नौसेना प्रमुख एडमिरल हरि कुमार ने अपने भाषण की शुरुआत यह कहते हुए की, ’चुनौतीपूर्ण वर्तमान से अनिश्चित भविष्य की ओर जाते हुए भारत और विश्व के लिए सहयोग ही सबसे बड़ा सिद्धांत हो सकता है।’ वह भारतशक्ति डॉट इन (Bharatshakti.in) की ओर से 20 सितंबर को नई दिल्ली में आयोजित सालाना कार्यक्रम इंडिया डिफेंस कॉन्क्लेव 2022 (आईडीसी) में बोल रहे थे। इस कार्यक्रम में तीनो सेना प्रमुख, एनएससीएस के मिलिट्री एडवाइजर, बाबा कल्याणी और जेडी पाटिल समेत इंडस्ट्री के दिग्गज, भारत में तैनात 70 से ज्यादा डिफेंस अटैशे, राजनयिक और बड़ी संख्या में मिलिट्री तथा इंडस्ट्री प्रफेशनल्स मौजूद थे।
नौसेना प्रमुख ने कहा कि समुद्र साझा वैश्विक विरासत है। इसने सभी राष्ट्रों को सहयोग का पाठ पढ़ाया है। विभिन्न देशों के सहयोग की भावना से एक साथ आने के बेहतरीन उदाहरण समुद्र ने ही मुहैया कराए हैं। किसी नौसैनिक के लिए डेक पर खड़े होकर मर्चेंट जहाजों को जाते देखना आम बात होती है। ये जहाज बनते किसी खास देश में हैं, चलते किसी अन्य देश के झंडे तले हैं, माल कुछ अन्य देशों में लोड करवाते हैं और उतारते अन्य देशों में हैं। यही नहीं, इन जहाजों को चलाने वाले क्रू मेंबर्स तो कई संप्रभु देशों के लोग होते हैं।
नौसेना प्रमुख ने कहा कि समकालीन सुरक्षा चुनौतियों की विशेषता इसके सर्वव्यापक चरित्र में है। उन्होंने कहा, ‘ये चुनौतियां पारंपरिक दायरे को पार करते हुए स्टेट्स, नॉनस्टेट्स और प्राइवेट एक्टर्स के जटिल जाल में उलझ कर विविध टेक्निकल क्षमताओं और नए-नए संघर्षों के जरिए हमारे राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा को उतना ही जटिल बना रही हैं।’
मोटे तौर पर, नए-नए क्षेत्रों में संभावनाओं की तलाश के चलते खतरों का रेंज काफी विस्तृत हो गया है। नौसेना प्रमुख के मुताबिक दो मोर्चों का ध्यान रखना अत्यंत जरूरी है। ‘आंतरिक तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा उद्यम का स्वरूप समस्त राष्ट्र के नजरिए वाला नहीं बल्कि समस्त समाज के नजरिए वाला होना चाहिए जिसमें इंडस्ट्री का योगदान भी शामिल होना चाहिए,’ एडमिरल ने कहा।
नौसेना प्रमुख ने बाहरी मोर्चे की जरूरतों पर भी विस्तार से रोशनी डाली, ‘समान विचार वाले राष्ट्रों को जहां संभव हो अपनी क्षमताओं में सुधार लाने के लिए सहयोग और सामंजस्य को मजबूती देनी चाहिए।’ विभिन्न देशों के बीच तालमेल सबसे आवश्यक है। और अलग-अलग देशों में सहयोगात्मक सामंजस्य बने रहने के लिए सबसे जरूरी है विश्वास। यह मुख्य आधार का काम करता है। एक राष्ट्र के रूप में हमारा नजरिया चार ‘स’ में झलकता है। ये हैं- संवाद, सहयोग, शांति और समृद्धि।
कोविड महामारी के दौरान हमारा रिस्पॉन्स इस बात का अच्छा उदाहरण है कि रिश्तों में भरोसा, सम्मान और आश्वस्ति कैसे पैदा की जा सकती है। हमने टीके, दवाएं और प्रोटेक्टिव क्लोदिंग दूर-दूर तक पहुंचाई। इस क्षेत्र के हमारे दोस्तों ने जवाब में हमारे साथ संसाधन शेयर किए, खासकर लिक्विड ऑक्सीजन, जब हमें उसकी बेहद जरूरत थी।
हमारा घरेलू रक्षा उत्पादन जबर्दस्त ढंग से बढ़ रहा है। हम आपस में मिलकर क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा दे सकते हैं। आधुनिक भारतीय उत्पाद इस क्षेत्र में इस्तेमाल हो जाएंगे।
एडमिरल से पूछा गया कि चीनी नौसेना के बरक्स भारतीय नौसेना के विकास को वह किस तरह से आंकते हैं। नौसेना प्रमुख ने बताया कि इसे आंकने का सही तरीका यह है कि पहले देखें अपने राष्ट्रीय हित क्या हैं, फिर उनकी सुरक्षा के लिए आवश्यक संसाधन हासिल करें।
जहाजों के निर्माण की दृष्टि से नौसेना ने देसीकरण की प्रक्रिया 1961 में ही शुरू कर दी थी जब पहली पेट्रोल बोट आईएनएस अजय, देश में बनाई गई थी। तब से हमारी क्षमता कई गुना बढ़ गई है। हमने कॉर्वेट्स, फ्रिगेट्स, डिस्ट्रॉयर्स, लैंडिंग शिप्स और अब एयरक्राफ्ट कैरियर तक बना लिए। कैरियर वर्ल्ड क्लास है और इसने बड़ी संख्या में भारतीय ओईएम (मौलिक हथियार निर्माता), एमएसएमई और सहायक युनिटों को विशेषज्ञता हासिल करने का अवसर प्रदान किया।
एयरक्राफ्ट कैरियर पर मौजूद विमानों का मसला भी उठा। नौसेना प्रमुख ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री से वादा किया है कि 2047 तक नौसेना सौ फीसदी आत्मनिर्भर हो जाएगी। वर्तमान में नौसेना ट्विन इंजिन डेक बेस्ड फाइटर के लिए कोशिश कर रही है। उस समय तक हमारी पसंद होगी मिग 29के। लेकिन हो सकता है मिग 29 तत्काल उपलब्ध न हो सके। इसलिए स्टॉप गैप अरेंजमेंट के तौर पर राफेल या एफ 18 आ सकते हैं। ट्रायल पूरे हो चुके हैं। नतीजों का इंतजार है। ट्विन इंजिन 2026 तक लाने की बात है। कम से कम प्रोटोटाइप तो जरूर।
एडमिरल ने तीसरे कैरियर के मसले को भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि पहली जरूरत है दूसरे कैरियर को ऑपरेशनल करना। इसके बाद उस मुद्दे को देखा जाएगा। मानवरहित सिस्टम्स (अनमैन्ड कॉम्बैट एय़रिल वीइकल) का भी जायजा लेने की जरूरत है। मैन्ड और अनमैन्ड को मिलाकर देखें तो हमारी जरूरतें किस हद तक पूरी होती हैं? क्या सचमुच हमें तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत है? अगर हां तो किस तरह के कैरियर और शिप्स की?
एक और मसला यह है कि कोचिन शिपयार्ड जैसे प्रतिष्ठानों ने काफी विशेषज्ञता हासिल कर ली है। इसे न केवल बरकरार रखने की बल्कि और बढ़ाते चलने की जरूरत है। क्या इनके लिए यह संभव है कि ये दूसरे देश के लिए कैरियर बनाएं?
यूक्रेन युद्ध ने भी कई सबक दिए हैं। नई टेक्नॉलजी का इस्तेमाल, फायबर, गोला बारूद, सप्लाई चेन मैनेजमेंट, ब्लॉकेड, आत्मनिर्भरता की जरूरत, परस्पर निर्भरता, सोशल मीडिया का इस्तेमाल- इन सब पर नए ढंग से सोचने की जरूरत है।
युद्ध के कारण पैदा हुई समस्याओं का जहां तक सवाल है तो आज की तारीख में नौसेना के सामने ऐसी कोई समस्या नहीं है। नौसेना ने भारतीय उद्योग जगत की मदद लेने के लिए कई कदम उठाए हैं।
ब्रिगेडियर एस के चटर्जी (रिटायर्ड)