देश की रक्षा खरीद के लिए जिम्मेदार भारतीय सैन्य प्रतिष्ठान के प्रमुख अधिकारी इस बात को लेकर खासे उत्साहित हैं कि हमारा घरेलू उद्योग रक्षा जरूरतें पूरी करने की अपनी क्षमता तेजी से विकसित कर रहा है। उनका यह उत्साह सामने आया भारत शक्ति की ओर से 20 सितंबर को नई दिल्ली में आयोजित सातवें इंडिया डिफेंस कॉन्क्लेव में। भारतीय रक्षा उद्योग की बढ़ती क्षमता का आकलन करते हुए सेना, नौसेना और वायुसेना के उपप्रमुख इस बात पर सहमत थे कि देश का रक्षा साजो-सामान मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर अब परिपक्व हो चुका है और यह हमारी सैन्य जरूरतें पूरी करने में काफी हद तक समर्थ है।
डेप्युटी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (डीसीएएस) लेफ्टिनेंट जनरल शांतनु दयाल ने हालिया रक्षा खरीद के आंकड़े पेश करते हुए बताया कि भारतीय सेना आत्मनिर्भर भारत के लिए जमीन तैयार करने का काम लंबे समय से कर रही है।
“अगर भारतीय कंपनियों को ऑर्डर देने की बात करें तो पिछले साल हमने 45000 करोड़ रुपये के समझौते किए जिनमें से 87 फीसदी देसी उद्योग को गए।“ उन्होंने वहां बैठे रक्षा क्षेत्र से जुड़े देशी विदेशी स्टेकहोल्डर्स, पॉलिसीमेकर्स और ऑफिसर्स के समूह को जानकारी दी।
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सेना की जरूरत को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि हमें कॉम्प्लेक्स टेक्नॉलजी और हथियार चाहिए जो हम पारंपरिक तौर पर विदेशों से खरीदते रहे हैं, लेकिन पिछले दो वर्षों में उद्योग जगत ने हमारी जरूरतें पूरी करने के लिहाज से खुद को आश्चर्यजनक रूप से तैयार किया जिससे बड़े तथा कॉम्प्लेक्स सिस्टम्स के विकास में जबर्दस्त बढ़ोतरी देखने को मिली है। सेना उपप्रमुख ने आश्वस्त किया, ‘मैं इस बात की पुष्टि करता हूं कि भारतीय उद्योगों से खरीदी का अनुपात इसी साल 95 फीसदी से ऊपर चला जाएगा और आने वाले वर्षों में यह 100 फीसदी भी होगा।’
घरेलू रक्षा उद्योग की उड़ान
डोमेस्टिक सेक्टर की क्षमता का जिक्र करते हुए डेप्युटी चीफ ऑफ एयर स्टाफ (डीसीएएस) एयर मार्शल एन तिवारी ने देसी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) की मिसाल दी और कहा, “हम इस हद तक मैच्योर हो गए हैं कि आज यह रेडीमेड प्रॉडक्ट के रूप में उपलब्ध है और हमारा एक फ्लैगशिप प्रोग्राम है। सच पूछें तो हम एवियॉनिक्स और एयर फोर्स सिस्टम्स की क्रांति की दहलीज पर खड़े हैं और इसे आगे बढ़ाकर नए लेवल पर ले जाने की स्थिति में हैं। देश की कई औद्योगिक कंपनियां इस विकास में भागीदार हैं और उनके प्रोडक्ट्स एयरक्राफ्ट का हिस्सा हैं। इसलिए मैं समझता हूं कि हम परिपक्वता की स्थिति में पहुंच गए हैं”।
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देसीकरण में भारतीय नौसेना की भूमिका पर रोशनी डालते हुए वाइस चीफ ऑफ नैवल स्टाफ (वीसीएनएस) वाइस एडमिरल घोरमड़े ने कहा, “हमारा जोर हमेशा से देसी उत्पाद लेने पर रहा है। हमने अपना देसीकरण 1960 से ही शुरू कर दिया था जब पहला जहाज ‘अजय’ कमीशन किया गया था। हम आज भी अपने बजट का बड़ा हिस्सा भारतीय उद्योग पर खर्च करते हैं। हाल ही में कमीशन किए गए एयरक्राफ्ट कैरियर ‘आईएनएस विक्रांत’ में 76 फीसदी देसी कंटेंट हैं। यही नहीं, 43 जहाज और पनडुब्बियां देश में ही बनने की प्रक्रिया में हैं”।
क्या भारतीय रक्षा उद्योग निर्यात के लक्ष्य हासिल करने को तैयार है?
रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग के अतिरिक्त सचिव संजय जाजू ने पेरिस से इस कार्यक्रम में ऑनलाइन शिरकत करते हुए कहा कि यह देश के डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग इको-सिस्टम का सबसे बदलावकारी दौर है। इंडस्ट्री ने 1500 करोड़ रुपये के मामूली निर्यात से बढ़ाकर अपना एक्सपोर्ट टर्नओवर पिछले साल 13000 करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया है। इससे साफ है कि मौका मिले तो भारतीय उद्योग जगत किसी से कम नहीं है और सारे जरूरी सिस्टम्स डिजाइन और डिवेलप कर सकता है।
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जाजू ने कहा, “इस विकास का एक अहम पहलू यह भी है कि भारत से वेपन प्लैटफॉर्म एक्सपोर्ट बढ़ने वाला है। हमारी इंडस्ट्री परिपक्व हो चुकी है और भविष्य में हम कई युनिकॉर्न्स देखेंगे”।
कलैबरेशन के जरिए कोऑपरेशन
इंडिया डिफेंस कॉन्क्लेव में ‘डिफेंस कोऑपरेशन थ्रू कलैबरेशन’ थीम पर विशेष संबोधन रहा भारतीय रक्षा उद्योग के दिग्गज और भारत फोर्ज लिमिटेड के सीएमडी बाबा कल्याणी का। उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्रालय मेक इन इंडिया प्रोडक्ट्स को काफी प्रोमोट कर रहा है। भारतीय कंपनियों के उत्पादों और उनकी ओर से मुहैया कराए जा रहे वेपन प्लैटफॉर्म्स में अभूतपूर्व दिलचस्पी देखने को मिल रही है और इसलिए निर्यात के अवसर भी बढ़ रहे हैं। हमें जल्दी ही लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) और ब्रह्मोस के अतिरिक्त प्राइवेट सेक्टर की कई सक्सेस स्टोरी देखने को मिल सकती है।
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श्री कल्याणी ने कहा, “मैं निजी तौर पर महसूस करता हूं कि इस समय हम एक अहम मोड़ से गुजर रहे हैं। यूरोपीय संकट ने लंबे दौर की जमीनी लड़ाई के रूप में एक ऐसे कड़वे सच से सामना कराया है जिसके लिए पश्चिमी देश भी पूरी तरह तैयार नहीं हैं। इससे उभरे नए भू-राजनीतिक समीकरण हर देश को आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाने को मजबूर कर रहे हैं। इससे भी आत्मनिर्भर भारत मिशन और इंडिया फर्स्ट एप्रोच सही साबित होते हैं”।
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उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए लार्सन एंड टुब्रो (एल एंड टी) डिफेंस बिजनेस के सीनियर एक्जीक्युटिव वाइस प्रेसिडेंट जे डी पाटिल ने भारतीय उद्योग जगत की अहमियत और उसकी भूमिका पर जोर दिया।
“भारतीय उद्योग जगत आज डिफेंस की छठी शाखा के रूप में उभर आई है; ये शाखाएं हैं- सामरिक राजनीतिक शाखा, तीनों सशस्त्र बल, स्पेस तथा साइबर और फिर वह छठी शाखा जो किसी राष्ट्र को अपने मिलिट्री-इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स के जरिए विशेष ताकत मुहैया कराती है।’ उन्होंने कलैबरेशन के जरिए डिफेंस कोऑपरेशन की पेशकश करते हुए कहा, ‘भारतीय उद्योग जगत साझेदारी और भागीदारी बनाकर साथ काम करने को तैयार है।“
सालाना इंडिया डिफेंस कॉन्क्लेव (जो पहले फॉरेन डिफेंस अटैशेज कॉन्क्लेव के नाम से जाना जाता था) में ब़डी संख्या में सशस्त्र बलों के वरिष्ठ अधिकारी, वरिष्ठ सरकारी अधिकारी और विदेशी तथा घरेलू रक्षा उद्योग की कॉरपोरेट लीडरशिप के साथ ही 70 से ज्यादा भारत में पदस्थ फॉरेन डिफेंस अटैशे मौजूद रहे।
Bharatshakti.in हर साल इंडिया डिफेंस कॉन्क्लेव का आयोजन करती है जिसमें पॉलिसीमेकर्स, मिलिट्री लीडरशिप, प्रफेशनल्स, फॉरेन डिफेंस अटैशे, डोमेस्टिक डिफेंस इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर्स और फॉरेन ओईएम्स की मौजूदगी रहती है। कॉन्क्लेव की अवधारणा के पीछे सोच यह है कि वैश्वीकरण के इस दौर में लगातार हिंसक होती दुनिया में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि सभी देश साथ मिलकर उन साझा खतरों का मुकाबला करें जो राष्ट्र की सरहदों से परे हैं। जाहिर है, आगे बढ़ने का रास्ता यही है कि हार्ड और सॉफ्ट पावर का तालमेल बनाए रखते हुए, उभरते खतरों को काबू करने का सामूहिक प्रयास जारी रखा जाए।
रवि शंकर