संपादक की बात
हमारी सेनाओं के बीच तालमेल भरे सहयोग यानी एकजुटता की कमी ऐसी समस्या है, उसे दूर करने की राह में आने वाले संभावित प्रतिरोध से निपटने के लिए बहुत तेजी और सक्रियता के साथ काम करना होगा। जनरल अपने लेख में बता रहे हैं कि तालमेल और सहयोग आवश्यक क्यों है, सीडीएस की नियुक्ति क्यों करनी चाहिए और संयुक्त थिएटर कमानों की ओर चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ने की क्या जरूरत है। इस प्रयास के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की और राह में आने वाली बाधाओं से पार पाने के लिए कानून बनाने तक की जरूरत पड़ सकती है।
तालमेल और सहयोग का यही सही समय
क्या 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों में पर्याप्त तालमेल और सहयोग है? इस प्रश्न का सीधा उत्तर होगा “नहीं”। वाकई? हम पूछ सकते हैं कि भारतीय सशस्त्र बलों में तालमेल और एकजुटता सुनिश्चित करने के लिए क्या किया गया है और उससे भी महत्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या किया जा रहा है। किंतु अधिकार क्षेत्र से हमारे लगाव को देखते हुए एक बुनियादी बात तो मानी ही जा सकती हैः कि अगर मामला तीनों सेनाओं की मर्जी पर छोड़ दिया जाए तो उनका सहमत होना मुश्किल होगा; बिल्कुल उसी तरह, जैसे वे दशकों से सहमत नहीं हो पाई हैं। इसीलिए अब वक्त आ गया है कि सरकार सीधे कदम उठाए और सशस्त्र बलों पर तालमेल और एकजुटता थोपे। हमें उम्मीद इस बात से मिलती है कि माननीय प्रधानमंत्री अहम मसलों पर निर्णायक कदम उठाने के लिए विख्यात हैं और यह निर्णय बहुत समय से अटका हुआ है।
वर्तमान स्थिति
सर्वोच्च स्तर पर चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के चेयरमैन (सबसे लंबे समय से सेवारत सेना प्रमुख अपनी सेना के प्रमुख होने के साथ ही इस पद पर भी नियुक्त हो जाते हैं) होते हैं। सेना के कमांडर के समतुल्य अधिकारी – सीआईएससी के अधीन एकीकृत डिफेंस स्टाफ (आईडीएस) का मुख्यालय होता है, जहां तीन सितारों वाले प्रिंसिपल स्टाफ अधिकारी होते हैं, जो रक्षा खुफिया एजेंसी (डीआईए) समेत विभिन्न विभागों का नतृत्व करते हैं। इसके अतिरिक्त हमारे यहां पोर्ट ब्लेयर में सेना के तीनों अंगों वाली अंडमान-निकोबार कमान (एएनसी) है और परमाणु हथियारों को संभालने के लिए रणनीतिक बल कमान (एसएफसी) है। सैन्य कमांडर स्तर के तीन प्रमुख अर्थात् सीआईएससी, कमांडर इन चीफ एएनसी तथा कमांडर एसएफसी की नियुक्ति बारी-बारी तीनों अंगों से होती है। एनडीए, डीएसएससी, सीडीएम और एनडीसी जैसी संयुक्त प्रशिक्षण संस्थाएं भी हैं, जो तीन उच्चतर कमान/समतुल्य पाठ्यक्रमों के लिए संयुक्त सत्र आयोजित करती है। विभिन्न मुख्यालयों में भी तीनों अंगों का प्रतिनिधित्व होता है, लेकिन यह पुरानी व्यवस्था है और आधुनिक युद्ध की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए नहीं बनी है। कुल मिलाकर यह पुरानी व्यवस्था है, जिसमें ढेरों खामियां हैं, दोहराव है, जो कमान की एकता के विरुद्ध जाता है, जबकि आधुनिक युद्ध में इसकी बड़ी आवश्यकता होती है।
हाल में दो पहलों ने इस मसले पर ध्यान केंद्रित किया – कारगिल समीक्षा समिति और कुछ ही समय पहले की नरेश चंद्रा समिति। दोनों, विशेष रूप से बाद की समिति संपूर्ण तो नहीं थी, लेकिन उनकी रिपोर्टों में की गई सिफारिशों को मामूली स्तर पर भी लागू नहीं किया गया है क्योंकि राजनीतिक वर्गों तथा संबंधित पक्षों में इसे लेकर उत्साह ही नहीं था। इसीलिए कुछ मायनों में नई शुरुआत करने के लिए और इस मामले पर संपूर्णता में विचार करने तथा उसके बाद उसे लागू करने के लिए यह उपयुक्त समय है।
अभीष्ट मंजिल या अंतिम स्थिति
मेरे विचार से आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका उलटा चलते हुए योजना बनाना है अर्थात् सबसे पहले अंतिम स्थिति यानी मंजिल तय की जाए और उसके बाद वहां तक पहुंचने के लिए काम किया जाए, आवश्यकता हो तो चरणों में काम किया जाए। असली सहयोग और तालमेल के लिए हमें चार सितारों वाले जनरलों अथवा समतुल्य अधिकारियों के अधीन एकीकृत थिएटरों पर आधारित अंतिम स्थिति तक पहुंचना होगा और तीनों अंगों की संपत्तियां एक ही व्यक्ति के हाथ में होंगी। शीर्ष स्तर पर 5 सितारों वाले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) होने चाहिए, जिनकी सहायता के लिए एकीकृत कर्मचारी होने चाहिए। एकीकृत थिएटरों को सीडीएस के अधीन और उनके जरिये रक्षा मंत्री तथा सुरक्षा पर कैबिनेट समिति के अधीन होना चाहिए। तीनों सेना प्रमुखों को अपनी सेनाओं की कमान संभालनी चाहिए और भर्ती करने, साजोसामान लाने, कर्मियों को प्रशिक्षित करने तथा अन्य पहलुओं के लिए जिम्मेदार होना चाहिए। एकीकृत स्टाफ के मुख्यालय तथा रक्षा मंत्रालयों के बीच भी वांछित स्तर की एकजुटता होनी चाहिए ताकि दोहराव और अनावश्यत दखल से बचा जा सके। इसके अतिरिक्त सभी सहयोगी विभागों और ढांचों जैसे लॉजिस्टिक्स, चिकित्सा आदि में भी एकजुटता होनी चाहिए। सभी सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियों के बीच तालमेल के लिए और योजनाओं के क्रियान्वयन को दुरुस्त करने के लिए हम सेना प्रकोष्ठ पर भी विचार कर सकते हैं, जिसमें एनएसए से समुचित कर्मचारी लिए जा सकते हैं।
चार एकीकृत थिएटर कमानों की सिफारिश की गई हैः
* सेना के जनरल के अधीन पश्चिमी थिएटर, जो जम्मू-कश्मीर से कच्छ तक पाकिस्तानी मोर्चे का जिम्मा संभालेगा।
* सेना के जनरल के अधीन उत्तरी/पूर्वी थिएटर, जो चीन, नेपाल, भूटान, म्यांमार और बांग्लादेश की सीमाएं संभालेगा।
* नौसेना के एडमिरल के अधीन दक्षिणी थिएटर, जो भारतीय प्रायद्वीप और द्वीप के क्षेत्रों को संभालेगा।
* वायुसेना के एयर चीफ मार्शल के अधीन मध्य थिएटर, जो वायु रक्षा तथा आकाशीय क्षेत्र समेत शेष भारत की जिम्मेदारी संभालेगा।
एसएफसी, साइबर तथा विशेष बल जैसी कामकाजी कमानों को सीधे सीडीएस के अधीन होना चाहिए तथा कामकाजी आवश्यकताओं के आधार पर थिएटरों के लिए समर्पित होना चाहिए। क्षेत्र से बाहर आकस्मिक अभियानों को सीडीएस के अधीन होना चाहिए, जिसमें मध्य तथा दक्षिणी थिएटरों के पास उपलब्ध क्षमताएं होंगी और ऐसे अभियानों का जिम्मा भी इन थिएटरों के पास ही होना चाहिए।
ऊपर जो बताया गया है, वास्तव में वही अभीष्ट अंतिम स्थिति है; लेकिन कई बारीक बातों का समन्वय करना होगा, उन्हें दुरुस्त करना होगा और प्रस्ताव तैयार करना होगा। प्रत्येक थिएटर में सेना के तीनों अंगों का समुचित प्रतिनिधित्व तथा एकीकृत कर्मचारी होंगे, लेकिन सभी घटक अंत में थिएटर कमांडर के प्रति ही उत्तरदायी होंगे। थिएटर मुख्यालयों का स्थान अभियानों तथा कामकाज की आवश्यकताओं के आधार पर चुना जा सकता है।
आगे की राह
क्रियान्वयन तथा आगे की राह सबसे महत्वपूर्ण चरण है। पिछली खामियों से बचने के लिए पूरे खाके तथा अंतिम स्थिति को सुरक्षा पर कैबिनेट समिति से मंजूरी मिलना तथा आवश्यकता पड़ने पर हरी झंडी मिलना जरूरी है। बाद के चरणों के सुझाए गए ढांचे का विवरण नीचे दिया गया हैः-
* चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी चेयरमैन (चार सितारों वाले) की नियुक्ति की जाए तथा उन्हें प्रस्ताव तैयार करने एवं सुरक्षा पर कैबिनेट समिति से मंजूरी प्राप्त करने एवं बाद में एक वर्ष के भीतर प्रस्ताव को संसद की मंजूरी के लिए पेश करने का जिम्मा सौंप दिया जाए।
* दूसरे वर्ष में सेना के तीनों अंगों के मध्य संसाधनों का पुनर्वितरण करने समेत विस्तृत प्रस्ताव एवं योजना प्रस्तुत की जाए।
* तीसरे वर्ष में पांच सितारों वाले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) को नियुक्त कीजिए, जो नियुक्ति तीनों अंगों के सिद्धांत के अनुरूप होनी चाहिए और जिसके लिए आवश्यक योग्यता सरकार पहले ही तय कर सकती है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जब भी नौसेना/वायुसेना से हो तो उनके बाद दूसरे नंबर का अर्थात् वाइस चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ सेना से होना चाहिए।
* चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति के उपरांत एकीकृत थिएटरों की स्थापना के लिए दो वर्ष का समय दिया जाना चाहिए क्योंकि आरंभिक कठिनाइयां दूर करने में समय लग जाएगा।
चीन ने हाल ही में एकीकृत थिएटरों की स्थापना आरंभ कर दी, जहां सेना के अंगों के बीच की ढेरों समस्याएं अभी तक आ रही हैं और ऐसा कुछ समय तक चलता ही रहेगा।
भारत के उद्भव, बाध्यताओं एव अपेक्षाओं को देखते हुए ऊपर दिया मॉडल भविष्य के लिए आवश्यक है। हमारे प्रधानमंत्री के विराट सामरिक स्वप्न को सुरक्षा एवं कूटनीति के क्षेत्र में भी मजबूत संगठनों एवं ढांचे की आवश्यकता पड़ेगी। सेनाओं के लिए अभी काम शुरू करने का एकदम उचित समय है तथा 4-5 वर्षों में इसे पूरा करना होगा। यदि सेनाएं अरुचि दिखाती हैं तो सर्वोच्च राजनीतिक संस्था द्वारा तथा संसद के द्वारा इसे करवाना होगा।
लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) ए के सिंह
(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of BharatShakti.in)