ी समस्याएं भी हैं। सीपीईसी परियोजनाओं पर काम कर रहे चीनी नागरिकों के हाल ही में हुए अपहरणों से इसका संकेत मिल जाता है।
(अंत में मैं प्रतिष्ठित पाकिस्तानियों का आभार व्यक्त करता हूं, जिन्होंने अपने विचार व्यक्त किए। मैंने केवल उन्हें एक साथ रखा है।)
ले. जन. (सेवानिवृत्त) पी आर शंकर
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