राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अहम है सीडीएस का पद


कारगिल सेक्टर में घुसपैठ हुई- विडंबना यह थी कि देश इसके बारे में जानता था, फिर भी उसे कुछ मालूम नहीं था- यह राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए एक झटके की तरह था। इसने देश के सुरक्षा तंत्र में एक बड़ी कमी को उजागर किया। सेना ने घुसपैठियों को जल्दी ही अपने देश की जमीन से खदेड़ दिया। इस तरह 1999 की 26 जुलाई को विजय दिवस घोषित किया गया।

 पहली बार, देश की निर्वाचित सरकार ने तत्काल हमारे सुरक्षा तंत्र की कमियों की पहचान करने के लिए समीक्षाएं शुरू कर दीं। समितियां बनाई गईं, टास्क फोर्स गठित हुए। कारगिल रिव्यू कमिटी (केआरसी) ने कहा, नेता बगैर किसी जिम्मेदारी के सत्ता का लुत्फ उठाते हैं, नौकरशाही बिनी किसी उत्तरदायित्व के सत्ता का इस्तेमाल करती है और सेना बगैर किसी दिशानिर्देश के जिम्मेदारी ओढती है। सरकार ने तेजी से केआऱसी की सिफारिशों पर अमल किया और यथास्थिति को बदल दिया। इसलिए आज हम दोबारा उठ खड़े हुए एक मजबूत भारत को देख पा रहे हैं।

संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति सशस्त्र सेनाओं का सुप्रीम कमांडर है और संसद देश की रक्षा तथा सशस्त्र सेनाओं से जुड़े सारे पहलुओं को देखती है।

1947 में तीन वरिष्ठ आईसीएस अधिकारियों की एक समित ने रक्षा मंत्रालय के गठन का सुझाव दिया था। लॉर्ड माउंटबेटन ने यह सुनिश्चित किया कि तीनों सेना प्रमुखों की हैसियत रक्षा सचिव से ऊपर रखी जाए। उन्होंने अपने चीफ ऑफ स्टाफ लॉर्ड हेस्टिंग्स इज्मे से यह भी कहा कि भारत के लिए एक उच्चतर रक्षा संगठन का खाका तैयार करें।

लॉर्ड इज्मे ने आईसीएस कमिटी द्वारा सुझाए गए स्ट्रक्चर के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की। फिर भी, राष्ट्रीय रक्षा मामलों की देखभाल के समन्वित प्रयास सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने कई समितियां गठित कर दीं। ये थीः 

  • रक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (डीसीसी) 

सुरक्षा से जुड़े मामलों की जो सबसे उच्चस्तरीय समिति गठित की गई वह थी डीसीसी, जिसे आज सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) के रूप में जाना जाता है।

  • रक्षा मंत्री की समिति 

रक्षा मंत्री की अध्यक्षता वाली इस समिति में तीनों सेना प्रमुख, रक्षा सचिव और एफए (डीएस) बतौर सदस्य शामिल होते थे। यह रक्षा मंत्रालय का सर्वोच्च नीति निर्धारक अंग था।

  • चेयरमैन चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी (सीओएससी)

सीओएससी सशस्त्र सेनाओं की सर्वोच्च इंटर-सर्विस पॉलिसी मेकिंग कमिटी (नीति निर्माता समिति) थी। तीनों सेना प्रमुखों को बराबर की हैसियत दी गई थी। इसकी अध्यक्षता बारी बारी से तीनों को मिलती थी। अध्यक्ष की जिम्मेदारी थी संचालन से जुड़े रणनीतिक मसलों पर सामूहिक प्रफेशनल सलाह रक्षामंत्री तक पहुंचाना।

सुरक्षा संबंधी निर्णय प्रक्रिया से सेना को धीरे-धीरे दूर करना

आजाद भारत में सेना को व्यवस्थित ढंग से सुरक्षा मामलों की निर्णय प्रक्रिया से अलग करके उसे राष्ट्रीय सुरक्षा का लक्ष्य हासिल करने का एक औजार मात्र बना दिया गया। 1947 से कारगिल युद्ध तक सेना को निर्णाय प्रक्रिया से अलग करने के उद्देश्य से लिए गए विभिन्न फैसले इस प्रकार हैः

    • आजादी के ठीक बाद 1947 में ही भारत की सशस्त्र सेनाओं के कमांडर इन चीफ का पद समाप्त कर दिया गया। 
    • 1952 में सर्विस हेडक्वार्टर्स को रक्षा मंत्रालय के संलग्न कार्यालय का नाम दिया गया और इस तरह सरकार में सर्वोच्च स्तर पर नीति निर्माण के दौरान सलाह देने और नुमाइंदगी करने वाली उनकी भूमिका समाप्त कर दी गई। 
    • 1955 में सेना प्रमुखों के पदनाम को भी संबंधित सेना के कमांडर-इन-चीफ से बदलकर चीफ ऑफ स्टाफ कर दिया गया। 
    • 1961 में बिजनेस रूल्स के ऐलकेशन ऑफ बिजनेस एंड ट्रांजैक्शन में बदलाव लाते हुए भारत की रक्षा की जिम्मेदारी रक्षा सचिव के अंधीन रक्षा विभाग को सौंप दी गई।  
    • 1962 में कैबिनेट सचिव की नियुक्ति की गई जिसकी हैसियत सेना प्रमुखों से ऊपर निर्धारित की गई। 
    • 1970 में राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमिटी (सीसीपीए) के एजेंडे पर सुरक्षा से इतर विषय भी डाल दिए गए। नतीजतन, सेना प्रमुखों को जरूरत के मुताबिक आमंत्रित किया जाने लगा।
    • 1976 से 1991 के बीच कैबिनेट सचिवालय का मिलिट्री विंग रक्षा मंत्रालय के पास भेज दिया गया जिससे रक्षा मामलों में सर्वोच्च स्तर की निर्णय़ प्रक्रिया से चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी का जुड़ाव खत्म हो गया। 
    • रक्षा सचिव की अगुआई में रक्षा विभाग ने सीओएससी से जुड़े सारे मामले खुद देखने शुरू कर दिए। नतीजा यह कि रक्षा सचिव का पद व्यवहार में सीडीएस के स्तर का हो गया, जबकि प्रोटोकॉल के मुताबिक यह सेना प्रमुखों से नीचे था। 
  • साठ के दशक के आखिर में रक्षा मामलों की दो समितियों ने टिप्पणी की, नागरिक सत्ता के आगे सेना की अधीनता की व्याख्या राजनीतिक संदर्भ में होनी चाहिए नौकरशाही के अर्थ में नहीं। जिस बात का पूरी गंभीरता से ध्यान रखा जाना चाहिए वह है काम का दोहराव, जो मेहनत और प्रतिभा के साथ-साथ वित्तीय अर्थों में भी बर्बादी है। ऐसा दोहराव ज्यादातर समन्वय और निरीक्षण के नाम पर होता है। इससे कुछ हासिल नहीं होता सिवाय विलंब के।  
  • समिति ने सीडीएस की अवधारणा का भी समर्थन किया। समिति ने कहा, रक्षा तंत्र पर नागरिक सत्ता के नियंत्रण के सिद्धांत की व्याख्या इस रूप में होनी चाहिए कि उसका मतलब नौकरशाही या सिविल ऑफिसरों का नियंत्रण नहीं बल्कि संसद और कैबिनेट के जरिए राजनीतिक नियंत्रण ही हो।’ 
  • केआऱसी रिपोर्ट पर अमल होने तक संलग्न कार्यालयों के रूप में सर्विस हेडक्वार्टर्स की भूमिका रक्षा मंत्रालय के सहायक के रूप में सिमट कर रह गई थी, यहां भी वे रक्षा मंत्रालय से पूरी तरह बाहर थे और फाइलों के जरिए ही उनसे संपर्क कर सकते थे। सेना प्रमुखों का प्रशासनिक प्रभाव इस हद तक कम हो गया था कि रक्षा मंत्री को भेजी गई उनकी सिफारिशें भी नियमित जांच और कॉमेंट के लिए डायरेक्टर लेवल पर भेजी जाने लगी थीं। 50 वर्षों तक सशस्त्र सेनाओं को ऐसी अन्यायपूर्ण और पंगु व्यवस्था में रहना पड़ा और कारगिल जैसी अनर्थकारी घटना के बाद ही स्थितियां कुछ बदलनी शुरू हुईं,एक सेना प्रमुख ने कहा। 

कारगिल रिव्यू कमिटी (केआऱसी)

कारगिल रिव्यू कमिटी का गठन राष्ट्रीय सुरक्षा की हिफाजत के लिए जरूरी उपाय सुझाने के वास्ते किया गया था। इसने रक्षा प्रबंधन की स्थिति से जुड़े तमाम पहलुओं पर पूर्ण और विस्तृत अध्ययन से युक्त अपनी रिपोर्ट 15 दिसंबर 1999 को सौंपी जिसे 28 फरवरी 2000 को संसद में रखा गया। इसने संपूर्ण सुरक्षा व्यवस्था की विस्तृत और त्वरित समीक्षा की जरूरत बताई थी।

केआरसी रिपोर्ट ने भारत की सुरक्षा प्रबंधन व्यवस्था में कई गंभीर खामियां उजागर कीं। खास तौर पर इंटेलिजेंस, बॉर्डर मैनेजमेंट और डिफेंस मैनेजमेंट में। इसने संपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था की जल्द से जल्द विस्तृत समीक्षा करने पर जोर दिया। 

मंत्रिसमूह की रिपोर्ट

सरकार ने 17 अप्रैल 2000 को ही एक मंत्रिसमूह का गठन कर दिया ताकि वह राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था की संपूर्णता में समीक्षा करे, खासकर केआरसी की सिफारिशों पर विचार करे और अमल के लिए ठोस प्रस्ताव तैयार करे।

रक्षा प्रबंधन पर बनी टास्कफोर्स ने 30 सितंबर 2000 को अपनी 75 सिफारिशें पेश कीं जिनमें से सीडीएस पद सृजित किए जाने को छोड़कर तमाम सिफारिशें अमल में आ गईं

नरेश चंद्र समिति

एक बार फिर जून, 2011 में भारत सरकार ने शक्तिशाली टास्कफोर्ट गठित करने की घोषणा की जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था की मौजूदा प्रक्रियाओं और व्यवहारों की समीक्षा करके राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के उपाय सुझाना था। टास्कफोर्स ने मई 2012 में 400 सिफारिशों वाली अपनी क्लासिफाइड रिपोर्ट पेश की। 

15 अगस्त 2019 को लाल किले से प्रधानमंत्री का भाषण

इन दिनों अक्सर कहा जाता है, आउट ऑफ द बॉक्स सोचिएहमारा राष्ट्रीय नेतृत्व इससे कहीं आगे जाता है और वे दूसरे ग्रह से सोचते हैं क्योंकि उनके फैसले इस ग्रह के मनुष्यों को झटका देते हैं औऱ यही वजह है कि भारत चमक रहा है।

राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रधानमंत्री बोलेः

  •  ‘’यह महत्वपूर्ण है कि हम सुधारों की दिशा में समय पर कदम उठाएं…’’ 
  • सैन्य संरचना, सैन्य शक्ति और सैन्य संसाधनों में सुधार लाने के सवाल पर लंबे समय से विचार विमर्श चल रहा है। कई आयोग गठित किए गए और सभी रिपोर्टों ने थोडे बहुत अंतरों के साथ एक जैसी बातें कहीं हैं…
  • तीनों सेनाओं के बीच वास्तव में तालमेल है… ये भी अपने अपने हिसाब से आधुनिकता चाहती हैं…”
  • दुनिया युद्ध की गुंजाइश और प्रकृति के लिहाज से भी बदल रही है। यह तकनीक आधारित हो रही है… भारत को भी इस मामले में एकांगी नजरिया नहीं रखना चाहिए। हमारी समस्त सैन्य शक्ति को पूरे तालमेल के साथ काम करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। 
  • अगर कोई भी एक सेना बाकी दोनों से आगे निकल गई तो स्थिति ठीक नहीं रहेगी। तीनों को एक गति और लय में चलना चाहिए। उनमें अच्छा तालमेल होना चाहिए और वह हमारे लोगों की उम्मीदों तथा आकांक्षाओं के अनुरूप होनी चाहिए। यह आज की दुनिया के बदलते सुरक्षा परिवेश के अनुकूल होना चाहिए। 
  • आज हमने यह फैसला किया है कि हमारे पास चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ-सीडीएस होगा। इस पद के सृजन से तीनों सेनाओं को सर्वोच्च स्तर पर प्रभावी नेतृत्व मिलेगा। 

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और रक्षा मामलों के विभाग के सृजन की घोषणा सशस्त्र सेनाओं के लिए ऐतिहासिक थी और इसने सशस्त्र सेनाओं की दशकों से लंबित पड़ी मांग पूरी कर दी थी।

दुनिया की कोई भी लोकतांत्रिक सरकार सेना को राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र के केंद्र में उस तरह से नहीं ला सकी थी जैसे नरेंद्र मोदी सरकार ने सैन्य ऑफिसरों को सेवाकाल के दौरान ही सेना तथा नौकरशाही की दोहरी भूमिका सौंपकर ला दिया है।

सीडीएस के पास तीन-तीन भूमिकाएं हैः

  • अव्वल तो वह चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ हैं
  • दूसरे, चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी के परमानेंट चेयरमैन हैं 
  • तीसरे, रक्षा मंत्रालय के एक स्वतंत्र विभाग के सचिव भी हैं।

सचिव, रक्षा विभाग के कार्यक्षेत्र से अलग किए गए सचिव, रक्षा मामलों के विभाग (डीएमए) का कार्यक्षेत्र इस प्रकार हैः

  •  केंद्र की सशस्त्र सेनाएं यानी स्थल सेना, नौसेना और वायुसेना।
  • थल सेना, नौसेना, वायुसेना और डिफेंस स्टाफ हेडक्वार्टर्स को मिलाकर रक्षा मंत्रालय का एकीकृत हेडक्वार्टर्स 
  • टेरिटोरियल आर्मी।
  •  थलसेना, नौसेना और वायुसेना से जुड़े कार्य।
  • खरीद (प्रॉक्युरमेंट) पूंजी अधिग्रहण से संबंधित सेवाओं को छोड़कर।
  •  तीनों सेनाओं की जरूरतों को एकीकृत करते हुए संयुक्त योजनाओं के जरिए इनकी स्टाफिंग, प्रशिक्षण और खरीदी की प्रक्रियाओं में एकरूपता को बढ़ावा देना।
  •  जॉइंट/थिएटर कमांड स्थापित करने के साथ ही ऑपरेशंस में एकरूपता लाते हुए मिलिट्री कमांड के पुनर्गठन को आगे बढ़ाना ताकि उपलब्ध संसाधनों का सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल हो सके। 
  • सेनाओं में देसी हथियारों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

पिछले दो साल और नौ महीनों के दौरान सैन्य मामलों के विभाग के जरिए सीधे वर्दीधारी सैनिकों ने सैन्य मामले निपटाए हैं और इस तरह सैन्य कदमों से जुड़े राष्ट्रीय सुरक्षा के सवालों पर फैसले के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व को तथ्यात्मक सहायता उपलब्ध कराई है। इससे सुधारों को नई रफ्तार मिली है जो 15 अगस्त 2019 को लालकिले से दिए गए माननीय प्रधानमंत्री के भाषण में झलकी मुख्य चिंता थी।

एयर मार्शल (डॉ.) राजीव सचदेव (रिटायर्ड)


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Air Marshal (Dr) Rajeev Sachdeva AVSM, PhD
Air Marshal (Dr) Rajeev Sachdeva, in his last appointment, served as Deputy Chief of Integrated Defence Staff and also officiated as Additional Secretary (Air) at DMA, under CDS, MoD. Commissioned on 11 Dec 1981, was alumnus of FIS, CDM and NDC. Cat ‘A’ Qualified Flying Instructor was an Air Force Examiner with over 7200 hours on various Transport and Trainer aircraft. He holds a Doctorate and a Masters in Management, Certified ‘A’ Project Manager by IPMA, Switzerland, is a Distinguished Fellow at USI & i2p2M and Certified Management Instructor by AIMA. Air Officer has written papers for various journals and lectured in Military, Civil and Academic Institutions. Doctor of Philosophy was in Business Management at Osmania University and the research topic was “Strategies to Prevent and Avoid Air Accidents in Transport Fleet of the Indian Air Force: An Integrated Approach”. Important Appointments held by him includes Command of An-32 Sqn, AOC Chandigarh, CI at Fixed Wing Training Faculty, WAC Ops II A, Centre Director (Aviation) NTRO and SASO, HQ SAC. A truly Purple Officer who, has served in all the four verticals of HQ IDS at appointments of DACIDS (Regional-DIA), ACIDS (ICT & Joint Ops), DCIDS (Ops), DCIDS (PP & FD) and Commandant College of Defence Management. Co-authored DAP-2020, DPM-2020, DFPDS-2020 and the first Negative Import List at DMA, Other Joint appointments were that of Secy to Union War Book and the RM’s Op Directive; Member Secy of Defence Acquisition Council; Chairman of JOCOM, SCAPCC, Integrated Space Cell of Armed Forces and TET for BMD by DRDO; Co-Chair DIATF with US for development of niche capabilities; Officiated as Chairman of DCMG and also steered the projects for NFS & DCN. The officer was awarded Ati Vishist Seva Medal in 2016 and was commended by the Chief of Air Staff in 2000.

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