पाकिस्तान एक बार फिर भारत सरकार को दुनिया भर में बदनाम करने की एक नई मुहिम 27 अक्टूबर से शुरू करने जा रहा है। यह वही तारीख है जब 1947 में भारतीय सेना ने पाकिस्तानियों से कश्मीर को बचाने के लिए श्रीनगर में प्रवेश किया था। पिछले दो वर्षों से पाकिस्तान 27 अक्टूबर को, जिसे 75 साल पहले 1 सिख बटालियन के कश्मीर में उतरने की याद में भारतीय सेना इन्फंट्री डे के तौर पर मनाती है, काला दिवस के रूप में रेखांकित करने की कोशिश कर रही है।
विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तानी ‘डीप स्टेट’ द्वारा तैयार की गई इस तूफानी मुहिम में एलओसी (नियंत्रण रेखा) से भारत की तरफ जम्मू कश्मीर में जीवन तथा प्रशासन से जुड़े विभिन्न पहलुओं को बदनाम करने वाली ऑडियो, टेक्स्ट और विजुअल सामग्रियां शामिल की गई हैं। भारतशक्ति द्वारा देखे जा चुके इन कागजात की सामग्रियां पाकिस्तानी डिप्लोमैटिक मिशनों के जरिए दुनिया भर में विभिन्न सरकारों और थिंक टैंकों तक पहुंचाई जानी हैं।
अंतरराष्ट्रीय संगठनों, राज्यों और उनकी एजेंसियों का ध्यान खींचने के लिए इन सामग्रियों को अलग-अलग शीर्षकों में बांटा गया है। इनमें कुछ शीर्षक हैः
- कश्मीर पर मानवाधिकार रिपोर्ट जून-अगस्त 2022
- कश्मीर में पत्रकारिता और मानवाधिकार को खामोश कराती भारत सरकार
- जम्मू कश्मीर में खतरे में पत्रकारिता
- कश्मीर की झलक जुलाई-अगस्त 2022
इस प्रचुर संग्रह में जिस तरह के डीटेल्स मौजूद हैं, उनके मद्देनजर इस पर आईएसआई/पाकिस्तानी सेना की छाप साफ देखी जा सकती है। केंद्र शासित क्षेत्र में जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं का नैरेटिव मुख्यतः जम्मू कश्मीर के मुट्ठी भर संदिग्ध पाकिस्तान समर्थक तत्वों के बयानों पर आधारित है।
इन पेपर्स में इकट्ठा किए गए लेखों में पूर्वाग्रह साफ दिखता है। इनका एकमात्र मकसद भारतीय संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत पूर्व राज्य जम्मू कश्मीर को मिला विशेष दर्जा समाप्त करने के फैसले पर कीचड़ उछालना प्रतीत होता है। ज्यादातर लेखन पूर्व निर्धारित विचारों से प्रेरित है और इसलिए विद्वानों, शोधकर्ताओं या आम लोगों के लिए कोई बौद्धिक अहमियत नहीं रखता।
इस संग्रह की व्यर्थता का एक उदाहरण तो यही है कि इसमें भारत के जम्मू कश्मीर और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की तुलना नहीं की गई है। अगर ऐसी तुलना की गई होती तो पाठकों के सामने एक स्पष्ट तस्वीर उभर सकती थी। यह एक तथ्य है कि जम्मू और कश्मीर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मुकाबले कहीं ज्यादा आगे है। पाकिस्तान नियंत्रित क्षेत्र में घोर गरीबी, नागरिक सुविधाओं का अभाव, लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था, शिक्षा की कमी, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव और अन्य बुनियादी जरूरतों की कमी किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र को शर्मिंदा करने के लिए काफी हैं। यही नहीं, खुलेआम घूमते आतंकवादी, कानून व्यवस्था की लचर स्थिति और स्थानीय आबादी की स्वतंत्रता का हनन यहां रोजमर्रा के अनुभव का हिस्सा हैं।
यह समझने की जरूरत है कि अमेरिका से एफ-16 लड़ाकू विमानों की मरम्मत के नाम पर दिए जाने वाले 45 करोड़ डॉलर के पैकेज की घोषणा होने के बाद से पाकिस्तान की हिम्मत बढ़ गई है। अब एफएटीएफ ने भी उसे अपनी वॉच लिस्ट से बाहर कर दिया है तो उसे लगने लगा है कि एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में उसकी साख फिर से बहाल हो गई है। यह तथ्य अपनी जगह बरकरार है कि पश्चिमी और पूर्वी सरहदों पर सक्रिय आतंकी समूहों से इसका जुड़ाव पड़ोसी देशों में अशांति और अस्थिरता का कारण बना हुआ है। इस जुड़ाव में आतंकवादी समूहों को नैतिक, भौतिक, राजनीतिक और वित्तीय समर्थन के साथ ही सीमित सैनिक अभियानों का समर्थन भी शामिल है।
स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर में वैश्विक समुदाय को और करीबी से जोड़कर अपनी रणनीति को मजबूत बनाना शुरू किया है। पाकिस्तान जो कुछ कर रहा है, उसे एक तरह से सूचनाओं की कारपेट बॉम्बिंग कहा जा सकता है। उसे उम्मीद है कि उसके झूठ का यह बवंडर दुनिया भर में तर्कपूर्ण सोच को उड़ा ले जाएगा। लेकिन कोई भी देश या संस्थान ऐसी पूर्वाग्रह से भरी रिपोर्टों को स्वीकार नहीं कर सकता जिसमें लेश मात्र भी सचाई न हो। इस कोशिश में पाकिस्तान अपनी बची-खुची विश्वसनीयता भी नष्ट कर लेगा।
टीम भारतशक्ति