पाकिस्तान-चीन के हालिया कपट भरे गठजोड़ का असर

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Xi Jinping and Nawaz Sharif (Image Courtesy: Financial Times)

संपादक की बात

गिलगित-बाल्टिस्तान को अपने पांचवें प्रांत में तब्दील करने की जो इच्छा पाकिस्तान ने जताई है, उस पर हर ओर से आपत्तियां दर्ज हुई हैं। भारत सरकार ही नहीं जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों, इन क्षेत्रों की जनता, आतंकवादी गुटों और यहां तक कि बलोच नेताओं ने भी इसका विरोध किया है। पाकिस्तान को निश्चित रूप से पहले ही अंदाजा होगा कि इस कदम पर किस तरह की प्रतिक्रिया होगी, लेकिन संभवतः चीन ने उसे ऐसा करने के लिए उकसाया होगा क्योंकि चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा इसी क्षेत्र से होकर गुजर रहा है। पाकिस्तान का कदम दर्शाता है कि कश्मीर के मसले का संपूर्ण समाधान करने की इच्छा उसमें नहीं है, जैसा आतंकी गुट भी मानते हैं।

भारतीय खेमे के पास इस समय अच्छा मौका है, जब वह नियंत्रण रेखा के दोनों ओर तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तानी मंसूबों के विरुद्ध धारणा तैयार करने का अभियान आरंभ कर सकता है।

 

पाकिस्तान-चीन के हालिया कपट भरे गठजोड़ का असर

पिछले दिनों आई दो खबरों ने सामरिक क्षेत्रों में खतरे की घंटी बजा दी है। पहली खबर पाकिस्तानी मीडिया से थी, जिसमें गिलगित-बाल्टिस्तान को अपना पांचवां प्रांत बनाने की पाकिस्तान की मंशा का जिक्र था। दूसरी खबर चीन से आई है, जिसका कहना है कि उसने पाकिस्तान को बलिस्टिक और टैंक-भेदी मिसाइल, मुख्य जंगी टैंक एवं विमान बनाने का अधिकार दे दिया है, जिसका फिलहाल चीन से आयात किया जा रहा है। पाकिस्तानी सेना के प्रमुख की हालिया चीन यात्रा के दौरान इस पर चर्चा हुई और मंजूरी दी गई। दोनों ही टिप्पणियों का भारत के लिए सामरिक महत्व है।

Image Courtesy: Indian Defence Review

चीन और पाकिस्तान के हमेशा करीबी रिश्ते रहे हैं। चीन ने भारत की सैन्य शक्ति के साथ संतुलन बिठाने के लिए हमेशा पाकिस्तान का इस्तेमाल किया है। वह खुला दावा करता है कि यह उपमहाद्वीप में संतुलन बनाए रखने की उसकी रणनीति का हिस्सा है। इससे सुनिश्चित होता है कि भारत दोनों मोर्चों पर युद्ध की संभावना को वास्तविकता माने। पाकिस्तान जिन हथियारों का अभी चीन से आयात करता है, उन्हें बनाने की मंजूरी उसे दिए जाने से गैर परमाणु मिसाइल के मामले में भारत की श्रेष्ठता खत्म होने का दरवाजा खुल जाता है। परमाणु शक्ति से संपन्न दो राष्ट्र अगर परस्पर विरोधी हों और गैर परमाणु सैन्य शक्ति के मामले में लगभग बराबरी पर हों तो इससे भविष्य में बड़े टकराव की संभावना नगण्य हो जाएगी। इससे पाकिस्तान को निडर होकर भारतीय भूमि पर अपना छद्म युद्ध जारी रखने का अवसर मिल जाएगा।

सीपीईसी आरंभ होने के साथ ही दोनों देशों के बीच प्रगाढ़ता बढ़ी है। सीपीईसी से चीन की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है, लेकिन पाकिस्तान पर इसका क्या असर होगा, यह बात अभी रहस्य के घेरे में है। पाकिस्तान से आए बयान अस्पष्ट और विरोधाभासी हैं जो सीपीईसी को सभी समस्याएं खत्म करने वाली रामबाण दवा बताते हैं, लेकिन उसे चुकाने की लागत तथा बढ़ी हुई निर्भरता की बात छिपा जाते हैं। पाकिस्तान के शेयर बाजार समेत वहां की अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र में चीनी निवेश के पाकिस्तान बिल्कुल उसी तरह चीन का पिछलग्गू बन रहा है, जैसे उत्तर कोरिया है। पश्चिमी दुनिया आतंकी गुटों पर लगाम कसने की पाकिस्तान की क्षमता से भरोसा खो रही है, ऐसे में वह केवल चीन पर भरोसा कर सकता है, जिससे वह चीन का कृतज्ञ हो गया है।

गिलगित-बाल्टिस्तान समेत पाकिस्तान के उत्तरी क्षेत्रों में और कश्मीर में भारतीय चौकियों के करीब चीनी जवानों को देखा गया है। सीपीईसी के निर्माण एवं संचालन के लिए चीनी नागरिकों को तैनात किया गया है। उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पाकिस्तान ने लगभग पंद्रह हजार जवानों की विशेष सुरक्षा डिविजन (एसएसडी) का और केवल ग्वादर की सुरक्षा के लिए समुद्री सुरक्षा बल (एमएसएफ) का गठन किया है। लेकिन चीन को अब भी पाकिस्तान के सामर्थ्य एवं क्षमता पर विश्वास नहीं है और वह अपने समुद्री बल की संख्या बढ़ाकर उसे ग्वादर में तैनात करने की योजना बना रहा है। इस तरह चीन का पाकिस्तान में औपचारिक ठिकाना हो जाएगा, जो केवल सामरिक हित बढ़ाने के लिए नहीं होगा बल्कि इसलिए भी होगा क्योंकि सुरक्षा सुनिश्चित करने की पाकिस्तान की क्षमता पर उसे भरोसा नहीं है।

Image Courtesy: NDTV

कभी जम्मू-कश्मीर के अंग रह चुका गिलगित-बाल्टिस्तान, जो पहले “उत्तरी क्षेत्र” कहलाता था और अभी ‘प्रशासनिक क्षेत्र’ कहलाता है, सीपीईसी के लिए बाधा बना हुआ है। सुन्नी बहुल देश में गलियारे के मुहाने पर असंतुष्ट शिया समुदाय की उपस्थिति से परियोजना पटरी से उतर सकती है। इसके अलावा पाकिस्तान इस क्षेत्र को मिले विशेष दर्जे के कारण इसमें मौजूद पनबिजली ऊर्जा और खनिज संसाधन का दोहन भी नहीं कर पाया है। इसे देश का पांचवां प्रांत बनाने का जो दबाव चीन की ओर से आ रहा है, उसका उद्देश्य सीपीईसी पर बेहतर नियंत्रण करना तथा संसाधनों का दोहन करने का अवसर मिलना है और उस दबाव के कारण सरकार इस मसले पर गंभीरता से विचार करने के लिए विवश हो गई है। किंतु भारत और गिलगित-बाल्टिस्तान की जनता पाकिस्तान के ऐसे किसी भी कदम का पुरजोर विरोध करेगी।

पाकिस्तान के लिए यह कोई सामान्य कदम नहीं होगा। उसके लिए संविधान के अनुच्छेद 258 में संशोधन की आवश्यकता होगी। यह आसान नहीं होगा क्योंकि सरकार के पास वांछित जनादेश नहीं है और उसे विपक्ष के समर्थन की आवश्यकता होगी। इसीलिए यह काम सेना के जरिये सभी राजनीतिक दलों पर दबाव डलवाकर करना होगा। इतना ही नहीं, सीमा के दोनों ओर रहने वाले कश्मीरी इस कदम के खिलाफ हैं क्योंकि इससे विवाद निपटारे की कोशिशें कमजोर होंगी। पाकिस्तान समर्थक अलगाववादियों और भारत विरोधी आतंकी गुटों के नेताओं ने भी इस कदम की निंदा यह कहकर की है कि इससे जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान का दावा कमजोर हो जाएगा। पाकिस्तान जानता है कि वह कश्मीर को कभी हड़प नहीं सकता, न तो आतंकवाद के जरिये और न ही सेना की मदद से। किंतु चीन से आने वाला दबाव स्थानीय आपत्तियों पर भारी पड़ेगा और इस बात की पूरी संभावना है कि सरकार यह कदम उठाने को बाध्य हो जाएगी।

हालांकि भारत पाकिस्तान के ऐसे किसी भी कदम पर कानूनी आपत्ति दर्ज कराएगा किंतु दीर्घावधि में इससे क्षेत्र की तस्वीर बदल सकती है। ऐसा कदम संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के विरुद्ध है, इसलिए भविष्य में मामले को किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने के पाकिस्तान के प्रयास निष्फल हो जाएंगे। इससे संयुक्त राष्ट्र की किसी भी प्रकार की प्रस्तावित भूमिका (जिसे भारत नकारता है और पाकिस्तान चाहता है) का भी कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि भारत धारणाएं बनाने का काम ठीक से कर गया तो कश्मीर में तस्वीर बदल सकती है। हुर्रियत पर ऐसे देश (पाकिस्तान) का समर्थन करने का सीधा आरोप लगाया जा सकेगा, जिसने राज्य को तोड़ा है और यह सुनिश्चित कर दिया है कि कश्मीरी कभी स्वतंत्र जम्मू-कश्मीर का सपना नहीं देख सकते क्योंकि राज्य का एक हिस्सा अब पाकिस्तान का अभिन्न अंग है। अंतरराष्ट्रीय हलकों में इस कदम की खुली आलोचना करने से और घाटी में भी वही बात सही ढंग से कहने से वहां के लोगों की मानसिकता बदल सकती है। इस बदलाव के बाद पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों तथा अलगाववादियों को मिलने वाले समर्थन में कमी आएगी। इसके साथ ही भारत राज्य में नरमपंथियों को मदद बढ़ा सकता है ताकि वे पाकिस्तान के प्रस्तावित कदम के खिलाफ राज्य में विरोध आरंभ कर सकें।

Image Courtesy: India Opines

भारत को पाकिस्तान में संविधान संशोधन की प्रक्रिया आरंभ होने का इंतजार तक नहीं करना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय मंच पर आधिकारिक विरोध दर्ज कराते हुए धारणा तैयार करने का काम शुरू कर देना चाहिए। पीडीपी-भाजपा गठबंधन को सुनिश्चित करना चाहिए कि यह मसला राज्य में आगामी उपचुनावों के दौरान बड़ा मुद्दा बने, जिससे विपक्षी नेशनल कॉन्फ्रेंस भी भारतीय कदमों का समर्थन करने के लिए विवश हो जाएगी अन्यथा उसे जम्मू-कश्मीर विरोधी कहा जा सकता है।

पाकिस्तान को मिसाइल तथा विमान बनाने की अनुमति देने के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए चीन को मनाना भारत के लिए मुश्किल है। एनएसजी और अजहर मसूद जैसे पिछले मामलों की तरह चीन अपने ‘सदाबहार दोस्त’ का ही पक्ष लेगा। किंतु हमें गिलगित-बाल्टिस्तान को अपना पांचवां प्रांत बनाने की पाकिस्तान की मंशा का फायदा उठाना चाहिए और सुनियोजित तथा सुगठित मीडिया अभियान के जरिये घाटी में जबरदस्त लाभ हासिल करना चाहिए।

मेजर जन. (सेवानिवृत्त) हर्ष कक्कड़

(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of BharatShakti.in)


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Maj Gen Harsha Kakar
Maj Gen Harsha Kakar was commissioned into the army in Jun 1979 and superannuated in Mar 2015. During his military service, he held a variety of appointments in every part of the country including J&K and the North East. The officer was the head of department in strategic studies at the college of defence management where he wrote extensively on futuristic planning and enhancing joint operations. He served as part of the United Nations peace keeping operations in Mozambique, where he was involved in forays deep into rebel territory and establishing camps in mine infested areas. In addition to training courses in India he attended the National Security Studies Course at the Canadian Forces College in Toronto. He was the first officer from India to attend the course. Post his superannuation, he has settled in Lucknow where he actively writes for two newspapers, The Statesman and The Excelsior of J&K and for the online newsletters, The Wire and Quint.

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