संपादक की बात
20 जनवरी को अमेरिका का राष्ट्रपति पद संभालने से पहले ही डॉनल्ड ट्रंप ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय जगत में कई को नाराज कर दिया है। नवंबर 2016 में राष्ट्रपति चुने जाने के बाद उनका पहला कदम ताइवान की राष्ट्रपति से फोन पर बात करना था। यह अतीत की परंपरा से बिल्कुल हटकर था और चीन इससे बुरी तरह चिढ़ गया। उसके बाद से ही ट्रंप और चीन के आधिकारिक एवं अनाधिकारिक टिप्पणीकार कड़वी बयानबाजी में जुटे हुए हैं। अमेरिका में तो ट्रंप के बारे में कई विश्लेषकों ने विचार व्यक्त किए हैं, लेकिन चीन की ओर से इस पर किसी विद्वान की टिप्पणी दुर्लभ ही रही है। चीन के एक वरिष्ठ टीकाकार के ऐसे ही विचार विशेष रूप से BharatShakti.in के साथ साझा किए गए हैं। पढ़ें…
चीन नीति पर ट्रंप की चूक और कुछ सुझाव…
समाज में घुली मिली जानकारी तथा लोगों में त्वरित समाचार के प्रति उत्साह के युग में राष्ट्रपति पद पर मनोनीत डॉनल्ड ट्रंप अपनी टीम तैयार करने और नीतियां बनाने पर ध्यान देते दिखते हैं। यह सब कितना भी महत्वपूर्ण हो, चीनियों को ट्रंप के इशारों पर नहीं नाचना चाहिए बल्कि स्थितियां तैयार करने में सक्रियता दिखाने, रचनात्मक पहल करने एवं संभावित विकल्प तलाशने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए विश्व में शांति तथा समृद्धि बरकरार रखने और विशेष तौर पर चीन-अमेरिका संबंधों में स्थिरता एवं लाभदायक स्थिति बनाए रखने के लिए मनोनीत राष्ट्रपति को मैं ये पांच सुझाव दूंगा।
सबसे पहले तो मनोनीत राष्ट्रपति ट्रंप को इस युग के प्रवाह के विपरीत नहीं बल्कि उसके साथ ही चलना चाहिए। अमेरिका तथा अन्य प्रमुख देशों के बीच शक्तियों के नए समीकरण हमारे समय की सबसे अहम घटना हैं। इतिहास वह आइना है, जो भविष्य को अधिक स्पष्ट रूप से देखने में हमारी सहायता कर सकता है। 21वीं शताब्दी का आरंभ जॉर्ज डब्ल्यू बुश के राष्ट्रपति बनने के साथ हुआ, जिनके काल में अफगानिस्तान तथा इराक में हुए युद्धों ने अमेरिका के विश्व की एकमात्र महाशक्ति के दर्जे को काफी कमजोर कर दिया। हालांकि अमेरिका का अपेक्षाकृत कमजोर होना लंबी प्रक्रिया होगी और वह कुछ समय के लिए पहले जैसी स्थिति में लौटता भी दिखेगा, लेकिन इतिहास की धारा को पारंपरिक अथवा अपारंपरिक तरीकों से बदला नहीं जा सकता। इसके अलावा एक स्थापित शक्ति के रूप में अमेरिका अपनी बराबरी कर रहे या खुद से आगे निकल रहे देशों पर दोषारोपण करते हुए अपने गौरवशाली अतीत में खोया नहीं रह सकता। मनोनीत राष्ट्रपति ट्रंप को वास्तव में अपने देश का सामना यथार्थ की कड़वी सच्चाइयों से कराना होगा। इसीलिए अमेरिका को भविष्य के बारे में सोचते हुए एवं तीव्र आर्थिक तथा वैज्ञानिक प्रगति के साथ वैश्वीकरण के रास्ते पर चलना होगा।
दूसरी बात, डॉनल्ड ट्रंप को अपने हाथ आए जनादेश को सही तरीके से समझना चाहिए और अपनी सीमाएं भी जाननी चाहिए। पिछले चुनाव में अमेरिकी मतदाताओं को यही लगा कि ट्रंप देशको मौजूदा समस्याओं और परेशानियों से उबार सकते हैं। जनसामान्य ने बिगड़ती स्थितियों को मजबूत नेतृत्व के जरिये बिल्कुल सुधार देने की इच्छा जताई, चाहे इसके लिए उन्हें एकदम अलग तरह के प्रशासन को ही स्वीकार क्यों न करना पड़े। किंतु आमूल-चूल तथा बुनियादी परिवर्तनों के लिए जनादेश देने के बावजूद अमेरिकी जनता विवेकहीन और लापरवाही भरी रणनीतियों एवं नीतियों को हरी झंडी नहीं दे रही है। मनोनीत राष्ट्रपति ट्रंप को यह बात समझनी चाहिए। एक देश के रूप में अमेरिका आम तौर पर अपने सुस्थापित संविधान तथा संस्थाओं से चलता है, जिनमें से अधिकतर पर राष्ट्रपति अपनी मर्जी नहीं चला सकते। ट्रंप को राष्ट्रपति के रूप में स्वयं को “कारोबारी” के बजाय “राजनीतिज्ञ” बनाना होगा। न्यूयॉर्क सिटी में कारोबारी वॉशिंगटन डीसी में राजनीतिज्ञ से काफी अलग होता है। कारोबारी की मूल प्रवृत्ति अमेरिका का सक्षम एवं सफल राष्ट्रपति बनने के लिए पर्याप्त नहीं होती।
तीसरी बात, मनोनीत राष्ट्रपति ट्रंप को बारीक और पेचीदा वैश्विक मामलों से निपटना सीखना चाहिए। अक्सर हकीकत कुछ और होती है। सीखने के इस रास्ते पर सबसे पहले मनोनीत राष्ट्रपति ट्रंप के लिए विदेश नीतियों को हाथ में लेना सही होगा। उन्हें कम से कम इन तीन परेशानियों में पड़ने से बचना चाहिएः पहली – चीजों को बेहद सरल मान लेना और भावनाओं से सोचना। ट्विटर ने उन्हें चुनाव जीतने में मदद की थी, लेकिन वह सफल विदेश नीतियां तैयार नहीं कर सकता। दूसरी – बहुपक्षवाद की जगह एकपक्षवाद नहीं लाना। मनोनीत राष्ट्रपति ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन संबंधी पेरिस समझौते, ईरान परमाणु समझौते और उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौते समेत कई समझौतों से हटने की धमकी दी है। राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को संयुक्त राष्ट्र, परमाणु हथियार अप्रसार (एनपीटी) एवं समग्र परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) के प्रति अपने रवैये की, लीक से हटकर लिए गए फैसलों के साथ संस्थाओं में आमूल-चूल परिवर्तन नहीं करने की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। यह सच है कि अमेरिका को सरकारी तंत्र में आमूल चूल परिवर्तन की जरूरत है। लेकिन इन परिवर्तनों की रूपरेखा ठीक से तैयार होनी चाहिए और उन्हें सावधानी के साथ लागू किया जाना चाहिए।
चौथी बात, मनोनीत राष्ट्रपति ट्रंप को चीन के प्रति अपनी रणनीति एवं नीति के मामले में हरेक संभावना पर विचार कर लेना चाहिए। अमेरिका और चीन पर दुनिया में शांति एवं विकास बनाए रखने की विशेष जिम्मेदारी है। चीन-अमेरिका संबंधों को वैश्विक और क्षेत्रीय संदर्भ में रखने भर से क्या मनोनीत राष्ट्रपति ट्रंप की चीन नीति पारस्परिक लाभकारी हो सकती है? इसलिए चीन के प्रति रणनीति बनाने और चीन संबंधी नीति को दिशा देते समय मनोनीत राष्ट्रपति को प्रत्येक संभावना पर विचार कर लेना चाहिए। नीतियों को निर्माण होते समय यह बहुत महत्वपूर्ण है। सुश्री साई इंग-वेन के साथ टेलीफोन पर उनकी बातचीत उस ‘वन चाइना नीति’ का गंभीर उल्लंघन है, जिसका पालन राष्ट्रपति निक्सन के बाद से लगातार आठ सरकारें करती आई हैं। इसी तरह बिना सोचे-समझे चीन के बारे में दिए गए उनके बयानों से भी गंभीर चिंता उत्पन्न हुई है तथा अनिश्चितता का माहौल बन गया है। सीधी सी बात यह है कि ‘अमेरिका को फिर महान बनाने’ की कवायद घर से ही शुरू होगी और तब तक सफल नहीं होगी, जब तक किसी बाहरी को बलि का बकरा बनाने की कोशिश की जाती रहेगी। वास्तव में अमेरिका की अधिकतर आर्थिक समस्याओं का दोष चीन पर मढ़ने की मनोनीत राष्ट्रपति ट्रंप की कोशिश एकदम व्यर्थ है।
और अंत में, मनोनीत राष्ट्रपति ट्रंप को भू-रणनीतिक संकल्पों तथा आर्थिक संबंधों के बीच अंतर करना चाहिए। यह देखते हुए अमेरिका को भू-रणनीतिक एवं भू-राजनीतिक खर्च में कमी लानी पड़ी है, ट्रंप को समझना होगा कि आर्थिक वैश्वीकरण का प्रतिकार करना हानिकाकरक होगा। वैश्वीकरण की बात करें तो ज्यादातर देश मानते हैं कि वैश्वीकरण अपरिहार्य है और वह इतिहास के प्रवाह के अनुरूप चलेगा। मनोनीत राष्ट्रपति ट्रंप कुछ अमेरिकी कंपनियों को देश में ही रुकने के लिए मना सकते हैं, लेकिन वे बाजार के सभी नियमों की धज्जियां नहीं उड़ा पाएंगे। वैश्विक और क्षेत्रीय प्रशासन में हिस्सा लेने के बजाय उससे बाहर रहने पर अमेरिका को अधिक नुकसान होगा। एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) इसका अच्छा उदाहरण है। एआईआईबी में शामिल नहीं होने का राष्ट्रपति ओबामा का निर्णय गलत रहा और बाद में उन्हें उस पर अफसोस भी करना पड़ा। मुद्रा के साथ चीन की तथाकथित छेड़छाड़ के बारे में भी वॉल स्ट्रीट जर्नल की उनको सलाह हैः “डॉनल्ड ट्रंप कहते हैं कि पद संभालने के बाद जल्द ही वह चीन को मुद्रा का दुरुपयोग करने वाला घोषित कर देंगे क्योंकि वह डॉलर की अपेक्षा युआन का अवमूल्यन कर रहा है। लेकिन हो सकता है कि वह इस पर दोबारा विचार करना चाहें।”
मेरे उपरोक्त सभी सुझाव अच्छी मंशा वाले हैं और हर तरह से लाभप्रद हैं। चीन मानता है कि चीन-अमेरिका रिश्तों के लिए सहयोग ही इकलौता रास्ता है। अपने स्वभाव के अनुरूप चीन संयम बरतेगा और राष्ट्रपति ट्रंप को चीन-अमेरिका रिश्तों का महत्व समझने तथा उसके अनुरूप काम करने के लिए अधिक समय देगा। किंतु आंतरिक और बाहरी घटनाक्रम अधिक इंतजार नहीं करेंगे। इसीलिए मनोनीत राष्ट्रपति ट्रंप को समझना चाहिए कि अमेरिका-चीन रिश्तों को रचनात्मक तरीके से संभालने की कितनी अधिक आवश्यकता है।
डॉ. यांग चिएम्यान
शांघाई इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के सेवामुक्त अध्यक्ष
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