राष्ट्र हित और सोशल मीडिया – गुपचुप इंजीनियरिंग!

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संपादक की बात

सोशल मीडिया के साधन संचार के शक्तिशाली मंच बन गए हैं। आतंकवादी भी इसी मीडिया या माध्यम का इस्तेमाल कर रहे हैं और ऐसे में देश के हितों को सुरक्षा संबंधी खतरे से बचाने की दृष्टि से इस मीडिया पर बहुत ढीला नियंत्रण है। वर्तमान स्थिति के विश्लेषण के बाद लेखिका कुछ समाधान सुझा रही हैं, जो व्यक्ति और सरकार दोनों को सुरक्षित रखते हैं।

राष्ट्र हित और सोशल मीडिया – गुपचुप इंजीनियरिंग!

वार्तालापों पर सरसरी नजर डालने से पता चलता है कि ऑनलाइन चर्चाएं कितनी अशिष्टता भरी हो गई हैं फिर भी कुछ लोग समझते हैं कि सोशल मीडिया के हमारे परिवेश में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे हैं।

आतंकवादी संगठन अथवा सरकारी/सरकार से इतर कारकों द्वारा हैकिंग का खतरा हमारी सरकार और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों को रात-रात भर जगाकर रखता है। ढेरों सोशल मीडिया मंचों के व्यापक प्रयोग और उन पर निर्भरता होने से देश पर मनोवैज्ञानिक युद्ध का खतरा मंडराने लगता है, जो हमें तब दिखता है, जब कुछ विशेष बिंदुओं पर चर्चा होती है। विभिन्न सोशल मीडिया मंचों के नियमित और गहन अध्ययन से हमें आसानी से पता चल जाएगा कि सरकारी प्रयासों और नागरिक समाज में हुई प्रगति की जड़ खोदने और उन्हें अनुचित बताने के लिए किस तरह लामबंद होकर ऑनलाइन सूचना अभियान चलाए जाते हैं। विनम्रता की कमी तो दिखती ही है, कटुता और शंका भरी तीखी बहसों का खतरनाक चलन भी नजर आया है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है क्योंकि बेहद भावुक मनोस्थिति में पहुंचाया गया पाठक संभवतः “ऑनलाइन दुर्व्यवहार/प्रताड़ना” तथा उसके दुष्प्रभाव को समझ ही नहीं पाएगा।

Image Courtesy; Jonas Clark

मनोवैज्ञानिक युद्ध के प्रमुख घटकों में ऐसी कहानियां या विषय गढ़ना शामिल है, जिनमें प्रभाव डालने वाले अनावश्यक भ्रम उत्पन्न कर हमारी “सभ्यता, पहचान, हितों तथा आकांक्षा” को कमतर बताते हैं, जिससे राजनीतिक एवं सामाजिक विभाजन होता है। हाल ही में देखा गया कि सैन्य बलों और अर्द्धसैनिक संगठनों के कुछ असंतुष्ट जवानों द्वारा डाले गए वीडियो ने ऐसी कहानियों को बल दिया। मीडिया और हमारे पड़ोसियों ने उसका जमकर दुरुपयोग किया।

सुरक्षा की जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है बल्कि सोशल मीडिया कंपनियों और इन मंचों का प्रयोग करने वाले आम आदमी पर भी इसकी जिम्मेदारी है।

ऑनलाइन संवाद के लिए व्यवहार के नियम परिभाषित हैं। देखा गया गया है कि आभासी दुनिया में लोगों के लिए शिष्टता की सीमाएं लांघना आसान हो जाता है। यदि शोषण तथा धोखेबाजी के लिए एकदम अनुकूल माहौल को साफ करना है तो आभासी जगत में अपने ढांचागत तथा व्यवहार संबंधी नियमों को मजबूत करना महत्वपूर्ण पहला कदम होगा।

ऑनलाइन संवादों को सभ्य बनाने और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा होने की हमारी आशंका कम करने के लिए मुझे पांच बिंदु व्यक्तिगत तौर पर बहुत प्रभावी लगे हैं। कई लोग मानते हैं कि सोशल मीडिया पर चलने वाली बातें वास्तविक नहीं लग सकती हैं या पिस्तौल अथवा बम की तरह खतरनाक नहीं लग सकती हैं। किंतु सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम के रूप में इसके लिए भी निगरानी और तैयारी की जरूरत है। वास्तव में कभी-कभी अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए क्योंकि आमने-सामने के टकराव नहीं बल्कि आभासी टकराव से भी हिंसा भड़क सकती है।

कंपनियों की जिम्मेदारीः ‘हम तो तकनीकी कंपनी भर हैं।’ लोगों के वार्तालाप के लिए सोशल मीडिया मंच तैयार करने वाली तकनीकी कंपनियों के लिए हमेशा यह बहाना नहीं हो सकता। आपको नैतिक जिम्मेदारी से केवल इसीलिए छूट नहीं मिल सकती क्योंकि ‘आप तकनीकी कंपनी मात्र हैं।’ ऐसी कंपनियों को दो बातें याद रखनी चाहिए। पहली, जब उन्होंने ऐसे मंच बनाए थे, तब उन्होंने सोचा भी नहीं था कि आतंकी संगठन आतंक का अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिए इसी मंच का इस्तेमाल करने लगेंगे। दूसरी, जब इन कंपनियों के उपयोगकर्ता (यूजर) पूरी दुनिया में हैं तो जिन देशों में इन कंपनियों की उपस्थिति है, उन देशों के सुरक्षा संबंधी हितों का ध्यान रखना उनकी नैतिक जिम्मेदारी हो जाती है। सोचिए कि कोई कंपनी बाजार हिस्सेदारी केवल इसीलिए गंवा रही है क्योंकि उसने किसी भी कीमत पर अपना कारोबार बरकरार रखने पर ही ध्यान दिया।

ट्रॉल्स पर काबू रखें: सरकारें और संगठन अपनी हितपूर्ति के लिए ट्रॉल्स को काम पर रखते हैं। हम ऐसे लोगों को भी देखते हैं, जो केवल शौक के लिए ऐसे काम करते हैं और निजी अथवा राजनीतिक उद्देश्य के लिए ऑनलाइन झगड़ा करते हैं और आनंद उठाते हैं। आभासी संवाद के लिए दोनों ही हानिकारक हैं। अनाम और वास्तविक नामों वाले ट्रॉल अन्य गंभीर लोगों के उपयोगी वार्तालाप में भंग डाल देते हैं। केवल ट्रॉलिंग के कारण हम अच्छी चर्चाओं से वंचित हो जाते हैं।

सोशल मीडिया मंचों को ऐसी शिकायतों के प्रति अधिक जिम्मेदार बनना चाहिए और दुर्व्यवहार करने वाले अकाउंट बंद कर देने चाहिए। लेकिन बंद करना आंशिक समाधान भर है। सोशल मीडिया मंचों को अनाम यूजरों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए और कुछ भी करना चाहिए। उचित सामाजिक उद्देश्यों वाले अनाम यूजरों की रक्षा की जानी चाहिए ताकि वे जनसामान्य के सामने अपना नजरिया रख सकें। किंतु उनमें तथा अन्य पक्षों के बीच हो रही बातचीत में झगड़ा शुरू कराने अथवा तथ्यों पर संदेह जताने भर के उद्देश्य से बिना बुलाए पहुंचने वालों में बहुत अंतर होता है। क्या सोशल मीडिया मंच अनाम या सामान्य यूजरों को ऐसे वार्तालाप में दाखिल होने से रोक सकते हैं, जहां उन्हें बोलने के लिए बुलाया ही नहीं गया हो। सोशल मीडिया को कभी ऐसा खुला मैदान नहीं बनना चाहिए, जहां ऑनलाइन व्यवहार की प्रभावी निगरानी करना ही भुला दिया जाए।

Image Courtesy: Geoengineering Watch

ट्रॉल्स को मौका ही न दें: पहले मैं देखती थी कि ऑनलाइन दुर्व्यवहार की अति होने पर कई प्रतिष्ठित यूजरों को सच सामने लाने के लिए या परेशान करने वालों का उपहास करने के लिए जवाबी जंग शुरू करनी पड़ती थी। उस समय यह कितना भी अच्छा लगे, आखिर यह नकारात्मक संवाद ही होता है। जब 50,000 फॉलोअरों या मित्रों वाला कोई व्यक्ति 50 फॉलोअरों वाले किसी ट्रॉल से जूझता है तो इससे ट्रॉल की पहचान बढ़ती है और वह अधिक प्रासंगिक बनता जाता है। ऑनलाइन वार्तालाप के बारे में दूसरों की धारणा को बिगाड़ने वाले ये नकारात्मक संवाद ऐसा महसूस कराते हैं मानो सोशल मीडिया पर ट्रॉल्स का ही दबदबा है। बदतमीज आलोचकों से इतर ये ट्रॉल्स हमारे देश में एक विशेष प्रकार के दुष्प्रचार में या तो साझेदार हो गए हैं या ‘कारगर बेवकूफ’बन गए हैं।

किंतु आज मैं देखती हूं कि समझदार यूजर ऐसे ऑनलाइन बदतमीजों को ब्लॉक कर देते हैं। ट्रॉल्स को नजरअंदाज करने के साथ ही सोशल मीडिया यूजरों को अपने गुस्से पर काबू करना चाहिए और डिजिटल आक्रोश दिखाने से पहले दस तक गिनती करनी चाहिए। बिना विचारे प्रतिक्रिया करने वाली मानसिकता निश्चित रूप से चर्चा को बहस में और बहस को तगड़े आभासी झगड़े में बदल देगी, जिससे जुड़े हरेक व्यक्ति दुखी होगा। यहां सौ टके की एक ही बात है कि भीड़ भरे कमरे में होने पर या लोगों के गुट के सामने होने पर ऐसे बयानों का आप क्या जवाब देते? ‘ऑनलाइन रक्तचाप और भावनात्मक तनाव’ कम करने से बाहरी लोग झगड़े का फायदा नहीं उठा पाएंगे।

सही यूजर की सुरक्षा करें: यह जरूरी है कि फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब के पास दुर्व्यवहार, प्रताड़ना, हानि और हिंसा भड़काए जाने की एक जैसी परिभाषा हों। जब यूजर शिकायत करते हैं तब हाथ झाड़ लेने की उनकी नीति से काम नहीं चलेगा। कार्रवाई करने में उनकी अनिच्छा के कारण ही ऑनलाइन असामाजिक व्यवहार बढ़ा है। असहमति और प्रताड़ना के बीच अंतर तय करने और उसका सम्मान करने के साथ ही कंपनियों को दुर्व्यवहार का प्रमाण मिलने पर फौरन हरकत में आना चाहिए। व्यक्तिगत यूजरों को मंचों से इतना अधिकार मिलना चाहिए कि अपने ऑनलाइन वार्तालाप में वे प्रताड़ित करने वाले तत्वों को म्यूट या ब्लॉक कर सकें।

इंटनेट पर व्यवहार संबंधी स्पष्ट नियम नहीं होने के कारण मतभेद बढ़ जाते हैं और विषयों तथा सोशल इंजीनियरिंग के मामले में हम पर खतरा भी बढ़ जाता है। कई लोगों के लिए यह ऑनलाइन और ऑफलाइन दोहरी जिंदगी जीने का ठिकाना बन गया है। व्यवहार के सख्त नियम आज महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सोशल मीडिया प्रतिदिन और हर समय इस्तेमाल होने वाला माध्यम बन गया है। व्यवहार के कमजोर नियमों से हम आमने-सामने के मानवीय वार्तालाप को जोखिम में डाल रहे हैं। जैसा ओबामा ने अपने विदाई भाषण में कहा था, “यदि आप इंटरनेट पर अजनबियों से बहस करते-करते थक गए हैं तो उनमें से किसी से असल जिंदगी में बात करने की कोशिश कीजिए।”

फर्जी समाचारों से निपटनाः नकारात्मक समाचार जंगल में आग की तरह फैलते हैं। फर्जी नकारात्मक समाचार और भी तेजी से फैलते हैं। सोशल मीडिया कंपनियों को यह समझना होगा कि स्पष्ट रूप से फर्जी दिख रहे समाचारों को तेजी से फैलने देने में कोई फायदा नहीं है। उन्हें फैलने की इजाजत देकर सोशल मीडिया कंपनियां ऐसे माहौल को बढ़ावा दे रही हैं, जहां सोशल इंजीनियरिंग फल-फूल सकती है और विचारों को नकारात्मक तरीके से तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है तथा सामाजिक खाई का दुरुपयोग किया जा सकता है। अगर तथ्यों के समान स्रोत पर ही हम असहमत होंगे तो एकजुट कैसे हुआ जा सकेगा?

राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति खतरा कम करनाः ऑनलाइन वार्तालाप को साफ सुथरा रखने से वार्तालाप अनुपयोगी या उबाऊ नहीं हो जाते। आभासी दुनिया में जोश से भरी उग्र बहसों में भी सामान्य शिष्टाचार, विनम्रता और जवाबदेही को कभी नहीं भुलाना चाहिए। यह सच है कि आमने-सामने के वार्तालाप में हम गालियां, धममियां कम देते हैं और दुर्व्यवहार अथवा प्रताड़ना का प्रयोग भी कम करते हैं। समझदार मनुष्य सदैव लगातार सुधार का बीच का रास्ता पकड़ता है। इससे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति जोखिम भी कम होता है।

असामाजिक तत्व, नकारात्मक प्रचार करने वाले सोशल इंजीनियरिंग वाले जिस विषय का इस्तेमाल करते हैं, उससे हमारे राष्ट्रीय हितों के ताने-बाने और एकता पर हमला होता है और वे कमजोर होते हैं। ऐसे विषयों और कहानियों के जरिये छल-कपट का खतरा कम करने के लिए अपने सोशल मीडिया संवाद को शिष्ट बनाना आवश्यक है।

उमा सुधींद्र

(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of BharatShakti.in)


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Uma Sudhindra
Uma Sudhindra is an entrepreneur, current affairs observer, with a focus on domestic & global politics & defence. An alumnus of Fergusson College and JNU, she has been writing about international relations, political systems and the humane aspect of armed forces. She contributes to two social causes - skilling Ex Service Men through Akhil Bharatiya Poorva Sainik Seva Parishad and also runs her own NGO, which empowers women by addressing their safety & harassment issues. She is part of the Forum for Integrated National Security (FINS), a think tank based in Mumbai.

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