इकॉनमी को ताकत देगी स्वदेशी जहाज निर्माण इंडस्ट्री

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भारत एक ऐसा देश है जहां 4000 वर्षों की समृद्ध समुद्री परंपरा रही है। यह समुद्री परंपरा तटीय इलाकों में रहने वाली आबादी की मानसिकता में गहरे पैठी हुई है और इन समाजों के रीति-रिवाजों में व्यक्त होती रहती है। सिंधु घाटी की सभ्यता 3000 ईसा पूर्व में नावों और जहाजों का इस्तेमाल करने के लिए जानी जाती थी। नाव बनाने की यह कला देश पर मुगलों के हमले के बाद कमजोर पड़ने लगी और उसके बाद औपनिवेशिक शासन शुरू हो जाने की वजह से यह दोबारा कभी जोर नहीं पकड़ सकी। भारत जैसे देश में जो मूलतः प्रायद्वीपीय चरित्र का रहा है, जहां 7516.5 किलोमीटर लंबा तट और 1197 द्वीप हैं, जहाज निर्माण क्षमता देश के आर्थिक विकास, बाजार की मांग और मानव संसाधन क्षमता से तालमेल बनाए नहीं रख सकी। हमारी आर्थिक संभावनाओं का ठीक से दोहन हो सके और राष्ट्रीय सुरक्षा पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पडे, यह सुनिश्चित करने के लिए इस पर ध्यान देना जरूरी है। 

भारतीय जहाज निर्माण उद्योग मुख्यतः 27 शिपयार्ड पर केंद्रित है जिनमें 8 प्राइवेट सेक्टर के हैं औऱ 19 पब्लिक सेक्टर के। जहाज निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है। इसमें कई तरह के कारक होते हैं। जहाज का निर्माण किसी ड्राई डॉक में इसका ढांचा बनाने या किसी आउटफिटिंग बेसिन में विभिन्न उपकरण या सिस्टम लगाते हुए ही शुरू हो जाता है। इसमें 300-400 प्रकार के कच्चा माल और उपकरण लगते हैं जो जहाज के प्रकार के हिसाब से बदलते हैं। जहां तक कीमतों की बात है तो कच्चा माल और उपकरणों की कीमत जहाज पर आने वाली कुल लागत का 60-70 फीसदी तक हो जाती है। जहाज निर्माता को ये कच्चे माल और उपकरण विभिन्न उद्योगों से खरीदना होता है। स्वाभाविक ही कोई शिपयार्ड सहायक और लघु उद्योगों के फलने फूलने का बड़ा आधार हो जाता है। 

भारत में व्यावसायिक जहाज निर्माण से जुड़े सहायक उद्योग उपेक्षित हैं क्योंकि जहाज निर्माण उद्योग का विस्तार ज्यादा नहीं हुआ है और इसीलिए इसकी जरूरतों का दायरा भी कम ही है। लिहाजा, इसका स्वदेशीकरण किफायती नहीं हो पाता है। लेकिन रक्षा जहाजों के लिए कच्चा माल मुहैया कराने वाले सहायक उद्योग अपेक्षाकृत अच्छी हालत में हैं। कई ऐसे भारतीय वेंडर हैं जो रक्षा जहाज से जुडे उपकरण बनाते हैं। इसका कारण यह है कि भारतीय नौसेना स्वदेशीकरण पर जोर दे रही है औऱ सहायक उद्योगों को सपोर्ट कर रही है। इसलिए कमर्शल शिपबिल्डर्स इन सहायक इंडस्ट्रीज का फायदा उठा सकते हैं। सहायक उद्योग कम मूल्य पर क्वालिटी सामान की आपूर्ति तभी कर सकते हैं जब उन्हें सपोर्ट मिलेगा, तभी जहाज निर्माण पर कुल लागत में कमी आ सकेगी।

भारत में जहाज निर्माण की संभावनाओं और एक मजबूत जहाज निर्माण उद्योग के आर्थिक फायदों को देखते हुए अगर एक उपयुक्त पॉलिसी फ्रेमवर्क और संस्थागत सपोर्ट सिस्टम बना दिया जाए तो एक समर्थ जहाज निर्माता देश के रूप में उभरने की भारत की कोशिशों को बल मिलेगा। उपकरणों और कल-पुर्जों के आयात, निर्माण, विस्तार और आधुनिकीकरण आदि पर टैक्स में छूट जैसे प्रोत्साहनों पर विचार किया जा सकता है। ध्यान रहे, सबसिडी स्कीम को कम से कम दस वर्षों तक जारी रखने की जरूरत होगी ताकि भारतीय जहाज निर्माण दुनिया में अपना मजबूत स्थान बना ले। इसके साथ ही शिपयार्ड के आसपास जहाज निर्माण के सहायक उद्योगों का जाल भी बिछा देने की जरूरत है। यह भारतीय शिपयार्ड्स को सबसे सस्ती कीमतों पर कच्चा माल हासिल करने में मदद करेगा।

आज की तारीख में इंडस्ट्री को केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से कई तरह के चेक्स औऱ क्लियरेंस का सामना करना पड़ता है। इन सभी क्लियरेंस को सिंगल विंडो सिस्टम के तहत लाए जाने की जरूरत है। इनमें पर्यावरण, भूमि आबंटन और इसका विकास, बिजली, पानी से लेकर सुरक्षा क्लियरेंस तक सब शामिल होना चाहिए। एक स्पेशलाइज्ड फाइनेंसिंग इंस्टिट्यूशन/ मरीन फाइनेंस स्कीम शुरू करना भी जहाज निर्माण इंडस्ट्री को मजबूती देगा। इतना ही नहीं, शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री की टेक्नॉलजी को अपग्रेड करने के लिए प्रमुख शिपबिल्डिंग कंपनियों/ शिपयार्ड्स के साथ जॉइंट वेंचर्स शुरू करने का काम तेजी से आगे बढाया जाना चाहिए। 

देश में अन्य उद्योगों के मुकाबले जहाज निर्माण उद्योग की कुछ खास विशेषताएं हैं जो इसे औरों से अलग करती हैं। यह इस मायने में अनूठा है कि ऑटो इंडस्ट्री की तरह इसमें पहले बनाने और फिर बेचने की प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती। इसमें पहले बेचा जाता है और तब बनाया जाता है। इतना ही नहीं, शिपयार्ड् को ऑर्डर तभी मिलते हैं जब ये क्वालिटी शिप्स समय पर डेलिवर करने के मामले में विश्वसनीय हों। और विश्वसनीय वे तभी हो सकते हैं जब वैश्विक प्रतिद्वंद्विता के बीच लगातार काम करते रहें, सफलतापूर्वक जहाज डेलिवर करते रहें। ध्यान में रखना जरूरी है कि इसे दुनिया के सबसे अच्छे यार्डों के मुकाबले ग्लोबली कॉम्पिटिटिव भी रहना होगा। दुर्भाग्यवश, शिपयार्ड्स को विदेशी यार्डों के मुकाबले भारी करों, शुल्कों और वित्तीय खर्चों का सामना करना पडता है। अन्य मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री के विपरीत इसमें प्रोडक्ट डेलिवर होने में बरसों लग जाते हैं जिससे बेहद खर्चीला फाइनेंस लंबे समय तक रखना पड़ता है। इससे इंडस्ट्री की प्रतिद्वंद्विता में टिके रहने की क्षमता प्रभावित होती है।

जहाज निर्माण इंडस्ट्री देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर तभी बना सकती है जब वह बड़े पैमाने पर जहाजों का निर्माण करे और कच्चा माल देश से ही हासिल करे। जाहिर है, इसके लिए अनुकूल आर्थिक इकोसिस्टम होना जरूरी है। ऊपर दिए गए सुझाव तो केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अमल में लाए ही जाने चाहिए, इसके अलावा शिपयार्ड्स को भी अपनी पूरी क्षमता से कार्य करते हुए क्वालिटी शिप्स समय पर डेलिवर करना होगा, तभी और ऑर्डर्स आएंगे। भारतीय शिपबिल्डिंग इंडस्ट्री को राष्ट्र निर्माण में अहम योगदान देने लायक बनाने के लिए निश्चय ही सबको मिलजुलकर कोशिश करनी होगी।

कैप्टन सरफराज खान, नौसेना अधिकारी, भारतीय नौसेना

(उपरोक्त विचार व्यक्तिगत हैं, रक्षा मंत्रालय या भारतीय नौसेना के आधिकारिक विचार इसमें नहीं झलकते)


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