संपादक की टिप्पणी
निवर्तमान सेना प्रमुख ने 31दिसंबर, 2016 को नये सेना प्रमुख को अपना कार्यभार सौंपा। जनरल बिपिन रावत अब किसी भी अन्य सेना के मुकाबले सर्वाधिक विविध परिस्थितियों में काम करने वाले 13 लाख सैनिकों की सेना के मुखिया हैं। वे क्या चुनौतियाँ हैं जिनका उन्हें सामना करना है? लेफ्टिनेंट जनरल अजय सिंह (सेवानिवृत्त) ने चुनिंदा चुनौतियों को सूचीबद्ध किया है और चुनिंदा उत्तर सुझाये हैं।
सैन्य प्रमुख को पूरे करने के लिए उनके काम
जनरल बिपिन रावत ने देश और 13 लाख सैनिकों की मजबूत सेना, जो हर बात के लिए उनकी ओर देखेगी, की जिम्मेदारी के साथ भारतीय सेना के प्रमुख के रूप में कार्यभार संभाल लिया है। उन्होंने दो समान रूप से उत्कृष्ट जनरलों के ऊपर तवज्जो पाकर चुने जाने की असामान्य परिस्थितियों में शुरुआत की है लेकिन यह सरकार का विशेषाधिकार है। लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बख्शी इस बात को समझ चुके हैं और उन्होंने नये सेना प्रमुख को शुभकामनाएं देते हुए अपनी सेवा जारी रखने का समर्पण दिखाया है। जनरल ने एक आदर्श प्रस्तुत किया है और हमें उसका सम्मान करना चाहिए। समय आने पर सरकार द्वारा उनके नाम पर स्टाफ चीफ्स ऑफ़ अप्वाइंटमेंट कमेटी के स्थायी चेयर मैन के लिए विचार किया जा सकता है।
भविष्य में, इस तरह की पुनरावृत्ति से बचने के लिए ऐसे चयन के लिए मानक निर्धारित किये जा सकते हैं। कुछ मीडिया चैनलों/तथाकथित विशेषज्ञों द्वारा बताये गये कारण पेशेवर आदर्शों के अनुकूल नहीं हैं। मुझे विश्वास है कि जनरल रावत स्पष्टता और ध्यान के साथ शुरुआत करेंगे।
सैन्य प्रमुख एक विशेष खंड के नहीं, बल्कि इस महान संस्था के मुखिया हैं। जनरल रावत को ऐसे किसी भी व्यक्ति या बात से दूर रहना चाहिए जो संकीर्ण हो। इस एक बात का यदि वे अक्षरश: पालन करते हैं तो यह उन्हें सेना का लाड़ला बना देगा, यह ऐसी बात है जिसे उनके कुछ पूर्ववर्ती चाहते ही पाये गये। दो फौरी सुझाव : एक समान सामान्य कैडर पोशाक और पद पर सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति, विशेष रूप से स्टार रैंक में। अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर आगे चर्चा की गयी है।
- आंतरिक जड़ता – यथास्थिति के नजरिये को चुनौती देना। कई अध्ययनों के बावजूद भारतीय सेना यथास्थितिवाद से बंधी हुई है। सैन्य प्रमुख कायाकल्प अध्ययन – 2009 पर से धूल झाड़ने के इच्छुक हो सकते हैं और ब्लू प्रिंट को आगे बढ़ा सकते हैं। इसमें, अधिकांश लोग उनसे कहेंगे कि कैसे/क्यों यह नहीं किया जा सकता है। उन्हें एक अच्छे मुखिया का प्रमाण देना पड़ेगा। आज हमारी जिस तरह की संरचना है, वह तमाम खोखलेपन को बढ़ाती है। यदि हम नख-शिख अनुपात को संतुलित नहीं करेंगे और सुधारेंगे नहीं, तो सेना को संभालना मुश्किल हो जायेगा। वह लेफ्टिनेंट जनरल शेखातकर अध्ययन की संस्तुतियों पर भी विचार कर सकते हैं लेकिन मातृ अध्ययन फिर भी अत्यंत सुविस्तृत एवं व्यापक कायाकल्प अध्ययन बना रहेगा।
- परिचालनात्मक (ओपी) संरचनाओं और त्वरित प्रतिक्रिया क्षमताओं में गतिशीलता के अभाव को भी पैना करने की जरूरत है। डिवीजन हमारी ओपी संरचना की नींव रहा है। दुनिया हल्के और ज्यादा जोशीले संगठनों की ओर बढ़ गयी है। नये कायाकल्प अध्ययन में नयी अवधारणाओं का विस्तार से परीक्षण किये जाने की जरूरत है। कायाकल्प अध्ययन में कई अन्य सुझाव दिये गये हैं जिनका गंभीरता से अध्ययन किये जाने की जरूरत है।
- हमारी मानव संसाधन नीतियों के कारण विश्वास का संकट भी उत्पन्न हुआ है। सामंजस्य का अभाव और पेटी वर्चस्व की धारणा भी है। सैन्य प्रमुख पारदर्शी हो कर और यहाँ तक कि सुलभ बन कर विश्वास बहाल कर सकते हैं। इस कार्य में धारणाएँ महत्व रखती हैं।
- कुछ वर्षों से सरकार/नागरिक संस्थाओं में सैन्य बलों का कद घटने की धारणा भी बढ़ती जा रही है। इस पर भी सरकार के साथ काम कर के सुधार करने की जरूरत है।
- हमारे पास अत्यधिक प्रशिक्षण प्रतिष्ठान हैं – इनका पुनर्गठन किये जाने और मोर्चे पर तैनात सेना की जरूरतों के और अधिक अनुकूल बनाये जाने की आवश्यकता है। कुछ सुझाव इस तरह हैं :
- रेजिमेंटल सेंटरों (गोरखा की मात्र 39 बटालियन की क्षमता के लिए चार प्रशिक्षण प्रतिष्ठान) समेत कुछ प्रशिक्षण प्रतिष्ठानों का संयोजन
– मोर्चे पर तैनात सेना में वृहत्तर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पाठ्यक्रमों की संख्या घटाना।
– प्रशिक्षण ऑडिट और यहाँ तक कि सुरक्षा ऑडिट, खास कर ओपी क्षेत्रों में, शुरू करना।
– अग्रणी अर्थात ब्रिगेड/बटालियन को उनका उपयुक्त समय दे कर उनके प्रशिक्षण पर वृहत्तर ध्यान।
– अधिकारियों की कमी से निपटने के लिए व्यक्ति प्रशिक्षण पदों पर सेवानिवृत्त अधिकारियों/जेसीओ/एनसीओ का वृहत्तर उपयोग करना।
– मुख्यालय के सैन्य प्रशिक्षण कमांड के साथ अंत:स्थापित सैन्य प्रशिक्षण निदेशालय। दोहरे कार्यवहन के जरिये उनके द्वारा सैन्य मुख्यालय की जरूरतों की भी पूर्ति हो सकती है।
– सामान्य की बजाय ओपी विचार-विमर्श/कार्यक्रमों को पुनर्जीवित करना, ताकि हम 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए ज्यादा बेहतर ढंग से तैयार हों। संवेदनशील मामला होने के कारण, मैं इस विषय पर ज्यादा नहीं लिख रहा हूँ।
– आखिर में, ज्ञान (क्या) और प्रशिक्षण (कैसे) के बीच एक संतुलित दृष्टिकोण।
- लॉजिस्टिक्स एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिस पर तत्काल ध्यान दिये जाने की जरूरत है। थियेटराइज्ड लॉजिस्टिक्स और लॉजिस्टिक्स कॉर्प्स शुरुआती अवधारणाएँ हैं जिसे लागू किये जाने की जरूरत है। डीजीपीपी के कायाकल्प अध्ययन में इस पर एक पूरा अध्याय समर्पित है। इसका अनुसरण भी शुरू किया गया लेकिन पदक्रम में परिवर्तन के कारण यह सिलसिला खत्म हो गया। हमें गैर-महत्वपूर्ण वस्तुओं के भंडारण को घटाने और व्यावहारिक ओपी आवश्यकताओं को भी परिभाषित करने की जरूरत है। ओपी भंडारण को न्यूनतम सुनिश्चित स्तर तक लाने से शुरुआत करनी चाहिए। आउटसोर्सिंग पर वृहत्तर ध्यान, किराये के नागरिक परिवहन विकल्प के दोहरे उपयोग और चिकित्सा सुविधाओं के लिए निकटवर्ती अस्पतालों पर भी ध्यान देना चाहिए।
- सैन्य सचिव (एमएस) शाखा को सैन्य प्रमुख के विशेष ध्यान की जरूरत है। यद्यपि यह बढ़िया ढंग से संचालित हैलेकिन इसमें वृहत्तर पारदर्शिता और ज्यादा उत्साही मूल्याँकन प्रणाली की जरूरत है। जब मैं साउदर्न कमांड में था, तो मैंने 360 डिग्री मूल्याँकन का सुझाव दिया था जिसे अब नागरिक प्राधिकरणों ने भी उच्च स्तर पर अंगीकार कर लिया है। यह एमएस की जिम्मेदारी भी है कि वे वरिष्ठ भावी अधिकारियों को संतुलित विवरण दें ताकि वे वरिष्ठ महत्वपूर्ण पदों को संभालने के लिए तैयार हों।
- पारंपरिक युद्ध विशेषज्ञता की कीमत पर सीआई/एलसी पर ध्यान केंद्रित करने की वर्तमान प्रवृत्ति शुभ संकेत नहीं है। सैन्य बलों की मुख्य भूमिका राष्ट्रीय एकता/राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए अगर अन्य उपाय विफल होते हैं तो युद्ध के लिए तैयार रहना है। इस विशेषज्ञता के लिए जीवन भर की तैयारी की जरूरत होती है और इसे रातभर में हासिल नहीं किया जा सकता। हमने इस क्षमता और विशेषज्ञता का खतरनाक स्तर तक अवमूल्यन कर दिया है।
- देश की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण होने के नाते, हमें वरिष्ठ अधिकारियों को विकसित करने की जरूरत है जो अविचल हो, दूरदर्शी हों और जो सैन्य क्षमताओं के उच्चतम मानदंडों के अनुरूप हों और जो आधुनिक युद्ध स्थितियों के भार को वहन करने के लिए धैर्य, चारित्रिक क्षमता और मानसिक लचीलापन रखते हों। सेना के जनरलों से देश के रणनीतिक विकल्पों के दायरे के विस्तार की उम्मीद की जायेगी, न कि बाधाओं की।
- सैन्य प्रमुख को तीनों सेनाओं के प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए, खास कर उच्च रक्षा प्रबंधन स्तर पर सुधार करना चाहिए।इसके लिए उन्हें नौसेना और वायुसेना के प्रमुखों के साथ-साथ रक्षा मंत्री से भी तालमेल रखने की जरूरत है।
- और आखिरी बात लेकिन गैरमहत्वपूर्ण नहीं है, सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों का मामला, उनके वेतन एवं भत्तों को भी सरकार के उच्चतम स्तर के साथ बातचीत कर के जल्द से जल्द एक समान किये जाने की जरूरत है। इस आलेख का लक्ष्य हमारी सेना और नये सैन्य प्रमुख के सामने आने वाले प्रमुख मुद्दों में से कुछ पर रोशनी डालना है।एक संगठन के रूप में हम अतीत एवं यशास्थिति से भी अत्यंत बंधे हुए हैं, सेना/कॉर्प संबद्धता से भी अक्सर निर्देशित होते हैं। शांतिकाल की दौड़-भाग अक्सर सार्थक ओपी सुधारों को निष्प्रभ कर देती है। सुधारों के अधिकांश प्रयासों में विभिन्न साझीदारों की ओर से रुकावट आयी है। सेना को 21वीं सदी की आवश्यकताओं के प्रति ज्यादा उत्साहपूर्ण और उत्तरदायी बनने के लिए अविलंब आंतरिक सुधारों की जरूरत है। हम यह करने के लिए और अधिक समय नष्ट नहीं कर सकते। रक्षा मंत्री के साथ और जहाँ आवश्यक हो, प्रधानमंत्री के साथ काम कर के सैन्य प्रमुख को अपना कार्य पूरा करना है। इसमें उन्हें हमारा पूरा समर्थन होना चाहिए।
लेफ्टिनेंट जनरल ए.के. सिंह, सेवानिवृत्त
भूतपूर्व जीओसी,सेंट्रल साउदर्न कमांड और लेफ्टिनेंट गवर्नर अंडमान निकोबार तथा पुडुचेरी
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