चीन की नयी फाँस

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संपादक की टिप्पणी

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) ने भारत में उच्च तीव्रता की प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न की हैं। यह तथ्य, कि यह उस क्षेत्र से हो कर गुजरता है जिसे भारत अपना होने का दावा करता है, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में गलियारे की वैधता को खारिज कर सकता है। इस तथ्य के बाद कि दक्षिण चीन सागर में द्वीप के लिए चीन का दावा कमजोर पड़ रहा है, क्या वह फिर एक और ऐसी ही प्रतिकूल स्थिति को पचाने में सक्षम है।

व्यापक रूप से सीपीईसी का मूल्यांकन चीन के लिए एक बड़े वरदान के रूप में किया गया है। यद्यपि लेखक ने एक अत्यंत भिन्न तर्क रखा है : क्या सीपीईसी चीन के लिए एक ऐसी स्थिति उत्पन्न कर सकता है जहाँ उन्हें स्वयं को आवश्यकता से अधिक खींचना होगा?

 

चीन की नयी फाँस

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे ने हाल ही में सुर्खियों का ध्यान खींचा है। पाकिस्तान के लिए इसका क्या मतलब होगा, इसका परीक्षण बड़े विस्तार से किया जा चुका है। इसी तरह, चीन के लिए इसका क्या मतलब है, इसका परीक्षण भी उतने ही विस्तार से किया जा चुका है। खाड़ी से तेल लाने के लिए एक छोटे मार्ग और मलक्का जलडमरूमध्य के मार्गअवरोध के एक रणनीतिक विकल्प के लिए चीन की तलाश सुविदित है। यद्यपि इस गलियारे को खोलने में क्या चीन ने एक नया नाजुक मसला खोल दिया है? क्या सीपीईसी और मलक्का जलडमरूमध्य चीन की नयी नसें हैं? फिलहाल चीन को यह करना है कि उसे मलक्का मार्ग अवरोध पर एकाग्र हो कर ध्यान देना है और यह काम हुआ है। अब से कुछ वर्ष बाद के बारे में क्या विचार है जब सीपीईसी का परिचालन शुरू हो जायेगा और चीन अपनी दोनों नसों से अपना जीवन रक्त पाना शुरू कर देगा। एक बहुत दिलचस्प स्थिति पैदा होने की संभावना है। चलिये, तर्क की खातिर इस पर 10-15 वर्ष की समयसीमा रखते हैं।

Image Courtesy: Global Sentinel

एक बार जब सीपीईसी अस्तित्व में आ जाता है और इससे प्रवाह शुरू हो जाता है, मजा शुरू होता है। सबसे पहले, चीन को अपनी उतनी संप्रभुता पाकिस्तान को सौंपनी पड़ेगी जितना यह दूसरी तरफ से होगा। दूसरे, उस समय पाकिस्तान की स्थिति क्या होगी? इसमें सुधार नहीं हो सकता है। ऐतिहासिक रूप से, सिंधु घाटी मोहनजो-दारो और हड़प्पा के समय से ही असंतोष की घाटी रही है। अस्थिरता और कट्टरता का नया स्तर, जो सन्निकट और अनुमान के अनुरूप है, सीधे-सीधे इस जीवनरेखा के लिए खतरा पैदा करेगा। तीसरे, नयी नसें अनिवार्यत: इससे अशांत झिंगजियान और तिब्बत क्षेत्र के लिए जहर लेंगी। तो वहाँ ज्यादा संकट होगा और इन क्षेत्रों पर चीन की संप्रभुता छीजेगी? वह भी उसकी अपनी सीमा के भीतर। चौथे, पाकिस्तानी सदैव शिकारी कुत्ते के साथ शिकार पर निकलेंगे और खरगोश के पीछे दौड़ेंगे। अमेरिकियों से पूछिये। वे इस मामले में सबसे अनुभवी हैं। अफगानियों से पूछिये। वे पाकिस्तान के ऐसे बर्ताव के दूसरे सबसे अनुभवी हैं।

चीन अपने हर स्थिति के सहयोगी – पाकिस्तान पर निर्भर कर रहा है? चीन को सतर्क रहना चाहिए। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि जो भी देश पाकिस्तान पर निर्भर हुआ उसे केवल अफसोस ही हुआ। पाँचवें, हमें नहीं भूलना चाहिए की प्रकृति भी अपनी भूमिका निभा सकती है।

कुंजेराब दर्रे से हो कर काराकोरम राजमार्ग का रास्ता निर्भरता के लिए सटीक तौर पर सर्वेश्रेष्ठ गलियारा नहीं है। जिस पर्वत श्रेणी के आरपार यह गलियारा है, वह अस्थिर है और भूस्खलन एवं भूकंप के प्रति संवेदनशील है। ढुलाई मार्ग भी कमजोर और अनिश्चित होगा। परिणामस्वरूप, प्रवाह दर भी अनिश्चित होगा। क्या होता है जब भारी पूँजी गर्क की जा चुकी हो, गलियारा अपेक्षित नतीजा नहीं दे सकता और पाकिस्तान निश्चित रूप से अपने बकाये का भुगतान नहीं करेगा? अपेक्षित नतीजा न मिलने पर झिंगजियान और तिब्बत क्षेत्र में और अशांति होगी; चीन के लिए एक आर्थिक सुराख होगा। छठे, जब सीपीईसी अपनी भूमिका में आ जाती है और चीन की आंतरिक व्यवस्था नयी स्थिति से तादात्म्य बैठा लेती है तो मलक्का के जरिये प्रवाह घट जायेगा।

क्या होता है जब सीपीईसी औसत से नीचे प्रदर्शन करना शुरू करती है या उसके बाद उसे औसत से नीचे प्रदर्शन के लिए बनाया जाता है? मलाका को फिर सक्रिय करेंगे? दोनों नसों को खोले रखना चीन के लिए एक बड़ा बोझ होगा। आखिरी, इन नये मोर्चे को सुरक्षित रखने के लिए चीन अपना खर्च करना होगा जिसे अब तक उन्होंने नजरअंदाज किया था। यह कीमत भारी होगी। कोई गलती नहीं करना!

Image Courtesy: Eurasia Review

तब इतिहास के अन्य तथ्य हैं। जब भी बीजिंग ताकतवर रहा है, तिब्बत और झिंगजियान के सीमांत क्षेत्र पर इसका वर्चस्व रहा है। जब भी बीजिंग वंश कमजोर था, इसके सीमांत क्षेत्रों ने हमेशा बगावत का झंडा बुलंद किया और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। क्या ऐसे दोहराव का संभावना है? जब तक चीन राजनीतिक और आर्थिक रूप से मजबूत है, वह अपना आडम्बर जारी रख सकता है और रखेगा। क्या हुआ जब चीन की अर्थव्यवस्था संघर्षरत हो गयी? यद्यपि इसका प्रदर्शन खराब नहीं हुआ है, फिर भी इसके महाशक्ति दर्जे की यात्रा पर सवालिया निशान लगने लगे। वैश्वीकरण के साथ लड़खड़ाहट और संरक्षणवाद बढ़ने लगा, ऐसे में चीन की अर्थव्यवस्था का भविष्य क्या है? महा छलांग के पीछे की ओर आने के बारे में फुसफुसाहट पहले ही शुरू हो गयी है। क्या चीन की अर्थव्यवस्था दक्षिण चीन सागर समेत सभी दिशाओं में हमेशा हद से आगे बढ़ने का समर्थन करेगी?

इतिहास का एक अन्य तथ्य यह है कि चीन के पास उसकी कठोर ताकत के सम्पूरक नरम ताकत के सही अवयव नहीं हैं। अमेरिका के विपरीत, इसके पास इसकी पहुँच को आगे बढ़ाने के लिए कोई हॉलीवुड नहीं है। लोकोपकार चीनियों के लिए अजनबी बात है। उनकी भाषा प्रतिरोधी और सबसे कम समझी जाने वाली है। जहाँ भी वे गये, वहाँ की स्थानीय संस्कृति को अपनाने का उनका इतिहास खराब रहा है। उनको हाँग काँग में भी परेशानी हो रही है। यह सभी बातें दीर्घावधि में उनको महँगी पड़ेंगी और उनकी कठोर ताकत पर पानी फेर देंगी। क्या चीन नया यूएसएसआर है? आवश्यक से अधिक फैलाव और कलह का सामना। इतिहास बताता है कि यूएसएसआर अंतत: अत्यधिक पहुँच के चलते ही टूटा था। हम 10-15 वर्ष बाद यह देख सकते हैं और चर्चा कर सकते हैं।

तो यह भारत को कहाँ छोड़ता है? मैं कहना चाहूँगा कि एक खुश स्थिति में। हम अपने विरोधाभासों के साथ चलते रहेंगे लेकिन हम उन्हें संभाल लेंगे, जैसा कि हमने पिछले छह दशकों में किया है। कश्मीर, पूर्वोत्तर और एलडब्लूई प्रभावित क्षेत्रों में हमारी मुसीबतें खत्म नहीं होंगी। वे फिर भी संभली रहेंगी। 10-15 वर्षों में हमारा देश सभी पहलुओं में निश्चित रूप से मजबूत होगा। कछुवा रुकेगा नहीं।

भारत-चीन की रणनीतिक गणना में एक मुख्य अंतर यह होगा कि चीन की नसें भारत के लिए संवेदनशील होंगी। यह तथ्य कि मलाका जलडमरूमध्य पर हमारा वर्चस्व जारी रहेगा, भूगोल का एक स्थापित तथ्य है। दरअसल, जापान, दक्षिण कोरिया और वियतनाम के साथ बहु-पक्षीय संबंध मजबूत करते वक्त हमें मलाका जलडमरूमध्य के दूसरी तरफ होना चाहिए। सांस्कृतिक रूप से हमें कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड, मलयेशिया, फिलीपींस और इंडोनेशिया के साथ जुड़ाव और मजबूत संबंधों का लाभ उठाने की जरूरत है।

Image Courtesy: Native Pakistan

सीपीईसी नामक दूसरी नस नयी दिलचस्पी होगी। इस गलियारे के हिस्से पाकिस्तान में हैं जहाँ अनिश्चितताएँ भड़क सकती हैं। ये हिस्से बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा और उत्तरी क्षेत्र हैं। याद कीजिये कि अफगानिस्तान में अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल की संचार व्यवस्था का क्या हुआ था। वे नियमित रूप से बाधित होती थीं। दर्जनों ट्रक जला दिये गये। अमेरिका को अपनी सीमित सेना बनाये रखने के लिए पाकिस्तानियों को रिश्वत दे कर अपनी राह बनानी पड़ी थी। चीन को भी इसके लोगों को नियंत्रित रखने के लिए कीमत चुकानी पड़ेगी। यद्यपि संख्या, मात्रा और मसलों में भारी अंतर होगा। एक निश्चित अवधि के लिए एक निश्चित संख्या की एक अनुशासित सेना को रखना अनिश्चित लोगों को नियंत्रित करने से अलग है। यह बिल्कुल अलग है और यह एक समीकरण की माँग कहीं अधिक करती है।

सीपीईसी जहाँ से गुजरता है, उन क्षेत्रों के स्वामित्व पर विवाद है। यह चीन को विधिक रूप से कठिन स्थिति में डालता है। हेग में दक्षिण चीन सागर पर पराजय के बाद एक नयी विधिक उलझन रणनीतिक जटिलताओं को बढ़ाती है। ऐसे नायकत्व की कीमत चीन के लिए केवल बढ़ेगी। आखिर लेकिन कम नहीं, सीपीईसी की भारत से भौतिक निकटता है। पाकिस्तान और भारत के बीच किसी द्विपक्षीय विवाद में हमारे द्वारा इस गलियारे पर किसी भी तरह का संभावित हंगामा चीन को बिना पाँव के खड़े होने को विवश कर देगा। हमें वास्तव में इसके साथ कुछ भी नहीं करना है। एक अँतर्निहित खतरा संपर्क को बाधित करेगा।

आखिर में, दोनों नसों पर भारत की पकड़ भारत में तिब्बत की निर्वासित सरकार द्वारा मजबूत होती रहेगी। यहाँ तक कि यदि स्थितियाँ अनुकूल रहीं तो इसकी सर्वविद्यमानता चीन को व्यथित कर देगी। भविष्य वाकई बहुत दिलचस्प लगता है।

लेफ्टिनेंट जनरल पी.आर. शंकर (सेवानिवृत्त)

(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of BharatShakti.in)


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Lt Gen P R Shankar (Retd)
Lt Gen P R Shankar is a retired Director General of Artillery. He is an alumnus of National Defence Academy Khadakvasala, Defence Services Staff College, Wellington, Army War College, Mhow, Naval Post Graduate School, Monterrey and National Defence College, New Delhi. He has held many important command, staff and instructional appointments in the Army. He has vast operational experience having served in all kinds of terrain and operational situations which has confronted the Indian Army in the past four decades.He gave great impetus to the modernization of Artillery through indigenization. He has deep knowledge, understanding and experience in successful defense planning and acquisition, spanning over a decade. Major 155mm Gun projects like the Dhanush, M777 ULH and K9 Vajra, Rocket and Missile projects related to Pinaka, Brahmos and Grad BM21, surveillance projects like Swati WLR and few ammunition projects came to fructification due to his relentless efforts.The General Officer is now a Professor in the Aerospace Department of Indian Institute of Technology, Madras., Chennai. He is actively involved in applied research.

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